जीवन में आध्यात्मिक
उन्नति प्राप्त करनी हो तो अच्छी सोच विकसित करनी होगी ,इसके लिए आवश्यक है कि परमात्मा
से प्रेममय अनुभूति बनाये रखें। हम मंदिर या किसी धार्मिक स्थल पर जाते है लेकिन हम
जानते ही नहीं है कि हम यह सब क्यों कर रहे है ,तो कहीं हमारे इस तरह के कार्य डर की
उपज तो नहीं है ? ऐसा भय जो हमें
लगता है कि हम इन सब परम्पराओं का पालन नहीं करेँगे तो भगवान नाराज हो सकते है। वे
हमें दंडित करेंगे। हम आशा करते है कि परम्पराओं का पालन कर हम अपने पाप धो लेंगे।
इतना ही नहीं इनका पालन करने से भगवान हमें वह सब प्रदान करेंगे जो हमे अच्छा जीवन
जीने के लिए इस धरती पर जरूरी लगता है। उसमें समृद्धि ,पैसा,सुख और सफलता शामिल है।
किन्तु भगवान से इस
तरह का संबंध बहुत ज्यादा अंधविश्वासी और सतही लगता है। आपमें तब और गहराई आ जाती है
जब आप कुछ पाने के लिए इन रीतियों का पालन करते है।जैसे हम परीक्षा के दिनों में भगवान
के मंदिर जाते है ,ताकि अच्छे अंकों से पास हो सके या फिर लम्बे समय से टल रही पदोन्नति
के लिए हम उनकी इबादत करने पहुंच जाते है। जैसे मैं समय निकाल कर आपके मंदिर में आया
हूं ,इसके एवज में आप मुझे वह दो ,जो मुझे चाहिए। यहां हम भय की बजाय उम्मीद लेकर गए
है।
भगवान के पास जाने
का एक और मकसद है -कर्तव्य या ड्यूटी। हम इबादत आभार व्यक्त करने के लिए भी करते हैं।
हमें वायु ,जल ,आहार भगवान ने दिया है ,उसका धन्यवाद हमें उसे देना होता है। लेकिन
जब हम कहीं से धोखा खा जाते है तो हम भगवान को ही कोसने लग जाते है।
वैदिक शास्त्र कहते
हैं कि भय,आशा और कर्तव्यपालन पर्याप्त नहीं भगवान हमसे संबंध बनाना चाहते हैं। यदि
हम भगवान के साथ कुछ करने जा रहे हैं तो उसमें प्रेम शामिल कर दे तो वह उन्हें प्रसन्न
करता है। हमे परम्पराओं ,धर्म ,आध्यात्म के मायने मालूम हो। जब तक प्रेम नहीं होगा
तब तक इन शब्दों के कोई मायने नहीं रह जायेंगे। इसलिए परमात्मा के पास भय से नहीं प्रेम
के साथ जाना उचित है तभी वे हमारा ठीक मार्ग प्रशस्त करेंगे।
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