माता- पिता केवल जन्म ही नहीं देते वरन हर प्रकार से लालन -पालन कर अपने बालक को उन्नति के शिखर पर पहुँचाने का प्रयत्न करते हैं। गरीब से गरीब माता -पिता अपने बच्चों को सुखी बनाने के लिए भूखे -प्यासे रहकर अनेक प्रकार की यातनाए सहते हैं। उनकी हार्दिक इच्छा होती है कि उनके बच्चे विद्या पढ़कर महाविद्वान बनें और सूर्य के समान चमकते हुए यश और कीर्ति के शिखर पर पहुँचें। माता -पिता ही ऐसे व्यक्ति हैं जो बच्चों का कभी अहित नहीं सोच सकते। यदि कोई बच्चे का अहित करे भी तो वे वाद -विवाद पर उतर आते हैं।
बड़े दुःख से कहना पड़ता है कि माता -पिता की इतनी ऊँची भावनाओं को भी हमारे युवा नहीं समझते और नासमझी में कई प्रकार की ऐसी गलतियां कर बैठते हैं जो उन्हें नहीं करनी चाहिए। इससे संबंधित एक घटना है।
एक समय की बात है ,एक नवयुवक वेश्यागामी था और एक वेश्या से अति प्यार करता था। यहाँ तक कि प्रत्येक वस्तु प्रेम के आगे न्योछावर करने को तैयार रहता था। एक दिन वेश्या ने पूछा -क्या आप सचमुच ही मुझसे प्रेम करते हैं ? उसने कहा -क्या इसमें भी संदेह है ?वेश्या ने कहा -अच्छा तो फिर तुम अपनी माँ का कलेजा लाकर दो तब मुझे यकीन आयेगा। वह नवयुवक भागता हुआ अपनी माँ के पास गया और उसको मारकर कलेजा लेकर एकदम वेश्या के पास पहुँच ही रहा था कि मार्ग में ठोकर खा कर गिर पड़ा। तभी माँ का कलेजा बोला --मेरे बच्चे !चोट तो नहीं आई कहीं ?
पर उस मदमस्त युवक को होश कहाँ ?वेश्या के पास जाकर कलेजा रख दिया। पर प्रसन्न होने के बदले वह गुस्से में बोली --अरे दुष्ट !तूने अपनी माँ का प्रेम न समझा तो मुझे क्या समझेगा ?कहने का अभिप्राय यह है कि वेश्या के हृदय में भी माँ के प्रति कितने पवित्र भाव थे ,जिन्होंने उस युवक की आँखें खोल दी।
ऐसी ममतामयी माता के साथ प्रत्येक को प्रीतियुक्त भाव से व्यवहार करना चाहिए। कभी भूल कर भी उनसे कोई कटु एवं अपशब्द नहीं कहने चाहिए। माता -पिता की सेवा श्रद्धा से करनी चाहिए। जो माता -पिता की सेवा नहीं करता वह कृतघ्न है। उसकी संताने, उसकी भी सेवा नहीं करेंगी।
बड़े दुःख से कहना पड़ता है कि माता -पिता की इतनी ऊँची भावनाओं को भी हमारे युवा नहीं समझते और नासमझी में कई प्रकार की ऐसी गलतियां कर बैठते हैं जो उन्हें नहीं करनी चाहिए। इससे संबंधित एक घटना है।
एक समय की बात है ,एक नवयुवक वेश्यागामी था और एक वेश्या से अति प्यार करता था। यहाँ तक कि प्रत्येक वस्तु प्रेम के आगे न्योछावर करने को तैयार रहता था। एक दिन वेश्या ने पूछा -क्या आप सचमुच ही मुझसे प्रेम करते हैं ? उसने कहा -क्या इसमें भी संदेह है ?वेश्या ने कहा -अच्छा तो फिर तुम अपनी माँ का कलेजा लाकर दो तब मुझे यकीन आयेगा। वह नवयुवक भागता हुआ अपनी माँ के पास गया और उसको मारकर कलेजा लेकर एकदम वेश्या के पास पहुँच ही रहा था कि मार्ग में ठोकर खा कर गिर पड़ा। तभी माँ का कलेजा बोला --मेरे बच्चे !चोट तो नहीं आई कहीं ?
पर उस मदमस्त युवक को होश कहाँ ?वेश्या के पास जाकर कलेजा रख दिया। पर प्रसन्न होने के बदले वह गुस्से में बोली --अरे दुष्ट !तूने अपनी माँ का प्रेम न समझा तो मुझे क्या समझेगा ?कहने का अभिप्राय यह है कि वेश्या के हृदय में भी माँ के प्रति कितने पवित्र भाव थे ,जिन्होंने उस युवक की आँखें खोल दी।
ऐसी ममतामयी माता के साथ प्रत्येक को प्रीतियुक्त भाव से व्यवहार करना चाहिए। कभी भूल कर भी उनसे कोई कटु एवं अपशब्द नहीं कहने चाहिए। माता -पिता की सेवा श्रद्धा से करनी चाहिए। जो माता -पिता की सेवा नहीं करता वह कृतघ्न है। उसकी संताने, उसकी भी सेवा नहीं करेंगी।
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