ईश्वर की स्तुति व
पूजा कब और कैसे की जाए ?इसके लिए आवश्यक है कि संध्या ,प्रार्थना ,उपासना करें। इनको
जानने से पहले अन्तःकरण की वृतियों को जानना जरूरी है। अन्तःकरण की चार वृतियां हैं
-मन ,बुद्धि ,चित्त ,अहंकार। अन्तःकरण की सुख- दुःख आदि के कारण को विचारने वाली वृति
का नाम मन ,इन्द्रियों के द्वारा बाहरी वस्तुओं का ज्ञान प्राप्त करने की वृति का नाम
बुद्धि,व्यापार आदि के संबंध में विचारने का नाम चित्त ,अपनी सत्ता तथा अपने से संबंधित
वस्तुओं को अपना जानता हुआ प्रकाश करता है इस वृति का नाम अहंकार है।
संध्या -मनुस्मृति
में बताया है कि दो संध्या काल होते हैं -प्रातः और सायं ,जब दिन और रात मिलते हैं।
मनुष्य प्रातःकाल संध्या में बैठ कर रात के समय में आए मानसिक दोषों को दूर करे और
सायंकाल संध्या में बैठ कर दिन में आए मानसिक दोषों को दूर करे। अथार्त दोनों समय संध्या
में बैठ कर उससे पहले समय में आए मानसिक विकारों पर चिंतन ,मनन और पश्चाताप करके उन्हें
आगे न आने देने का निश्चय करे।
प्रार्थना -कोई वस्तु
परमात्मा से मांगने से पहले उस वस्तु को प्राप्त करने के लिए उसके अनुसार प्रयत्न करना
आवश्यक है। विद्यार्थी परमात्मा से प्रार्थना करे कि वह उसे परीक्षा में पास कर दे
तो विद्यार्थी का कर्तव्य है कि वह परीक्षा की तैयारी पूरी मेहनत से करे। हम ईश्वर
से प्रार्थना करें कि वह हमें तीक्ष्ण बुद्धि दे तो उसके लिए हमें भी ऐसे यत्न करने
चाहियें जिससे बुद्धि तीक्ष्ण हो -शुद्ध खान ,पान ,ब्रह्मचर्य का पालन ,अच्छी- अच्छी
पुस्तकों का पढ़ना आदि। यदि हम स्वयं प्रयत्न न करें और ईश्वर से मांगते रहें तो हमें
कुछ न मिलेगा। जो परमेश्वर के सहारे आलसी बन कर बैठे रहते हैं ,उन्हें कुछ प्राप्त
नहीं होता क्योंकि ईश्वर की पुरुषार्थ करने की आज्ञा है। ईश्वर उसी की सहायता करता
है जो अपनी सहायता आप करता है।
उपासना -जब ईश्वर की
उपासना करना चाहे तब एकांत शुद्ध स्थान पर जाकर आसन लगाकर आंखें बंद करके बैठ जाएं।
सभी इंद्रियों को बाहरी संसार से रोककर पहले प्राणायाम करें ,फिर अपने मन को हृदय
,नाभि या कंठ -किसी एक स्थान पर स्थिर करके अपने आत्मा और परमात्मा का चिंतन कर परमात्मा
में मग्न हो जाएं। ऐसा करते रहने से आत्मा और अन्तःकरण सभी पवित्र हो जाते हैं तथा
मनुष्य की केवल सत्याचरण में ही रूचि हो जाती है। आत्मा का बल इतना बढ़ जाता है कि पहाड़
के समान मुसीबत आने पर भी मनुष्य घबराता नहीं और सहन कर लेता है।
ईश्वर की प्रेरणा
-मनुष्य जब कोई अच्छा काम करने लगता है तो उसे आनंद ,उत्साह तथा निर्भयता महसूस होती
है ,वह ईश्वर की तरफ से ही होती है। मनुष्य जब कोई गलत काम करने लगता है तो उसे भय
,शंका ,लज्जा जो होती है वह भी ईश्वर की तरफ से होती है।
0 comments:
Post a Comment