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Monday, June 25, 2018

अपनी खामियां स्वीकारें तब ही ईश्वर हमारी जिम्मेदारी लेते हैं।

 Updesh Kumari     June 25, 2018     Gyaan Sangam     No comments   

हर घर में आईना होता है। हम इसमें खुद को देखकर खुश होते हैं लेकिन कहे कि खुद को तो देख लीजिए ,तो हमें गुस्सा आता है। कोई भी अपनी कमजोरियां नहीं देखना चाहता है। हमारे पास हमेशा दूसरों को देखने की दृष्टि रहती है।. दूसरे की कमियां हमें बहुत जल्दी दिखती हैं। दूसरे की ओर लगातार देखते रहते हैं तो हम अपनी कमियां भूलने लगते हैं। हम कभी खुद को आईना दिखने की कोशिश नहीं करते हैं
स्वयं का मूल्यांकन एक सकारात्मक अनुभव है। अपनी खामियां जानने का लाभ यह है कि जैसे ही हमें अपनी सीमाएं पता चलती हैं ,हम उनके पार जाने की कोशिश करते हैं। अयोध्याकाण्ड में राम के वन -गमन के समय दशरथ भरी सभा में आईना देखते है। यह आत्मविश्लेषण है। सबके सामने आईना देखना कठिन है ,लेकिन जो साधक होगा वह वह सबके सामने ही आईना देखेगा। अकेले में यह कबूल कर लेना कि आप पापी हैं ,बहुत आसान है लेकिन लोगों के सामने स्वीकारना आसान नहीं है। हम चाहते हैं कि हमारी गलतियां कोई और न जाने। दूसरों को पता चलेगा तो वे निंदा करेंगे ,जिससे हम बचना चाहेंगे।
सच्चा साधक वह होता है, जो अपने आप में बुनियादी असंतुलन देख पाता है और उसे संतुलित करने की कोशिश करता है। जीवन का सबसे बड़ा संघर्ष क्या है ?खुद को पहचान पाना ,खुद को स्वीकार करना ,समस्त गलतियों और कमियों के साथ स्वयं का आलिंगन करना। चाहे किसी भी स्तर पर हो ,वह घर हो या कार्यस्थल ,सीखने का सबसे अहम उपाय प्रतिबिम्ब है। आपको अपने में ही बदलाव की जरूरत होती है। सारी शारीरिक और मानसिक बीमारियों से घिरा मानव यह तो जानता है कि उसे शारीरिक तकलीफ है ,लेकिन वह यह नहीं समझता है कि उसे मानसिक तकलीफ भी है।
सुग्रीव में कई तरह की कमियां थी लेकिन भगवान राम को उनकी सादगी भा गई। राम को अपनी कहानी सुनाते समय स्वीकार कर लिया था कि वे डरपोक और कायर हैं उन्होंने तथ्य छिपाये नहीं। राम सुग्रीव से बेहद खुश हुए और उन्हें सरलता का प्रतीक माना। जब सुग्रीव नेअपनी कमियां नहीं छिपाई तभी भगवान राम उसकी जिम्मेदारी स्वीकारने को तैयार हुए। शास्त्रों में भी अपनी कमियों को स्वीकारने को महत्व दिया है। जिंदगी में स्वयं का मूल्यांकन अति आवश्यक है।

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Updesh Kumari
सुंदर विचारों को लिखकर प्रकट करना मेरी आदत में शुमार है। मैने सन 1995 में हिंदी साहित्य में (शिवप्रसाद का कथा साहित्य ) शोध प्रबंध लिखा था। मुझे अध्यापन कार्य करते हुए पच्चीस वर्ष से ज्यादा हो चुके हैं। विचारों को एकत्रित कर सहेजना मेरी खूबी रही है। मुझे अपने विचार व्यक्त करना भी बहुत अच्छा लगता है। मुझे ये बतलाते हुए गर्व है कि मेरे द्वारा पढ़ाये गये छात्र शत -प्रतिशत परिणाम लाये हैं और उच्च पदों पर कार्यरत हैं। ये कहने की कोई आवश्यकता नहीं है कि विभिन्न कार्यक्रमों को संचालित करने का सदैव अवसर मिलता रहा है। मैं अपने पारिवारिक व कार्यस्थल से पूर्ण संतुष्ट हूँ। लिखना मेरा शौक है मजबूरी नहीं। मै आशा करती हू कि आप मेरे द्वारा लिखे गये को पसंद करेंगें।
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