मनुष्य शरीर क्या है
?कठोपनिषद में मनुष्य शरीर की तुलना एक घोडा गाड़ी से की गई है मनुष्य के शरीर में दस
इंद्रियां -पांच ज्ञानेन्द्रियां -आंख ,कान ,नाक ,जिह्वा ,त्वचा -पांच कर्मेन्द्रियां
-हाथ ,पांव ,मुख ,मल और मूत्र त्याग इंद्रियां -रथ को खींचने वाले दस घोड़े है। मन लगाम
,बुद्धि सारथी [रथवान]तथा आत्मा रथ का सवार है। आत्मा रूपी सवार तभी अपने लक्ष्य तक
पहुँचेगा जब बुद्धि रूपी सारथी मन रूपी लगाम को अपने वश में रख के इंद्रियां रूपी घोड़ों
को सन्मार्ग पर चलाएगा।
घोड़े अगर सारथी के
वश में नहीं है तो वे इधर उधर के आकर्षणों में उलझ कर मार्ग को छोड़ बैठेंगे यही अवस्था
इन्द्रियों की है। विषयों में घूमने वाली इंद्रियों को विद्वान् उसी प्रकार वश में
करे जैसे सारथी घोड़ों को वश में करता है। नहीं तो इस अवस्था का दुःख रूपी दुष्परिणाम
आत्मा को भोगना पड़ता है।
मानव शरीर की इस गाड़ी
को किराये की गाड़ी बताया गया है जिसे वायु ,जल ,और भोजन के रूप में निरंतर किराया देना
पड़ता है। मनुष्य शरीर का उद्देश्य है -सुख प्राप्ति और सुख मिलता है परोपकार आदि शुभ
कर्म करने से। परोपकार करना ही सन्मार्ग पर चलना है। असत्य ,अन्याय आदि दुष्ट कर्मों
में पड़ जाना ही संसार में उलझना है
गीता में भी कहा गया
है -इंद्रियों की अपेक्षा मन श्रेष्ठ है ,मन की अपेक्षा बुद्धि अधिक श्रेष्ठ है ,बुद्धि
की अपेक्षा आत्मा और अधिक श्रेष्ठ है। अगर आत्मा के अधीन बुद्धि ,बुद्धि के अधीन मन
और मन के अधीन इंद्रियां हो तभी यह रथ अभ्युदय और श्रेष्ठ रूप धर्म मार्ग पर चल कर
सवार को निर्दिष्ट स्थान पर पहुंचा देने का कारण बन सकता है। इस शरीर रूपी रथ के लिए
आवश्यक है कि इस पर आरूढ़ आत्मा रूपी सवार सावधान हो यदि वह ज्ञानी है तो स्वयं न तो
मन के पीछे चलेगा और न इंद्रियों को दुष्ट घोड़ों की तरह बेकाबू होने देगा।
सुंदर
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