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Sunday, June 17, 2018

ईश्वर के गुण ,कर्म ,स्वभाव

 Updesh Kumari     June 17, 2018     Gyaan Sangam     No comments   

ईश्वर के गुण ,कर्म ,स्वभाव क्या हैं ?हम ईश्वर की स्तुति तो करते हैं पर पूर्ण रूप से उनके गुणों को नहीं जान पाते। आइये जाने क्या हैं हमारे सर्वशक्तिमान प्रभु के गुण ,कर्म व् स्वभाव ?

1 ईश्वर निराकार है -ईश्वर का कोई रूप (आकृति ,वर्ण ,स्वरूप )नहीं जिसे आंखो से देखा जा सके। उसकी कोई मूर्ति भी नहीं बन सकती। इसी कारण वह आँखों से नहीं देखा जा सकता। नाक ,कान ,जिह्वया ,त्वचा -इन्द्रियां भी उसका अनुभव नहीं कर सकती। वह हृदय में स्थित है। जो उसे हृदय से या मन से जान लेते हैं वे आनंद को प्राप्त होते हैं। 

2 ईश्वर स्थूल और सूक्ष्म दोनों है -ईश्वर सूक्ष्म से सूक्ष्म तथा सर्वत्र  व्यापक है। वह सूक्ष्म इतना है कि सूक्ष्म से सूक्ष्म वस्तु में भी समाया हुआ है। कोई अणु भी उसकी उपस्थिति के बिना नहीं है। सभी जगह व्यापक होने के कारण उसे स्थूल से स्थूल भी कहा जा सकता है।
3ईश्वर अंर्तयामी है -आत्मा शरीर में बहुत सूक्ष्म पदार्थ है परन्तु ईश्वर उस आत्मा में भी विध्यमान है। इसी कारण से ईश्वर को अन्तर्यामी कहा गया है। 

3 ईश्वर अजन्मा ,अनन्त और अनादि है -ईश्वर कभी उत्पन्न नहीं होता। जो वस्तु उत्पन्न होती है वह मरती भी अवश्य है। क्योंकि ईश्वर कभी उत्पन्न नहीं होता। वह परमात्मा अनादि स्वरूप वाला है ,उसको कोई बनाने वाला नहीं है ,उसके माता पिता नहीं हैं। उसका गर्भवास ,जन्म ,मृत्यु आदि नहीं होते। वह  सदा रहने वाला है। 

4 ईश्वर ज्ञानवान तथा न्यायकारी है -संसार में फैले सम्पूर्ण सद्ज्ञान का स्रोत ईश्वर ही है। वह पूर्ण ज्ञानी है। वेदों के रूप में उसने ही सारा ज्ञान प्राणिमात्र के कल्याण के लिए दिया है। वह सभी जीवों के कर्मों को देखता तथा जानता है। उन्हें उनके कर्मों के अनुसार यथायोग्य सुख व् दुःख के रूप में फल देता है। सभी जीव कर्म करने में स्वतंत्र हैं परन्तु उन कर्मों के अनुसार फल भोगने में ईश्वर की व्यवस्था से परतंत्र हैं। यानि किए हुए कर्म का फल भोगने में जीव की मर्जी नहीं चलती ,उसे फल भोगना ही पड़ता है। 

5 उत्पति और प्रलय करने वाला भी ईश्वर ही है -सृष्टि की रचना करना ,सभी जीवों को उनके कर्मों के अनुसार उत्पन्न करना तथा सृष्टि की प्रलय करना भी उसी के हाथ में है। 

6 ईश्वर आनंद स्वरूप है -ईश्वर के समीप जाने से आनंद प्राप्त होता है। जैसे सर्दी में ठिठुरते हुए को आग के पास जाने से सुख मिलता है। ईश्वर की जीव से समय या स्थान की दूरी नहीं अपितु ज्ञान की दूरी है। पवित्र मन से उस ईश्वर का ध्यान करने से उसकी समीपता अनुभव होती है।
 
7 ईश्वर दयालु है -ईश्वर ने दया करके ही अनंत पदार्थ हमारे सुख के लिए दे रखे हैं। जैसे वायु ,अन्न ,जल ,सब्जियाँ ,फल ओषधियाँ आदि। लेकिन हम इनका भी ठीक प्रकार से प्रयोग नहीं कर पा रहे। 

8 ईश्वर निर्विकार है -ईश्वर में राग ,द्वेष ,मोह ,लोभ ,काम ,क्रोध ,अहंकार आदि विकार नहीं आते। वे किसी से ज्यादा प्रेम व किसी से ज्यादा शत्रुता नहीं रखते। वे निरपेक्ष रहते हैं। 

9 ईश्वर अनुपम हैं -ईश्वर के समान कोई दूसरा नहीं अविधा आदि दोष न होने से वह सदा पवित्र है। वह कभी भी पाप कर्म नहीं करता। वह सर्वज्ञ है। वह सभी जीवों की मनोवृतियों को जानता है। वह दुष्ट पापियों  का तिरस्कार करने वाला है।

10 ईश्वर सर्वशक्तिमान है -ईश्वर को अपनी दया ,न्याय ,सृष्टि की रचना ,प्रलय आदि काम करने के लिए किसी की सहायता की आवश्यकता नहीं है। बिना हाथ ,पैर सहज में ही अपने सभी काम वह स्वंय ही कर लेता है। वह  किसी का सहारा नहीं लेता। 

उपनिषद में बताया गया है कि जीवात्मा में परमात्मा उसी प्रकार रहता है जैसे तिलों में तेल ,दही में घी और झरनो में पानी। जिस प्रकार तिलों को पीड़ने से ,दही को बिलोने से ,झरनों को खोदने से ये प्रकट होते हैं उसी प्रकार सत्य और तप से ही प्रभु   को जाना जा सकता है। जैसे मकड़ी अपने शरीर के अंदर से जाले बनाती है और फिर उन्हें अपने ही अंदर समेट लेती है ,जैसे पृथ्वी से ओषधियाँ उत्पन्न होती हैं जैसे जीवित पुरुष के शरीर में बाल निकलते हैं ,उसी प्रकार ईश्वर के प्रकृति रूपी शरीर से यह संसार बन जाता है। 
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Updesh Kumari
सुंदर विचारों को लिखकर प्रकट करना मेरी आदत में शुमार है। मैने सन 1995 में हिंदी साहित्य में (शिवप्रसाद का कथा साहित्य ) शोध प्रबंध लिखा था। मुझे अध्यापन कार्य करते हुए पच्चीस वर्ष से ज्यादा हो चुके हैं। विचारों को एकत्रित कर सहेजना मेरी खूबी रही है। मुझे अपने विचार व्यक्त करना भी बहुत अच्छा लगता है। मुझे ये बतलाते हुए गर्व है कि मेरे द्वारा पढ़ाये गये छात्र शत -प्रतिशत परिणाम लाये हैं और उच्च पदों पर कार्यरत हैं। ये कहने की कोई आवश्यकता नहीं है कि विभिन्न कार्यक्रमों को संचालित करने का सदैव अवसर मिलता रहा है। मैं अपने पारिवारिक व कार्यस्थल से पूर्ण संतुष्ट हूँ। लिखना मेरा शौक है मजबूरी नहीं। मै आशा करती हू कि आप मेरे द्वारा लिखे गये को पसंद करेंगें।
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