एक दिन शिकारी जंगल में शिकार करने आया। शिकार करने के बाद कुछ देर आराम करने का विचार करते हुए वह उस वृक्ष के नीचे जा पहुंचा जहाँ हंस व कौआ रहते थे। शिकारी पेड़ के नीचे लेट गया। थका हुआ था ,इसलिए नींद आ गई। हंस और कौआ यह सब देख रहे थे। थोड़ी देर में शिकारी पर धूप पड़ने लगी। जब हंस ने देखा कि शिकारी पर धूप की किरणें पड़ रही हैं ,तो अच्छाई के मार्ग पर चलते हुए वह पेड़ की डालियों में अपने दोनों पंख फैलाकर बैठ गया ,जिससे धूप की किरणें नहीं पहुंचती थी।
इतने में कौवे को शैतानी सूझी ,क्योंकि यह उसका स्वभाव था। उसने उस शिकारी के मुँह पर मल -मूत्र त्याग दिया और पेड़ से उड़ गया। शिकारी को बहुत बुरा लगा। उसने अपने चारों तरफ देखा। उसे केवल हंस दिखाई दिया। शिकारी ने सोचा कि यह सब इसी हंस ने किया है। क्रोध में आकर शिकारी ने पास पड़ी बंदूक उठाई और हंस पर निशाना लगाया और धांय से गोली हंस को लगी। हंस नीचे गिर पड़ा। हंस ने कभी ऐसा सोचा भी नहीं था। यदि वह दुष्ट कौवे के साथ न रहता तो हंस बे -मौत न मारा जाता। अतः दुष्ट का संग कभी नहीं करना चाहिए नहीं तो बाद में पछताना पड़ता है।