निद्रा और मृत्यु दोनों सगी बहनों की भाँति हैं। मृत्यु माँ है तो निद्रा माँ -सी है अथार्त उसकी छोटी बहन है। जितनी आवश्यकता नींद की होती है ,मृत्यु की आवश्यकता उससे कहीं अधिक होती है। मृत्यु का महत्व नींद की तुलना से अधिक है। जीवन -भर में प्राणी कितनी ही नींदें कर ले ,परन्तु अंतिम नींद मृत्यु की ही गोद में करनी पड़ती है। नींद की अवधि कुछ ही घंटों के लिए होती है ,परन्तु जिसे मृत्यु सदा के लिए गोद में सुला देती है उसे फिर कोई जगा नहीं सकता।
निद्रा और मृत्यु में बहुत हद तक समानता है। निद्रा में दिन -भर की शारीरिक थकान मिटती है ,आनंद -सा प्राप्त होता है ,फिर सुबह उठने पर स्फूर्ति ,ताजगी मिलती है ;उसी प्रकार मृत्यु सारे जीवन की थकान दूर करती है ,पुराने शरीर को समाप्त कर नया शरीर प्रदान करती है। नई स्फूर्ति ,नए साहस के साथ नया जन्म मिलता है। जीवात्मा पुनः कर्म करता है और उन्नति का एक और अवसर मिलता है ,ईश्वर प्राप्ति का एक और अवसर प्राप्त होता है। जहां पर उसे आनंद ही आनंद मिलता है।
कभी -कभी मनुष्य को नींद नहीं अपनाती ,नींद नहीं आती ,लोग नींद के लिए परेशान होते हैं ,ओषधियाँ लेते है फिर भी नींद नसीब नहीं होती ,परन्तु मृत्यु की गोद में सभी प्राणियों को सदा के लिए नींद अवश्य ही प्राप्त होती है। नींद ठुकरा सकती है ,परन्तु मृत्यु किसी को नहीं ठुकराती ,सबको गले लगाती है ,सबको अपनी आग़ोश में पनाह देती है। यही फ़र्क है निद्रा और मृत्यु में।
निद्रा और मृत्यु में बहुत हद तक समानता है। निद्रा में दिन -भर की शारीरिक थकान मिटती है ,आनंद -सा प्राप्त होता है ,फिर सुबह उठने पर स्फूर्ति ,ताजगी मिलती है ;उसी प्रकार मृत्यु सारे जीवन की थकान दूर करती है ,पुराने शरीर को समाप्त कर नया शरीर प्रदान करती है। नई स्फूर्ति ,नए साहस के साथ नया जन्म मिलता है। जीवात्मा पुनः कर्म करता है और उन्नति का एक और अवसर मिलता है ,ईश्वर प्राप्ति का एक और अवसर प्राप्त होता है। जहां पर उसे आनंद ही आनंद मिलता है।
कभी -कभी मनुष्य को नींद नहीं अपनाती ,नींद नहीं आती ,लोग नींद के लिए परेशान होते हैं ,ओषधियाँ लेते है फिर भी नींद नसीब नहीं होती ,परन्तु मृत्यु की गोद में सभी प्राणियों को सदा के लिए नींद अवश्य ही प्राप्त होती है। नींद ठुकरा सकती है ,परन्तु मृत्यु किसी को नहीं ठुकराती ,सबको गले लगाती है ,सबको अपनी आग़ोश में पनाह देती है। यही फ़र्क है निद्रा और मृत्यु में।
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