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Thursday, August 30, 2018

ईर्ष्या एक शीतल आग है जो मनुष्य को धीरे -धीरे जला डालती है।

 Updesh Kumari     August 30, 2018     Gyaan Sangam     No comments   

    मनुष्य में परस्पर ईर्ष्या का परिणाम नहीं होता। स्वयं यदि प्रतिष्ठा प्राप्त करनी हो तो अपने योग्य साथियों को भी प्रतिष्ठित करना होगा। ईर्ष्या से जहां मानसिक अशांति रहती है ,वहां साथ ही अपमान भी होता है। ईर्ष्या एक शीतल आग है जो मनुष्य को धीरे -धीरे जला डालती है। जैसा कि दो विद्वान् पंडितों के साथ हुआ।
          एक बार एक सेठ ने दो विद्वान् पंडितों को भोजन पर आमंत्रित किया। समय पर दोनों पंडित पधारे तो सेठ ने उनका स्वागत किया। उनको आदर से आसन पर बैठाया। उनमें से एक पंडित जब स्नान करने के लिए गए तो सेठ ने दूसरे पंडित से कहा ,महाराज !ये आपके साथी तो महान विद्वान् मालूम लगते हैं ?पंडित जी ने उत्तर दिया --यह और विद्वान् ?क्या बात करते हो सेठ जी ! यह तो निरा बैल है बैल।
       सेठ को बहुत बुरा लगा ,किन्तु वह चुप ही रहा। पहले पंडित जी जब स्नान करके वापस आए तो दूसरे पंडित जी स्नान करने के लिए गए। सेठ ने उनसे भी वही प्रश्न किया ,महाराज !आपके साथी तो महान विद्वान् लगते हैं ?पंडित जी बोले -सेठ जी किसने बहका दिया आपको ?वह तो निरा गधा है गधा। सेठ इस समय भी मौन ही रहा।
    जब भोजन का समय आया तो सेठ ने चांदी की थाली में ढककर एक पंडित के आगे घास रख दी और दूसरे के आगे भूसा रख दिया। दोनों के बैठने पर सेठजी ने निवेदन किया कि भोजन प्रारम्भ कीजिए  पंडितों ने जब ढक्क्न उठाया तो उस भोजन को देखकर दोनों पंडित क्रोध से तमतमा उठे। बोले -हमारे अपमान का आपमें साहस कैसे हुआ ?
सेठ ने हाथ जोड़कर नम्रता से कहा -मैनें तो आप लोगों के कथन अनुसार ही आप लोगों के सम्मुख भोजन परोसा है। आपने इनको बैल बताया था और इन्होंने आपको गधा बताया था। सो वैसा ही भोजन मुझे मंगाना पड़ा। इसमें मेरा क्या दोष है। पंडितजी !मैं तो आप दोनों को विद्वान् समझता था ,इसीलिए आमंत्रित किया था ,किन्तु वास्तविकता का ज्ञान तो आप लोगों से प्राप्त हुआ है। सेठ की बात सुनकर दोनों पंडित मन -ही -मन लज्जित हुए। ये है एक दूसरे की बुराई करने का नतीजा।  
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Updesh Kumari
सुंदर विचारों को लिखकर प्रकट करना मेरी आदत में शुमार है। मैने सन 1995 में हिंदी साहित्य में (शिवप्रसाद का कथा साहित्य ) शोध प्रबंध लिखा था। मुझे अध्यापन कार्य करते हुए पच्चीस वर्ष से ज्यादा हो चुके हैं। विचारों को एकत्रित कर सहेजना मेरी खूबी रही है। मुझे अपने विचार व्यक्त करना भी बहुत अच्छा लगता है। मुझे ये बतलाते हुए गर्व है कि मेरे द्वारा पढ़ाये गये छात्र शत -प्रतिशत परिणाम लाये हैं और उच्च पदों पर कार्यरत हैं। ये कहने की कोई आवश्यकता नहीं है कि विभिन्न कार्यक्रमों को संचालित करने का सदैव अवसर मिलता रहा है। मैं अपने पारिवारिक व कार्यस्थल से पूर्ण संतुष्ट हूँ। लिखना मेरा शौक है मजबूरी नहीं। मै आशा करती हू कि आप मेरे द्वारा लिखे गये को पसंद करेंगें।
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