हम हमेशा खुद को हर चीज के केंद्र में मानने लग जातें हैं और उलझन में पड़ जाते हैं। स्वयं को किसी घटना के केंद्र में देखना स्वाभाविक है। किन्तु दुनियाभर की आंखें आपको ही देख रही हैं ऐसा सोचना बहुत भारी भूल है। किसी के पास इतनी फुर्सत नहीं है कि आपको देखें। आपको ही खुद को देखना है कि कहां जा रहे हैं।
महाभारत के अंत में पांडव कर्ण की अंत्येष्टि में गए। तब पता चला कि कर्ण उनका सबसे बड़ा भाई था। कुंती चाहती थी कि युधिष्ठिर कर्ण की चिता को अग्नि दे।कुंती ने उसे कर्ण को नदी में बहाने की कहानी सुनाई। यह जानने के बाद युधिष्ठिर मां को माफ़ नहीं कर सका। उसने सभी महिलाओं को कोसना शुरू कर दिया। दरअसल वह खुद को कुंती से श्रेष्ठ साबित कर रहा था। जब हम स्वयं को केंद्र में रखकर लोगों के साथ हुई घटना और उनकी प्रतिक्रिया देखते हैं तो उन्हें गलत समझने लगते हैं। अपनी श्रेष्ठता के दम्भ में हम यह भी आकलन नहीं करते कि किन हालातों में वह इसमें उलझा। परन्तु जब हम स्वयं को हटा देते हैं तो हमें सच्चाई स्पष्ट नजर आने लगती है। यदि किसी के आत्म -केंद्रित बर्ताव को हम अपने ही आत्मकेंद्रित नजरिये से देखेँगे तो कोई अर्थ नहीं निकलेगा।
उलटे इससे हम दुखी व कुंठित होने लगेँगे। हम खुद को केंद्र में रखकर दुनिया की घटनाओं और उसपर लोगों की प्रतिक्रिया का आकलन करते हैं। इससे हम खुद के अलावा दूसरों से उलझ जाते हैं। हमारे साथ आए दिन ऐसा होता रहता है। खराब मौसम से लेकर इंटरनेट या शेयर मार्केट पर किये जाने वाले कमेंट तक हमें परेशान कर देते हैं। हमें लगता है कि यह हम पर कहर बरपा रहे हैं। हमारे आसपास की दुनिया में घटनाएं हमें केंद्र में रखते हुए नहीं हो रही हैं ,हमें उससे क्या लेना -देना। ऐसे में क्या किया जा सकता है? यदि किसी बात का आपको दुःख हो रहा है तो इसका मतलब है ,आप स्वयं को उस हालात में घेरे हुए हैं, बाहर निकल नहीं पा रहे हैं। कोई शब्द ,कोई वाक्य आपको छलनी कर रहा है ,यहां से विषाद शुरू होता है और आप दुखी रहने लग जाते हो। अर्जुन ने जब खुद को कृष्ण को समर्पित कर दिया ,तो फिर वह केंद्र में कहीं नहीं था ,बस कृष्ण ही कृष्ण थे। इसी प्रकार केंद्र में आप भी नहीं हैं। हालात केवल आपके लिए नहीं हैं। अतः आप अपने को तटस्थ रखकर खुश रखें।
महाभारत के अंत में पांडव कर्ण की अंत्येष्टि में गए। तब पता चला कि कर्ण उनका सबसे बड़ा भाई था। कुंती चाहती थी कि युधिष्ठिर कर्ण की चिता को अग्नि दे।कुंती ने उसे कर्ण को नदी में बहाने की कहानी सुनाई। यह जानने के बाद युधिष्ठिर मां को माफ़ नहीं कर सका। उसने सभी महिलाओं को कोसना शुरू कर दिया। दरअसल वह खुद को कुंती से श्रेष्ठ साबित कर रहा था। जब हम स्वयं को केंद्र में रखकर लोगों के साथ हुई घटना और उनकी प्रतिक्रिया देखते हैं तो उन्हें गलत समझने लगते हैं। अपनी श्रेष्ठता के दम्भ में हम यह भी आकलन नहीं करते कि किन हालातों में वह इसमें उलझा। परन्तु जब हम स्वयं को हटा देते हैं तो हमें सच्चाई स्पष्ट नजर आने लगती है। यदि किसी के आत्म -केंद्रित बर्ताव को हम अपने ही आत्मकेंद्रित नजरिये से देखेँगे तो कोई अर्थ नहीं निकलेगा।
उलटे इससे हम दुखी व कुंठित होने लगेँगे। हम खुद को केंद्र में रखकर दुनिया की घटनाओं और उसपर लोगों की प्रतिक्रिया का आकलन करते हैं। इससे हम खुद के अलावा दूसरों से उलझ जाते हैं। हमारे साथ आए दिन ऐसा होता रहता है। खराब मौसम से लेकर इंटरनेट या शेयर मार्केट पर किये जाने वाले कमेंट तक हमें परेशान कर देते हैं। हमें लगता है कि यह हम पर कहर बरपा रहे हैं। हमारे आसपास की दुनिया में घटनाएं हमें केंद्र में रखते हुए नहीं हो रही हैं ,हमें उससे क्या लेना -देना। ऐसे में क्या किया जा सकता है? यदि किसी बात का आपको दुःख हो रहा है तो इसका मतलब है ,आप स्वयं को उस हालात में घेरे हुए हैं, बाहर निकल नहीं पा रहे हैं। कोई शब्द ,कोई वाक्य आपको छलनी कर रहा है ,यहां से विषाद शुरू होता है और आप दुखी रहने लग जाते हो। अर्जुन ने जब खुद को कृष्ण को समर्पित कर दिया ,तो फिर वह केंद्र में कहीं नहीं था ,बस कृष्ण ही कृष्ण थे। इसी प्रकार केंद्र में आप भी नहीं हैं। हालात केवल आपके लिए नहीं हैं। अतः आप अपने को तटस्थ रखकर खुश रखें।
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