मनुष्य - योनि ही सर्वश्रेष्ठ योनि है -केवल मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जो अपनी बुद्धि का विकास करके अपने लिए सब सुख -साधन की वस्तुएँ इकट्ठी कर सकता है। पृथ्वी पर ,जल में और अंतरिक्ष में भ्रमण कर सकता है। मनुष्य के मस्तिष्क का कमाल है कि बाकि सब योनियों के प्राणी मनुष्य के पराधीन रहते हैं। मनुष्य में कर्म करने की स्वतंत्रता है। जितनी भी तरक्की देख रहे हैं ,वह किसी और ने नहीं ,मनुष्य ने ही की है।
जो सबसे महत्वपूर्ण है वह ईश्वरीय ज्ञान वेद है जो ईश्वर केवल मनुष्यों को ही प्रदान करता है। इससे भी यह प्रमाणित होता है कि ईश्वर की मनुष्य -जाति के ऊपर विशेष कृपा है। मनुष्य- योनि में ही भोग और योग होता है जबकि इसके अलावा सब योनियों में केवल भोग होता है।
संक्षेप में मनुष्य के पास वेद है ,विवेक है ,धर्म है ,कर्म करने की क्षमता और स्वतंत्रता है और ईश्वर -प्राप्ति के सब साधन उपलब्ध हैं -इससे वह सब प्रकार के दुखों से निवृति पाकर नितांत सुख प्राप्त कर सकता है -परम आनंद की प्राप्ति कर जन्म -मरण के बंधन से परान्तकाल तक मोक्ष प्राप्त कर सकता है ,इसीलिए मनुष्य -योनि ही सर्वश्रेष्ठ योनि है।
जो सबसे महत्वपूर्ण है वह ईश्वरीय ज्ञान वेद है जो ईश्वर केवल मनुष्यों को ही प्रदान करता है। इससे भी यह प्रमाणित होता है कि ईश्वर की मनुष्य -जाति के ऊपर विशेष कृपा है। मनुष्य- योनि में ही भोग और योग होता है जबकि इसके अलावा सब योनियों में केवल भोग होता है।
संक्षेप में मनुष्य के पास वेद है ,विवेक है ,धर्म है ,कर्म करने की क्षमता और स्वतंत्रता है और ईश्वर -प्राप्ति के सब साधन उपलब्ध हैं -इससे वह सब प्रकार के दुखों से निवृति पाकर नितांत सुख प्राप्त कर सकता है -परम आनंद की प्राप्ति कर जन्म -मरण के बंधन से परान्तकाल तक मोक्ष प्राप्त कर सकता है ,इसीलिए मनुष्य -योनि ही सर्वश्रेष्ठ योनि है।
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