दिन और रात के संधिकाल में (प्रातः 4 से 5 बजे तथा सायं 6 से 7 बजे के बीच में )जब वातावरण शुद्ध -शांत और मधुर होता है ,कहीं शुद्ध -पवित्र समतल स्थान पर ,एकांत में ,जहां शुद्ध वायु का आवागमन हो ,वहां सुखावस्था में सीधे बैठकर प्रभु के निज नाम ओउम का अर्थपूर्वक अपने मन में जाप करना तथा ईश्वर के गुणों को विचारते रहना और नाम -स्मरण में मग्न रहना ,यही नाम -स्मरण की सही व् उचित विधि है।
संसार के सब विचारों को हटाकर केवल ईश्वर के गुणों को स्मरण करके ,स्वयं आनंदित होना ,प्रसन्नचित होकर उन गुणों का मस्तिष्क में साक्षात्कार करना यही प्रभु -स्मरण है। जैसे ईश्वर सर्वरक्षक है ,सबका स्वामी ,सर्वशक्तिमान है ,सर्वान्तर्यामी है ,हमारा माता -पिता -गुरु -मित्र -बंधु है ,वह न्यायकारी है ,दयालु -कृपालु है ,इसी प्रकार ईश्वर के गुणों को प्रत्यक्ष करना चाहिए। जब इन गुणों को धारण करने की हमने ठान ली है तो ईश्वर की भी हम पर दया -कृपा रहती है ,अतः ईश -नाम -स्मरण करना सार्थक हो जाता है। यही नाम की कमाई है जो हम कमा सकते हैं। जितनी अच्छाइयों को धारण करते हैं ,समझो उतनी अधिक ईश्वर के नाम की कमाई करते हैं। मृत्यु के समय यही नाम की कमाई साथ जाती है।
केवल नाम -स्मरण से ,रटने से ,आँख बंद करके नाम जपने से कोई लाभ नहीं है ,व्यर्थ में समय गँवाना है। समय का सही सदुपयोग करना सीखें। भक्ति -भाव से जप करें तो आनंद आता है।
ओउम --नाम -स्मरण करते ही आपने अनुभव किया होगा कि प्रसन्नता की लहर हमारे दिलो -दिमाग में छा जाती है। सच्ची श्रद्धा और भक्ति से ओउम नाम जपने से जब आनंद की अदभुत अनुभूति होने लगे तो समझना चाहिए कि ईश्वर की हम पर कृपादृष्टि पड़ रही है। वक्त कैसे गुजरता है पता ही , नहीं चलता ,आनंद में डूबे रहते हैं ,कहां बैठे है कोई सुध -बुध नहीं रहती। केवल जाग्रतावस्था में नाम की कमाई होती है ,यही नाम -स्मरण है ,इसी को ध्यानावस्था भी कहते हैं।
संसार के सब विचारों को हटाकर केवल ईश्वर के गुणों को स्मरण करके ,स्वयं आनंदित होना ,प्रसन्नचित होकर उन गुणों का मस्तिष्क में साक्षात्कार करना यही प्रभु -स्मरण है। जैसे ईश्वर सर्वरक्षक है ,सबका स्वामी ,सर्वशक्तिमान है ,सर्वान्तर्यामी है ,हमारा माता -पिता -गुरु -मित्र -बंधु है ,वह न्यायकारी है ,दयालु -कृपालु है ,इसी प्रकार ईश्वर के गुणों को प्रत्यक्ष करना चाहिए। जब इन गुणों को धारण करने की हमने ठान ली है तो ईश्वर की भी हम पर दया -कृपा रहती है ,अतः ईश -नाम -स्मरण करना सार्थक हो जाता है। यही नाम की कमाई है जो हम कमा सकते हैं। जितनी अच्छाइयों को धारण करते हैं ,समझो उतनी अधिक ईश्वर के नाम की कमाई करते हैं। मृत्यु के समय यही नाम की कमाई साथ जाती है।
केवल नाम -स्मरण से ,रटने से ,आँख बंद करके नाम जपने से कोई लाभ नहीं है ,व्यर्थ में समय गँवाना है। समय का सही सदुपयोग करना सीखें। भक्ति -भाव से जप करें तो आनंद आता है।
ओउम --नाम -स्मरण करते ही आपने अनुभव किया होगा कि प्रसन्नता की लहर हमारे दिलो -दिमाग में छा जाती है। सच्ची श्रद्धा और भक्ति से ओउम नाम जपने से जब आनंद की अदभुत अनुभूति होने लगे तो समझना चाहिए कि ईश्वर की हम पर कृपादृष्टि पड़ रही है। वक्त कैसे गुजरता है पता ही , नहीं चलता ,आनंद में डूबे रहते हैं ,कहां बैठे है कोई सुध -बुध नहीं रहती। केवल जाग्रतावस्था में नाम की कमाई होती है ,यही नाम -स्मरण है ,इसी को ध्यानावस्था भी कहते हैं।
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