पहला सुख निरोगी काया
-अगर मानव शरीर ठीक न हो तो कोई कार्य सम्पन्न नहीं हो सकता। यदि शरीर गरमी ,सर्दी
,धूप और वर्षा को सहन नहीं कर सकता तो वह शरीर स्वस्थ नहीं माना जाता। महर्षि चरक ने
शरीर को स्वस्थ रखने की उत्तम विधि बतलाई है। उनका मत है कि जो मनुष्य हितभुक ,मितभुक
,ऋतभुक हो वह रोगी नहीं हो सकता।
हितभुक का अर्थ है
-ऐसी वस्तुएँ खाओ जो आपके लिए अच्छी है। केवल खाने के लिए मत जीओ जीने के लिए खाओ।
जिह्वा के स्वाद में फँस कर कूड़ा करकट न भरते जाओ। यह सोच कर खाओ कि जो खाते हो उससे
लाभ क्या होगा ?जो व्यक्ति साधना करना चाहते उनके लिए अपनी इन्द्रियों पर अधिकार करना
आवश्यक है। याद रखो जिन व्यक्तियों का अपनी जिह्वा पर सयंम नहीं वे किसी भी इन्द्रिय
पर सयंम नहीं कर सकते। स्वाद वाली वस्तुयें खाइये परन्तु यह सोच कर खाइये कि क्या वे
आपका हित करेंगी।
ऐसी वस्तुएं खाओ जिनसे
शरीर को लाभ हो मलाई खाओ ,दूध पीओ ,दही खाओ,मक्खन खाओ। वे वस्तुएं प्रयोग करो जिनमें
केवल जिह्वा को स्वाद न आये ,शरीर को भी स्वाद आये।
मलाई खाओ तो कितनी
यदि आप दो किलो मलाई ही खा जाये या डेढ़ किलो मक्खन ही चट कर जाये तो इससे शरीर को लाभ
के स्थान पर हानि होगी। अतः महर्षि चरक ने दूसरी बात कही है -मितभुक। अच्छी वस्तुएं
खाओ ,परन्तु थोड़ी खाओ। मर्यादा में रह कर खाओ। मर्यादा से अधिक पीया हुआ अमृत भी विष
हो जाता है
अच्छी वस्तुएं खाओ
,उचित मात्रा में खाओ। पेट में चार रोटियों की जगह हो तो दो रोटियां खाओ। दो रोटियों
की जगह पानी और हवा के लिए रहने दो। उतना खाओ जितना पच जाये इससे अधिक खाओगे तो हानि
होगी। हर समय खाओ ,खाओ ,खाओ। क्या इसीलिए बना है मनुष्य ?पेट की यह देगची है इसमें
एक सीमा से अधिक नहीं आता।
किन्तु केवल हितभुक
और मितभुक से कार्य नहीं बनता। मनुष्य यदि अपने चरम लक्ष्य को प्राप्त करना चाहता है
तो उसके लिए आवश्यक है कि वह ऋतभुक भी बने। अच्छी वस्तुएं खायें ,थोड़ी खाएं परन्तु
वे वस्तुयें खायें जो उत्तम कमाई से पैदा की गई हो।कोई वस्तु ठीक कमाई से मिली या नहीं
इसका बहुत मनुष्यों को पता नहीं लगता। जो लोग सदा पाप का अन्न खाते रहे हो ,उन्हें
पाप और पुण्य में अंतर् दिखाई नहीं देता। सफेद
चादर पर लगा हुआ धब्बा दिखाई देता है परन्तु काले कंबल पर लगा दाग किसे दिखाई देता
है ?वह तो साधना से ,ज्ञान से,प्रयत्न से ज्ञात होता है। पाप का अन्न खाने का परिणाम
है कि इससे आत्मा गिरती है यानि आगे बढ़ता हुआ मनुष्य इससे पीछे हटता है। मनुष्य यदि
हर प्रकार के रोगों से बचना चाहता है तो उसे
ऋतभुक भी होना चाहिए। अतः हितभुक ,मितभुक और ऋतभुक बन कर ही मनुष्य शारीरिक साधना कर
सकता है और अपने चरम लक्ष्य मोक्ष को प्राप्त कर सकता है।
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