ईश्वर प्राप्ति के लिए किसी गुरु व आचार्य की आवश्यकता होती है अथवा नहीं यह एक विचारणीय प्रश्न है ?इसके लिए
वैदिक मान्यताए बड़ा तर्क संगत उत्त्तर देती है | उनके मतानुसार ईश्वर तक पहुंचने के लिए किसी दलाल, वकील, पीर
अवतार या गुरु की आवश्यकता नहीं है | ईश्वर सभी प्राणियों के अंदर बसा हुआ है | वह सभी के उतना ही समीप है | आत्मा
के दवारा ही ईश्वर को जाना जा सकता क्योकि ईश्वर आत्मा में विधमान है |आत्मा और परमात्मा के बीच और कुछ नही
है | मनुष्य अपने ज्ञान से और मन की पवित्रता से ही ईश्वर को जान सकता है | ईश्वर किसी की सिफारिश नहीं मानता |
ईश्वर किसी एक को अपना दूत बना कर भेजे तो वह पक्षपाती बनता है | वह तो सभी के लिए एक समान है | आजकल
जो सेकड़ो गुरु बने हुए है वे तो केवल धन बटोरने, अपने ऐशोआराम के लिए तथा मानसम्मान हेतु शिष्य बनाते है | ये
गुरु ज्ञान की बजाय अज्ञान फैलाते है | ईश्वर के स्थान पर अपनी पूजा करवाते है | वेद आदि उत्तम ग्रंथो की बजाय अपनी
स्वार्थपूर्ण घटिया पुस्तके पढ़ने को देते है, पूजने के लिए अपनी तस्वीरे देते है जबकि ईश्वर प्राप्ति में मूर्तिपूजा का कोई
स्थान नहीं | अपने शिष्यों को इतने अंधविश्वासी बना देते है कि जो गुरु कहे वह सब सत्य अन्यथा सब झूढ | अपने
शिष्यों में वे दिखावटी ज्ञान को भरने का प्रयास करते है |वे आसन लगाकर समाधि की मुद्रा में बैठ कर ध्यान करने का
आडम्बर करते है वास्तव में तो उनके मन में अहंकार भरा होता है |
ये शिष्य भी गुरु का झूठा खाने में गौरव मानते है |गुरु के पीछे ऐसे भागते कि अपनी ज्ञान की आँखे बंद कर लेते है और अपने जीवन में घोर अंधकार, अज्ञान तथा दुख पाल लेते है | दुःखों से छूटना और मुक्ति पाना--आसान काम नहीं ,गुरु ने फूक मारी ओर दुख उड़ गए | मन वचन कर्म से शुद्ध होकर सहज भाव की भक्ति से ईश्वर को पाया जा सकता है अज्ञानी गुरुओ की शरण में जाने से नहीं | |
ये शिष्य भी गुरु का झूठा खाने में गौरव मानते है |गुरु के पीछे ऐसे भागते कि अपनी ज्ञान की आँखे बंद कर लेते है और अपने जीवन में घोर अंधकार, अज्ञान तथा दुख पाल लेते है | दुःखों से छूटना और मुक्ति पाना--आसान काम नहीं ,गुरु ने फूक मारी ओर दुख उड़ गए | मन वचन कर्म से शुद्ध होकर सहज भाव की भक्ति से ईश्वर को पाया जा सकता है अज्ञानी गुरुओ की शरण में जाने से नहीं | |
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