निंदकों का काम है -निंदा करना तथा अपने पुण्यों एवं आंतरिक शांति का विनाश करना। यदि निंदा में रूचि लेने वाला व्यक्ति इतना समझ जाए कि निंदा क्या है तो कितना अच्छा हो ! किन्तु यदि वह इसे समझना ही न चाहे तो क्या किया जा सकता है ?एक सज्जन ने अपने गुरु से कहा कि सत्य की तुलना में असत्य बिलकुल निर्बल होता है। फिर भी वह इतनी जल्दी क्यों फैल जाता है ? इसका कारण यह है कि सत्य जब तक अपना जूता पहनता है ,तब तक असत्य सारी पृथ्वी का चक्कर लगा आता है। सत्य में सब कुछ स्पष्ट ही होता है जबकि असत्य अपने हजारों रंग दिखाता रहता है।
हजरत मुहम्मद को एक बार ऐसा पता लगा कि उनके पास आने वाले एक व्यक्ति को निंदा करने की बड़ी आदत है। उन्होंने उस व्यक्ति को अपने पास बुला कर पँखों से बनाए गये एक तकिए को देते हुए कहा कि ये पँख तुम घर -घर फेंक आओ। उस व्यक्ति को कुछ पता न चला कि यह सब क्या हो रहा है ?वह बड़े उत्साह से चल पड़ा। उसने प्रत्येक घर में एक -एक पँख रखते हुए किसी न किसी की निंदा भी की।
दूसरे दिन शाम को पैगंबर ने उसे अपने पास बुलाकर कहा -अब तू पुनः जा और सारे पँखों को वापस ले आ। व्यक्ति ने कहा -यह अब कैसे हो सकेगा ?सारे पँख न जाने कहाँ उड़कर चले गए होंगे ? इस पर मुहम्मद ने कहा -इसी तरह तू जो जगह -जगह जाकर गैर जिम्मेदार बातें करता है ,वे भी वापस नहीं आ सकती। वे भी इधर- उधर उड़ जाती हैं। उनसे तुझे कुछ मिलता नहीं बल्कि तेरी जीवनशक्ति का ही ह्रास होता है और सुनने वालों की भी तबाही होती है। अतः निन्दा जैसी दुष्प्रवृति से बचना ही श्रेयस्कर है।
हजरत मुहम्मद को एक बार ऐसा पता लगा कि उनके पास आने वाले एक व्यक्ति को निंदा करने की बड़ी आदत है। उन्होंने उस व्यक्ति को अपने पास बुला कर पँखों से बनाए गये एक तकिए को देते हुए कहा कि ये पँख तुम घर -घर फेंक आओ। उस व्यक्ति को कुछ पता न चला कि यह सब क्या हो रहा है ?वह बड़े उत्साह से चल पड़ा। उसने प्रत्येक घर में एक -एक पँख रखते हुए किसी न किसी की निंदा भी की।
दूसरे दिन शाम को पैगंबर ने उसे अपने पास बुलाकर कहा -अब तू पुनः जा और सारे पँखों को वापस ले आ। व्यक्ति ने कहा -यह अब कैसे हो सकेगा ?सारे पँख न जाने कहाँ उड़कर चले गए होंगे ? इस पर मुहम्मद ने कहा -इसी तरह तू जो जगह -जगह जाकर गैर जिम्मेदार बातें करता है ,वे भी वापस नहीं आ सकती। वे भी इधर- उधर उड़ जाती हैं। उनसे तुझे कुछ मिलता नहीं बल्कि तेरी जीवनशक्ति का ही ह्रास होता है और सुनने वालों की भी तबाही होती है। अतः निन्दा जैसी दुष्प्रवृति से बचना ही श्रेयस्कर है।
0 comments:
Post a Comment