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Thursday, August 16, 2018

मोह -लालच में फंसकर मनुष्य जन्म -जन्मांतर तक नाचता रहता है।

 Updesh Kumari     August 16, 2018     Gyaan Sangam     No comments   

मोह ,लालच ,तृष्णा के आकर्षण में मनुष्य फंसता ही रहता है। उसकी वही दशा होती है जो इस दृष्टांत में बंदर की हुई। एक बार एक मदारी ,जो बंदरों को नचाया करते हैं ,एक बंदर को पकड़ने गया। जिस बाग में बहुत से बंदर रहा करते थे ,वहां उसने गड्ढा खोदकर उसमे एक तंग मुँह का घड़ा गाड़ दिया ,जिसका मुँह ऊपर की ओर खुला था। पुनः एक रोटी ले बंदरों को दिखाते हुए तोड़ -तोड़कर उसमें डाल दी और आप वहाँ से हटकर आड़ में बैठ गया।
   बंदरों ने यह देखा और एक बंदर उतरकर घड़े में हाथ डाल रोटी के टुकड़ों को निकालने लगा ,किन्तु मुट्ठी बंद होने के कारण हाथ न निकल सका। तब तो बंदर बहुत खीझा और बड़े जोर -जोर से हाथ खींचता रहा तथा अपने ही हाथ को खींच -खींच काटता रहा ,पर हाथ तो तब निकले कि जब मूढ़ मुट्ठी की रोटी छोड़ दे और हाथ पतला हो जाए ,पर ऐसा न कर वह उसी रोटी के लालच से मदारी के हाथ पकड़ा जाकर जन्म भर नचाया गया।
      इस दृष्टांत का भाव यह है कि मनुष्य रूपी बंदर संसार रूपी घड़े में पंच विषय व पुत्र -पौत्र ,रुपया -पैसा रूपी रोटी को पकड़ मूढ़ अपने सारे कर्म -धर्मों को भुला देता है और ब्रह्मरूपी मदारी के हाथ पकड़ा जाकर जन्म भर नाचता रहता है।बंदर को तो मदारी एक ही जन्म नचाता है ,पर मनुष्य जन्म -जन्मांतर तक नाचता रहता है।  
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Updesh Kumari
सुंदर विचारों को लिखकर प्रकट करना मेरी आदत में शुमार है। मैने सन 1995 में हिंदी साहित्य में (शिवप्रसाद का कथा साहित्य ) शोध प्रबंध लिखा था। मुझे अध्यापन कार्य करते हुए पच्चीस वर्ष से ज्यादा हो चुके हैं। विचारों को एकत्रित कर सहेजना मेरी खूबी रही है। मुझे अपने विचार व्यक्त करना भी बहुत अच्छा लगता है। मुझे ये बतलाते हुए गर्व है कि मेरे द्वारा पढ़ाये गये छात्र शत -प्रतिशत परिणाम लाये हैं और उच्च पदों पर कार्यरत हैं। ये कहने की कोई आवश्यकता नहीं है कि विभिन्न कार्यक्रमों को संचालित करने का सदैव अवसर मिलता रहा है। मैं अपने पारिवारिक व कार्यस्थल से पूर्ण संतुष्ट हूँ। लिखना मेरा शौक है मजबूरी नहीं। मै आशा करती हू कि आप मेरे द्वारा लिखे गये को पसंद करेंगें।
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