मनुष्य जीवन में पवित्रता कैसे आती है ?मनुस्मृति में बताया गया है कि जल से शरीर के अंग पवित्र होते है ,आत्मा और मन नहीं। मन तो सत्य मानने ,सत्य बोलने और सत्य करने से शुद्ध होता है। विद्या और तप अथार्त सब प्रकार के कष्ट सह के धर्म का पालन करने से जीवात्मा पवित्र होता है। ज्ञान अथार्त पृथ्वी से लेकर परमेश्वर पर्यन्त पदार्थो के विवेक से बुद्धि दृढ़ निश्चय पवित्र होती है।
विद्वान् सहनशीलता से शुद्ध होता है ,बुरा काम करने वाला दान से ,छुपकर पाप करने वाला पश्चाताप से तथा वेद को जानने वाला वेदानुकूल आचरण से शुद्ध होता है।
अब प्रश्न उभरकर आता है कि धन कमाने में पवित्रता कैसे बरती जाये ?धन मनुष्य जीवन के लिए परमावश्यक वस्तु है। वेद ने खूब धन कमाने का आदेश दिया है। परन्तु कैसे ?मेहनत और ईमानदारी से। यह सभी के हित में है।
ऋग्वेद में बताया गया है कि मनुष्य पुष्टिकारक ,यशदायक और बलदायक धन ऐश्वर्य को ही प्रतिदिन अपने घोर परिश्रम से प्राप्त करें। कभी भी किसी दुष्ट के प्रसंग से धन इकट्ठा न करे ,न गलत काम से और न किसी वस्तु के होते हुए उसे छिपा करके ही। चाहे कितना भी दुःख उठाना पड़े तो भी पाप से धन न बटोरे। मनुस्मृति में बताया गया है कि सभी प्रकार की शुद्धियों में अर्थ से संबद्ध शुद्धि ही परम शुद्धि है। जो धर्म से ही पदार्थों का संचय करता है वही सब पवित्रताओं में उत्तम पवित्रता है अथार्त जो अन्याय से किसी पदार्थ का ग्रहण नहीं करता वही पवित्र है।
विद्वान् सहनशीलता से शुद्ध होता है ,बुरा काम करने वाला दान से ,छुपकर पाप करने वाला पश्चाताप से तथा वेद को जानने वाला वेदानुकूल आचरण से शुद्ध होता है।
अब प्रश्न उभरकर आता है कि धन कमाने में पवित्रता कैसे बरती जाये ?धन मनुष्य जीवन के लिए परमावश्यक वस्तु है। वेद ने खूब धन कमाने का आदेश दिया है। परन्तु कैसे ?मेहनत और ईमानदारी से। यह सभी के हित में है।
ऋग्वेद में बताया गया है कि मनुष्य पुष्टिकारक ,यशदायक और बलदायक धन ऐश्वर्य को ही प्रतिदिन अपने घोर परिश्रम से प्राप्त करें। कभी भी किसी दुष्ट के प्रसंग से धन इकट्ठा न करे ,न गलत काम से और न किसी वस्तु के होते हुए उसे छिपा करके ही। चाहे कितना भी दुःख उठाना पड़े तो भी पाप से धन न बटोरे। मनुस्मृति में बताया गया है कि सभी प्रकार की शुद्धियों में अर्थ से संबद्ध शुद्धि ही परम शुद्धि है। जो धर्म से ही पदार्थों का संचय करता है वही सब पवित्रताओं में उत्तम पवित्रता है अथार्त जो अन्याय से किसी पदार्थ का ग्रहण नहीं करता वही पवित्र है।
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