मनुष्य में परस्पर ईर्ष्या का परिणाम नहीं होता। स्वयं यदि प्रतिष्ठा प्राप्त करनी हो तो अपने योग्य साथियों को भी प्रतिष्ठित करना होगा। ईर्ष्या से जहां मानसिक अशांति रहती है ,वहां साथ ही अपमान भी होता है। ईर्ष्या एक शीतल आग है जो मनुष्य को धीरे -धीरे जला डालती है। जैसा कि दो विद्वान् पंडितों के साथ हुआ।
एक बार एक सेठ ने दो विद्वान् पंडितों को भोजन पर आमंत्रित किया। समय पर दोनों पंडित पधारे तो सेठ ने उनका स्वागत किया। उनको आदर से आसन पर बैठाया। उनमें से एक पंडित जब स्नान करने के लिए गए तो सेठ ने दूसरे पंडित से कहा ,महाराज !ये आपके साथी तो महान विद्वान् मालूम लगते हैं ?पंडित जी ने उत्तर दिया --यह और विद्वान् ?क्या बात करते हो सेठ जी ! यह तो निरा बैल है बैल।
सेठ को बहुत बुरा लगा ,किन्तु वह चुप ही रहा। पहले पंडित जी जब स्नान करके वापस आए तो दूसरे पंडित जी स्नान करने के लिए गए। सेठ ने उनसे भी वही प्रश्न किया ,महाराज !आपके साथी तो महान विद्वान् लगते हैं ?पंडित जी बोले -सेठ जी किसने बहका दिया आपको ?वह तो निरा गधा है गधा। सेठ इस समय भी मौन ही रहा।
जब भोजन का समय आया तो सेठ ने चांदी की थाली में ढककर एक पंडित के आगे घास रख दी और दूसरे के आगे भूसा रख दिया। दोनों के बैठने पर सेठजी ने निवेदन किया कि भोजन प्रारम्भ कीजिए पंडितों ने जब ढक्क्न उठाया तो उस भोजन को देखकर दोनों पंडित क्रोध से तमतमा उठे। बोले -हमारे अपमान का आपमें साहस कैसे हुआ ?
सेठ ने हाथ जोड़कर नम्रता से कहा -मैनें तो आप लोगों के कथन अनुसार ही आप लोगों के सम्मुख भोजन परोसा है। आपने इनको बैल बताया था और इन्होंने आपको गधा बताया था। सो वैसा ही भोजन मुझे मंगाना पड़ा। इसमें मेरा क्या दोष है। पंडितजी !मैं तो आप दोनों को विद्वान् समझता था ,इसीलिए आमंत्रित किया था ,किन्तु वास्तविकता का ज्ञान तो आप लोगों से प्राप्त हुआ है। सेठ की बात सुनकर दोनों पंडित मन -ही -मन लज्जित हुए। ये है एक दूसरे की बुराई करने का नतीजा।
एक बार एक सेठ ने दो विद्वान् पंडितों को भोजन पर आमंत्रित किया। समय पर दोनों पंडित पधारे तो सेठ ने उनका स्वागत किया। उनको आदर से आसन पर बैठाया। उनमें से एक पंडित जब स्नान करने के लिए गए तो सेठ ने दूसरे पंडित से कहा ,महाराज !ये आपके साथी तो महान विद्वान् मालूम लगते हैं ?पंडित जी ने उत्तर दिया --यह और विद्वान् ?क्या बात करते हो सेठ जी ! यह तो निरा बैल है बैल।
सेठ को बहुत बुरा लगा ,किन्तु वह चुप ही रहा। पहले पंडित जी जब स्नान करके वापस आए तो दूसरे पंडित जी स्नान करने के लिए गए। सेठ ने उनसे भी वही प्रश्न किया ,महाराज !आपके साथी तो महान विद्वान् लगते हैं ?पंडित जी बोले -सेठ जी किसने बहका दिया आपको ?वह तो निरा गधा है गधा। सेठ इस समय भी मौन ही रहा।
जब भोजन का समय आया तो सेठ ने चांदी की थाली में ढककर एक पंडित के आगे घास रख दी और दूसरे के आगे भूसा रख दिया। दोनों के बैठने पर सेठजी ने निवेदन किया कि भोजन प्रारम्भ कीजिए पंडितों ने जब ढक्क्न उठाया तो उस भोजन को देखकर दोनों पंडित क्रोध से तमतमा उठे। बोले -हमारे अपमान का आपमें साहस कैसे हुआ ?
सेठ ने हाथ जोड़कर नम्रता से कहा -मैनें तो आप लोगों के कथन अनुसार ही आप लोगों के सम्मुख भोजन परोसा है। आपने इनको बैल बताया था और इन्होंने आपको गधा बताया था। सो वैसा ही भोजन मुझे मंगाना पड़ा। इसमें मेरा क्या दोष है। पंडितजी !मैं तो आप दोनों को विद्वान् समझता था ,इसीलिए आमंत्रित किया था ,किन्तु वास्तविकता का ज्ञान तो आप लोगों से प्राप्त हुआ है। सेठ की बात सुनकर दोनों पंडित मन -ही -मन लज्जित हुए। ये है एक दूसरे की बुराई करने का नतीजा।
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