हमारा पुनर्जन्म होता
है या नहीं यह एक विचारणीय प्रश्न है। वैदिक मान्यता के अनुसार आत्मा अपने कर्मों के अनुसार शरीर बदलता रहता है। सभी शरीरों में मात्र
मनुष्य शरीर ऐसा है जिसमे आत्मा कर्म करने में स्वतंत्र है। इस शरीर में जहां वह पिछले
किये कर्मो का फल भोगता है वहां नये कर्म भी करता है।इसीलिए मनुष्य शरीर को भोग योनि`तथा
कर्म योनि कहा जाता है। अन्य सभी योनियां केवल भोग योनियां है क्योंकि उनमें जीव स्वतंत्र
हो कर कर्म नहीं कर सकता। वह या तो पराधीन होकर काम करता या स्वभाव से करता है
चूँकि मन एक
जड़ पदार्थ है
,इसीलिए मन पर
भोजन का प्रभाव
पड़ता है। जैसा
खावे अन्न वैसा
होवे मन। मन
संस्कारों का कोष
है। सभी संस्कार
मन पर पड़ते
है तथा वही
जमा रहते है।
जो संस्कार प्रबल
होते है वे
ही उभर कर
सामने आते है।
जो दुर्बल होते
है वे दबे
पड़े रहते है।
जैसे किसी गढ़े
में बहुत प्रकार
के अनाज डाले
जायं -पहले गेहूँ
,फिर चने ,फिर
चावल ,उसके ऊपर
मूंग ,उड़द आदि।
देखने वाले को
वही दिखाई देगा
जो सबसे ऊपर
होगा। नीचे का
कुछ भी दिखाई
न देगा।
मनुष्य से भिन्न
सभी योनियों की ऐसी अवस्था है जैसी तलवार की। कोई व्यक्ति तलवार चला कर अच्छा या बुरा
काम करता है तो उसका फल या दंड तलवार चलाने वाले को मिलता है तलवार को नहीं।
यदि शुभ कर्म अधिक
हो तो देव योनि विद्वान का शरीर मिलता है। बुरे कर्म अधिक हो तो पशु पक्षी कीट पतंगा
आदि का जन्म मिलता है। अच्छे और बुरे कर्म बराबर हो तो साधारण मनुष्य का जन्म मिलता
है आत्मा मनुष्य या पशु पक्षी जिस भी योनि में जाता है उसी के अनुरूप ढल जाता है -जैसे
पानी में जो रंग डाला जाता है पानी उसी रंग का बन जाता है। जिस प्रकार मनुष्य फटें
पुराने कपड़ों को उतार कर नये वस्त्र पहन लेता है ठीक उसी प्रकार यह आत्मा जीर्ण शरीर को छोड़ कर नया शरीर
धारण कर लेती है। अतः मनुष्य जन्म में किए हुए कर्मों के अनुसार ही आत्मा को शरीर मिलता
है
अब प्रश्न उभर कर आता
है कि हमें पूर्व जन्म याद क्यों नहीं रहता
*इसका मुख्य कारण यह है कि जीव का ज्ञान दो प्रकार का होता है एक स्वाभाविक और दूसरा
नैमितिक। स्वाभाविक ज्ञान सदा रहता है और नैमित्तिक ज्ञान घटता रहता है। जीव को अपने
अस्तित्व का जो ज्ञान है वह स्वाभाविक है परन्तु आँख कान आदि इंद्रियों से जो ज्ञान
प्राप्त होता है वह नैमितिक ज्ञान है।नैमित्तिक ज्ञान तीन कारणों से उत्पन्न होता है
-देश काल और वस्तु। इन तीनों का जैसा जैसा इंद्रियों से संबंध होता है वैसा वैसा संस्कार
मन पर पड़ता है। इनसे संबंध हटने पर इनका ज्ञान भी नष्ट हो जाता है। पूर्व जन्म का देश
काल शरीर का वियोग होने से उस समय का नैमितिक ज्ञान नहीं रहता। अतः हमें पूर्व जन्म
की बातें याद नहीं रहती।
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