ईश्वर भक्ति क्या है
?ईश्वर भक्ति ,स्तुति ,पूजा ,नाम स्मरण ,गुणगान ,कीर्तन आदि जो हम करते है वह ईश्वर
के लिए नहीं है। हमारे कुछ भी करने से ईश्वर को लाभ ,हानि ,सुख ,दुःख नहीं होता और
न ही वह प्रसन्न ,अप्रसन्न होता है। हमारे किसी काम का भी ईश्वर के ऊपर कोई प्रभाव
नहीं होता। ईश्वर को सुनाने के लिए न ऊँची बांग देने की जरूरत है ,न घंटी बजाने की
और न लाउडस्पीकर लगाने की। ईश्वर सुगंध ,दुर्गंध से परे है ,इसलिए उसके लिए धूपबत्ती
लगाने की कोई जरूरत नहीं। ईश्वर को कोई शक्ल सूरत नहीं ,इसलिए उसे कपड़े पहनाने ,तिलक
लगाने या साज श्रृंगार करने का कोई तुक नहीं।
हम जो कुछ भी करते
है सब अपने लिए करते हैं। ईश्वर हमारे कामों के अनुसार हमें अच्छा या बुरा फल देता
है। कुछ कामों का फल उसी समय मिल जाता है और कुछ कामों का फल बाद में उचित अवसर आने
पर मिलता है। जो फल हमें बाद में मिलता है उसे हम किस्मत कह देते हैं।
ईश्वर भक्ति का अर्थ
है -ईश्वर के गुणों को याद करना तथा उन गुणों को अपने जीवन में अपनाना। ईश्वर न्यायकारी
है ,वह सदा पक्षपात रहित होकर न्याय ही करता है।वह किसी की सिफारिश नहीं मानता। वह
अन्याय कभी नहीं करता। ईश्वर सत्यकर्ता है। वह सदा ठीक काम ही करता है ,गलत काम कभी
नहीं करता। ईश्वर ज्ञानवान है। सारा सच्चा ज्ञान ईश्वर के पास है। वह किसी बात में
भी अज्ञानी नहीं है। ईश्वर पवित्र है ,अविद्या आदि दोष उसमें नहीं हैं। ईश्वर दयालु
है उसने दया करके हमारे उपभोग के लिए हजारों पदार्थ दे रखें हैं। अतः हमें भी न्यायकारी
,सत्यकर्ता ,ज्ञानवान ,पवित्र ,दयालु बनना चाहिए। हम ईश्वर की भक्ति तो करते हैं परन्तु
उसके गुणों को नहीं अपनाते तो हमारा भक्ति करना बेकार है तथा हमारी वह स्थिति उस गधे
के समान है जो अपनी पीठ पर लाद क़र धान को ढोता तो है पर वह उसे खा नहीं सकता।
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