मोह ,लालच ,तृष्णा के आकर्षण में मनुष्य फंसता ही रहता है। उसकी वही दशा होती है जो इस दृष्टांत में बंदर की हुई। एक बार एक मदारी ,जो बंदरों को नचाया करते हैं ,एक बंदर को पकड़ने गया। जिस बाग में बहुत से बंदर रहा करते थे ,वहां उसने गड्ढा खोदकर उसमे एक तंग मुँह का घड़ा गाड़ दिया ,जिसका मुँह ऊपर की ओर खुला था। पुनः एक रोटी ले बंदरों को दिखाते हुए तोड़ -तोड़कर उसमें डाल दी और आप वहाँ से हटकर आड़ में बैठ गया।
बंदरों ने यह देखा और एक बंदर उतरकर घड़े में हाथ डाल रोटी के टुकड़ों को निकालने लगा ,किन्तु मुट्ठी बंद होने के कारण हाथ न निकल सका। तब तो बंदर बहुत खीझा और बड़े जोर -जोर से हाथ खींचता रहा तथा अपने ही हाथ को खींच -खींच काटता रहा ,पर हाथ तो तब निकले कि जब मूढ़ मुट्ठी की रोटी छोड़ दे और हाथ पतला हो जाए ,पर ऐसा न कर वह उसी रोटी के लालच से मदारी के हाथ पकड़ा जाकर जन्म भर नचाया गया।
इस दृष्टांत का भाव यह है कि मनुष्य रूपी बंदर संसार रूपी घड़े में पंच विषय व पुत्र -पौत्र ,रुपया -पैसा रूपी रोटी को पकड़ मूढ़ अपने सारे कर्म -धर्मों को भुला देता है और ब्रह्मरूपी मदारी के हाथ पकड़ा जाकर जन्म भर नाचता रहता है।बंदर को तो मदारी एक ही जन्म नचाता है ,पर मनुष्य जन्म -जन्मांतर तक नाचता रहता है।
बंदरों ने यह देखा और एक बंदर उतरकर घड़े में हाथ डाल रोटी के टुकड़ों को निकालने लगा ,किन्तु मुट्ठी बंद होने के कारण हाथ न निकल सका। तब तो बंदर बहुत खीझा और बड़े जोर -जोर से हाथ खींचता रहा तथा अपने ही हाथ को खींच -खींच काटता रहा ,पर हाथ तो तब निकले कि जब मूढ़ मुट्ठी की रोटी छोड़ दे और हाथ पतला हो जाए ,पर ऐसा न कर वह उसी रोटी के लालच से मदारी के हाथ पकड़ा जाकर जन्म भर नचाया गया।
इस दृष्टांत का भाव यह है कि मनुष्य रूपी बंदर संसार रूपी घड़े में पंच विषय व पुत्र -पौत्र ,रुपया -पैसा रूपी रोटी को पकड़ मूढ़ अपने सारे कर्म -धर्मों को भुला देता है और ब्रह्मरूपी मदारी के हाथ पकड़ा जाकर जन्म भर नाचता रहता है।बंदर को तो मदारी एक ही जन्म नचाता है ,पर मनुष्य जन्म -जन्मांतर तक नाचता रहता है।
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