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Wednesday, August 29, 2018

दान व त्याग से मनुष्य का मान -सम्मान बढ़ता है।

 Updesh Kumari     August 29, 2018     Gyaan Sangam     No comments   

    समाज में रहते हुए मनुष्य को कमाना भी चाहिए और श्रद्धानुसार दान भी अवश्य करना चाहिए। इससे उसे समाज में सम्मान और इष्टलोक तथा परलोक में पुण्य मिलता है। एक दृष्टांत देखिए जिसमें एक कंजूस का हृदय परिवर्तन होता है और वह महान त्यागी और सम्मानित सेठ बन जाता है।
     एक नगर में एक कंजूस रहता था। उस कंजूस की कंजूसी सर्वप्रसिद्ध थी। वह खाने ,पहनने तक में भी कंजूस था। एक बार उसके घर से एक  कटोरी गुम हो गई जिसके दुःख में कंजूस ने तीन दिन तक कुछ न खाया। कंजूस की मोहल्ले में कोई इज्जत नहीं थी ,क्योंकि वह किसी भी सामाजिक कार्य में योगदान नहीं करता था।
एक बार उस कंजूस के पड़ोस में धार्मिक कथा का आयोजन हुआ। वेदमंत्रों व उपनिषदों पर आधारित कथा हो रही थी। कंजूस को सद्बुद्धि आई तो वह भी कथा सुनने के लिए सत्संग में पहुंच गया। वेद के वैज्ञानिक सिद्धांतों को सुनकर कंजूस को भी रस आने लगा। हालांकि उसे कंजूस समझकर उसकी कोई कदर न करता ,फिर भी वह कथा में प्रतिदिन आने लगा। कथा के समाप्त होते ही वह सबसे पहले मन की शंका पूछता। इस तरह उसकी रूचि बढ़ती गई।
       वैदिक कथा के अंत में लंगर का आयोजन था इसलिए कथावाचक ने इसकी सूचना दी कि कल लंगर होगा। इसके लिए जो श्रद्धा से कुछ भी लाना चाहे तो ले आना। अपनी -अपनी श्रद्धा के अनुसार सभी लोग कुछ न कुछ लाए। कंजूस के हृदय जो श्रद्धा पैदा हुई वह भी एक गठरी बांध सिर पर रखकर लाया। उसकी गठरी को देख लोग तरह -तरह के अनुमान लगाते और हंसते। लेकिन कंजूस को इसकी परवाह न थी।
       कंजूस ने आगे बढ़कर विद्वान् ब्राह्मण को प्रणाम किया। जो गठरी अपने साथ लाया था ,उसे उसके चरणों में रखकर खोला तो सभी लोगों की आंखें फ़टी -की -फ़टी रह गई। कंजूस के जीवन की जो भी अमूल्य सम्पत्ति गहने ,जेवर ,हीरे -जवाहरात आदि थे उसने सब कुछ को  भेंट कर दिया। उठकर वह यथास्थान जाने लगा तो विद्वान् ने कहा , ;महाराज !आप वहाँ नहीं ,यहाँ बैठिए।
  कंजूस बोला -पंडित जी !यह मेरा आदर नहीं है ,यह तो मेरे धन का आदर है ,अन्यथा मैं तो रोज आता था और यही पर बैठता था ,तब मुझे कोई न पूछता था।ब्राह्मण बोला --नहीं ,महाराज !यह आपके धन का आदर नहीं है ,बल्कि आपके महान त्याग का आदर है। यह धन तो थोड़ी देर पहले आपके पास ही था ,तब इतना आदर -सम्मान नहीं था जितना कि अब आपके त्याग में है इसलिए आप आज से सम्मानित व्यक्ति बन गए हैं। इस प्रकार त्याग की महिमा ने उसे कंजूस से सम्मानित सेठ बना दिया। उसके महान दान ने जीवन को सुधार  दिया।








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Updesh Kumari
सुंदर विचारों को लिखकर प्रकट करना मेरी आदत में शुमार है। मैने सन 1995 में हिंदी साहित्य में (शिवप्रसाद का कथा साहित्य ) शोध प्रबंध लिखा था। मुझे अध्यापन कार्य करते हुए पच्चीस वर्ष से ज्यादा हो चुके हैं। विचारों को एकत्रित कर सहेजना मेरी खूबी रही है। मुझे अपने विचार व्यक्त करना भी बहुत अच्छा लगता है। मुझे ये बतलाते हुए गर्व है कि मेरे द्वारा पढ़ाये गये छात्र शत -प्रतिशत परिणाम लाये हैं और उच्च पदों पर कार्यरत हैं। ये कहने की कोई आवश्यकता नहीं है कि विभिन्न कार्यक्रमों को संचालित करने का सदैव अवसर मिलता रहा है। मैं अपने पारिवारिक व कार्यस्थल से पूर्ण संतुष्ट हूँ। लिखना मेरा शौक है मजबूरी नहीं। मै आशा करती हू कि आप मेरे द्वारा लिखे गये को पसंद करेंगें।
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सुंदर विचारों को लिखकर प्रकट करना मेरी आदत में शुमार है। मैने सन 1995 में हिंदी साहित्य में (शिवप्रसाद का कथा साहित्य ) शोध प्रबंध लिखा था। मुझे अध्यापन कार्य करते हुए पच्चीस वर्ष से ज्यादा हो चुके हैं। विचारों को एकत्रित कर सहेजना मेरी खूबी रही है। मुझे अपने विचार व्यक्त करना भी बहुत अच्छा लगता है। मुझे ये बतलाते हुए गर्व है कि मेरे द्वारा पढ़ाये गये छात्र शत -प्रतिशत परिणाम लाये हैं और उच्च पदों पर कार्यरत हैं। ये कहने की कोई आवश्यकता नहीं है कि विभिन्न कार्यक्रमों को संचालित करने का सदैव अवसर मिलता रहा है। मैं अपने पारिवारिक व कार्यस्थल से पूर्ण संतुष्ट हूँ। लिखना मेरा शौक है मजबूरी नहीं। मै आशा करती हू कि आप मेरे द्वारा लिखे गये को पसंद करेंगें।
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