माता -पिता जीते -जागते परमेश्वर हैं तथा उनकी उसी प्रकार पूजा करनी चाहिए जिस प्रकार परमात्मा की। पूजा का यह अर्थ नहीं कि उनके आगे धूप और अक्षत रखो ,वरन उनसे अधिक श्रद्धा किसी में भी न हो ,ऐसे भाव मन में रखने चाहिए। धन ,दौलत तथा आराम उनके आगे कुछ नहीं समझना चाहिए,उनके मान ,मर्यादा के लिए सदा तुम्हें तत्पर रहना चाहिए। आजकल युवक पद की प्रतिष्ठा में चूर होकर पिता का ऐसा अपमान कर देते हैं कि उनके दिल को बहुत ठेस लग जाती है। इसका एक उदाहरण सुनिए -----
तहसील बटाला गांव कादियान में साधारण वर्ग के सज्जन थे। उसने अपने इकलौते पुत्र को अपने पेट पर पत्थर रखकर ,अर्थात भूखा -प्यासा रहकर ,कठिन परिश्रम करके बहुत उत्तम शिक्षा दिलाई और फलस्वरूप लड़का डिप्टी कमिश्नर बना। जब बेटा इस पर पहुंचा तो उसको अभिमान हो गया। पर पिता को उसका पता न था ,क्योंकि वह पिता को प्रतिमास 25 रूपये भेज देता था। उसकी ख़ुशी की कोई सीमा न थी। वह सोचता ,न जाने मेरा पुत्र कितना भक्त है। पिता के मन में विचार आया कि एक बार जाकर अपने पुत्र को अपनी आँखों से देख आऊं।
पिता अपने मन में अनेक अभिलाषा लेकर गया। पर वहां का रंग -रूप देखकर उसके नेत्रों के सामने अन्धेरा छा गया ,क्योंकि एक पुरुष ने उसके पुत्र से पूछा -यह कौन है !तो उसने कहा -अरे ,यह तो मेरा पुराना नौकर है। इतनी बात सुनकर पिता पृथ्वी पर गिर गया। उसको इतना शोक हुआ जिसके फलस्वरूप उसकी तत्काल मृत्यु हो गई ,क्योंकि उसकी आशाओं पर पानी फिर गया था।
पिता के अपमान की यह कोई अनोखी घटना नहीं है। कितनी लज्जा की बात है कि जो माता -पिता अपनी संतान पर सर्वस्व न्यौछावर करके योग्य बनावे ,उनके साथ ऐसा व्यवहार किया जाए। ऐसी बात कभी छिपती भी नहीं ,जब लोगों को असली बात का पता चलता है तो उन्हें घृणा की निगाहों से देखा जाता है क्योंकि लोग समझ जाते हैं कि जो अपने माँ -बाप का नहीं हुआ ,वह हमारा क्या बन सकेगा।
जब आप किसी कार्य को करें तो विचार लेना चाहिए कि मुझे कोई ऐसा बुरा कार्य नहीं करना चाहिए जिससे माता -पिता का अपमान हो। उनका आदर करने से प्रत्येक कार्य में वे आपको हृदय से आशीष देंगे और यह आशीर्वाद पाकर आप जीवन में सदा सुखी रहेंगे। हमारे धर्मशास्त्रों का भी यही आदेश है --मातर देवो भव पितर देवो भव ,अर्थात माता -पिता को देवतुल्य समझकर उनकी पूजा करनी चाहिए।
तहसील बटाला गांव कादियान में साधारण वर्ग के सज्जन थे। उसने अपने इकलौते पुत्र को अपने पेट पर पत्थर रखकर ,अर्थात भूखा -प्यासा रहकर ,कठिन परिश्रम करके बहुत उत्तम शिक्षा दिलाई और फलस्वरूप लड़का डिप्टी कमिश्नर बना। जब बेटा इस पर पहुंचा तो उसको अभिमान हो गया। पर पिता को उसका पता न था ,क्योंकि वह पिता को प्रतिमास 25 रूपये भेज देता था। उसकी ख़ुशी की कोई सीमा न थी। वह सोचता ,न जाने मेरा पुत्र कितना भक्त है। पिता के मन में विचार आया कि एक बार जाकर अपने पुत्र को अपनी आँखों से देख आऊं।
पिता अपने मन में अनेक अभिलाषा लेकर गया। पर वहां का रंग -रूप देखकर उसके नेत्रों के सामने अन्धेरा छा गया ,क्योंकि एक पुरुष ने उसके पुत्र से पूछा -यह कौन है !तो उसने कहा -अरे ,यह तो मेरा पुराना नौकर है। इतनी बात सुनकर पिता पृथ्वी पर गिर गया। उसको इतना शोक हुआ जिसके फलस्वरूप उसकी तत्काल मृत्यु हो गई ,क्योंकि उसकी आशाओं पर पानी फिर गया था।
पिता के अपमान की यह कोई अनोखी घटना नहीं है। कितनी लज्जा की बात है कि जो माता -पिता अपनी संतान पर सर्वस्व न्यौछावर करके योग्य बनावे ,उनके साथ ऐसा व्यवहार किया जाए। ऐसी बात कभी छिपती भी नहीं ,जब लोगों को असली बात का पता चलता है तो उन्हें घृणा की निगाहों से देखा जाता है क्योंकि लोग समझ जाते हैं कि जो अपने माँ -बाप का नहीं हुआ ,वह हमारा क्या बन सकेगा।
जब आप किसी कार्य को करें तो विचार लेना चाहिए कि मुझे कोई ऐसा बुरा कार्य नहीं करना चाहिए जिससे माता -पिता का अपमान हो। उनका आदर करने से प्रत्येक कार्य में वे आपको हृदय से आशीष देंगे और यह आशीर्वाद पाकर आप जीवन में सदा सुखी रहेंगे। हमारे धर्मशास्त्रों का भी यही आदेश है --मातर देवो भव पितर देवो भव ,अर्थात माता -पिता को देवतुल्य समझकर उनकी पूजा करनी चाहिए।
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