Gyaan Sangam
  • Home
  • Gyaan Sangam
  • Hindi Quotes
  • Health

Saturday, June 30, 2018

सपने पूरे न होने पर कहीं कुंठा या आक्रोश तो नहीं पाल रहे हो

 Updesh Kumari     June 30, 2018     Gyaan Sangam     No comments   

हर इंसान के जीवन में सपनों की अपनी अहमियत होती है। सपने हमारे अंदर कुछ नया करने की स्फूर्ति व प्रेरणा जगाते हैं।  हर आदमी जीवन में कोई- न -कोई सपना संजोता ही है। कोई सपने देखकर भूल जाता है तो कोई सपने देखता है और उन्हें साकार करने में जुट जाता है। किसी ख्वाब का पूरा होना या न होना इंसान के बस में नहीं होता। इसलिए खुद  को  पहले से ही मानसिक रूप से तैयार कर लेना बेहतर होता है। जब मनवांछित चीज न मिले तो हमें कोई सदमा न पहुंचे। कईलोग  अपने  लक्ष्य में सफल न होने पर डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं। लेकिन याद रखें किसी चीज के न मिलने या कोई इच्छा अधूरी रह जाने से जिंदगी खत्म नहीं हो जाती।
अगर आप किसी सपने को पूरा न होने की कुंठा या आक्रोश पाल लेंगे तो घुट -घुट कर जिंदगी बिताने के सिवाय कुछ भी हासिल नहीं होगा। जिंदगी बहुत खूबसूरत है इसका मजा लीजिए और निराशाओं को पास न फटकने दीजिए। दूसरे ,इस बात का भी ध्यान रखें कि जिस सपने के लिए अपने प्रयास किये थे ,क्या वे पर्याप्त थे ?ईमानदारी से अपनी कोशिशों का मूल्यांकन करें कि कहीं  आपकी ओर से तो कोई कमी नहीं रह गई थी। अगर नहीं, तो क्या पता जिंदगी ने उससे भी कुछ   बेहतर आपके लिए संजो कर रखा हो।
सपने कभी  पूरे नहीं होते -यह सोचकर सपने ही न देखें जाए ,ये भी ठीक नहीं है। जरा सोचिए अगर आगे बढ़ने की कोई प्रेरणा न हो तो जीवन में उन्नति कैसे होगी ?आगे बढ़ना ,हरदम नया सोचना ,उन्नति करना तो इंसान का स्वभाव है और सपने इसमें काफी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। सपने हमेशा खुली आंखों से देखें कहीं मुंगेरीलाल के सपने न बन जाये।





Read More
  • Share This:  
  •  Facebook
  •  Twitter
  •  Google+
  •  Stumble
  •  Digg

Friday, June 29, 2018

बात पते की 30/6/2018 - Hindi Quotes

 Updesh Kumari     June 29, 2018     Gyaan Sangam     No comments   

1 अच्छा ह्रदय और अच्छा स्वभाव दोनों आवश्यक हैं। अच्छे ह्रदय से कई रिश्ते बनेंगें और अच्छे स्वभाव से वे रिश्ते जीवन भर टिकेंगे। -सुधांशुजी महाराज
2केवल कर्महीन ही ऐसे होते हैं जो भाग्य को कोसते रहते हैं और जिनके पास शिकायतों का बाहुल्य होता है। -पं ,जवाहरलाल नेहरू
3 आस्था वह पक्षी है जो सुबह अंधेरा होने पर भी उजाले को महसूस करती है। -रवीन्द्रनाथ टैगोर
4 जिंदगी तो सिर्फ अपने कंधों पर जी जाती है। दूसरों के कंधों पर तो सिर्फ जनाजे उठाए जाते हैं। -शहीद भगतसिंह
5 किताबों के बिना कमरा आत्मा के बिना शरीर की तरह होता है। -मार्क्स सिसरो
6 एक समय में एक काम करो और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमें डाल दो और बाकी सब कुछ भूल जाओ। -स्वामी विवेकानंद
7कलाई पर बंधी घड़ी आदमी को घड़ी -घड़ी चेताती है कि जिंदगी घड़ी -दो -घड़ी से ज्यादा नहीं है। मुनिश्री तरुणसागर
8 शांति ,आर्थिक या राजनीतिक बदलाव से नहीं ,मानव स्वभाव में बदलाव से ही आ सकती है।- डॉ  राधाकृष्णन
9 हजारों खोखले शब्दों से अच्छा वह एक शब्द है जो हमारे जीवन में शांति लाता है। -गौतम बुद्ध
10 निराशा से जीवन के बहुमूल्य तत्व नष्ट हो जाते हैं। साथ ही इससे विजय के बहुत से अवसर खो जाते हैं। -स्वेट मार्डेन 
Read More
  • Share This:  
  •  Facebook
  •  Twitter
  •  Google+
  •  Stumble
  •  Digg

बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से होय।

 Updesh Kumari     June 29, 2018     Gyaan Sangam     1 comment   

माता -पिता हमारे लिए पूजनीय होते हैं लेकिन उनकी वृद्धावस्था में जब हम उनका साथ नहीं दे पाते तो बाद में हमे बड़ा पछतावा होता है। सोहन को वृद्धाश्रम आए हुए पूरा एक महीना हो गया था उसका इकलौता बेटा ही उसे यहां छोड़कर गया था। जब सोहन को अतीत की बातें याद आती तो वह हमेशा समय को ही कोसता रहता। एक दिन समय का चक्र सोहन के सामने प्रकट होकर कहने लगा -हे मानव तुम मुझे हमेशा क्यों कोसते रहते हो ?सोहन ने इल्जाम लगाते हुए कहा -ओह तुम। तुम बहुत निर्दयी हो समय !कितना कष्ट दिया है तुमने मुझे।

समय ने जोरदार ठहाका लगाते हुए कहा -हे मानव तुम इन हालातों के लिए मुझे दोषी क्यों ठहरा रहे हो? मैं अब भी वैसा ही हूं जैसा पहले था, हालात बदले हैं तो तूने खुद बदले हैं। मैंने तो तुम्हें प्रभु राम और श्रवण कुमार जैसे माता -पिता के भक्त पुत्रोँ का अनुकरणीय अतीत दिया था। अगर तुम उनका अनुकरण करते तो आज तुम्हारी ये हालत न होती। आज तुम्हारे बेटे ने तुम्हारा अनुकरण किया है तो इतना दुखी क्यों हो?

तुम भी तो अपने वृद्ध माता -पिता को गांव में छोड़ आए थे। तुम्हें अब उनके उपेक्षित और एकांकी जीवन का एहसास जरूर हो रहा होगा। ये तो नीति संगत है मानव !जैसी करनी- वैसी भरनी। समय कभी नहीं बदलता मानव ,बदले तो तुम हो। बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से होय। यह कहकर समय का चक्र अदृश्य हो गया सोहन का व्यग्र मन अब शांत हो गया था। . उसने संतुष्टि भरे मन से समय से समझौता कर लिया। अब उसके पास पश्चाताप के आसुओं के सिवा कुछ नहीं था। 
Read More
  • Share This:  
  •  Facebook
  •  Twitter
  •  Google+
  •  Stumble
  •  Digg

Thursday, June 28, 2018

बात पते की 29/6/2018 - Hindi Quotes

 Updesh Kumari     June 28, 2018     Hindi Quotes     No comments   

1 बोलना अगर चांदी है तो चुप रहना सोना। चुप रहना जीवन की एक बड़ी साधना है। -मुनिश्री तरुणसागर
2 अध्ययन हमें आनंद देता है ,अलंकृत  करता है और योग्यता प्रदान करता है। -फ्रांसिस बेकन
3 सिखाया हुआ सब कुछ भूल जाने के बाद हमारे अंदर जो बच जाता है ,वही शिक्षा है। -जॉर्ज सेविले
4 लक्ष्य जितना बड़ा होता है ,उसका रास्ता भी उतना ही लम्बा और बीहड़ होता है।- साने गुरु जी
5 सभ्यता, शिष्टाचार और खुशामद में फर्क करने की आदत डालिए। -सरदार पटेल
6 जो महान होते हैं ,उन्हें दूसरों की विपत्ति में अपनी विपत्ति का विचार नहीं रहता। -शरतचंद्र
7 संसार में ऐसी कोई शक्ति नहीं ,जो उच्च ,सरल ,सत्य एवं कर्मठ जीवन के प्रभाव को कम कर सके। बुकर टी वाशिंगटन
8 विद्वान् शत्रु भी श्रेष्ठ होता है, जबकि मूर्ख मित्र हितकारी नहीं होता। -विष्णु शर्मा
9 जब तक फल न मिले ,तब तक साधना जारी रखनी चाहिए। -विनोबा भावे
10 हम जो हैं ,वह हमे ईश्वर की देन है ,हम जो बनते हैं ,वह परमेश्वर को हमारी देन है। -एलनर पॉवेल


Read More
  • Share This:  
  •  Facebook
  •  Twitter
  •  Google+
  •  Stumble
  •  Digg

जब अपराध बोध जीना मुश्किल करदे तो क्या करें ?

 Updesh Kumari     June 28, 2018     Gyaan Sangam     No comments   

कई बार हम दूसरों को तो माफ़ करते है लेकिन अपनी गलतियों पर खुद को माफ़ नहीं कर पाते। हमें चाहिए कि अपनी गलतियों को समझकर खुद को माफ़ कर दे। गलती मानना भी एक तरह से खुद को माफ़ करना ही है। आंखें बंद कर जिसे चोट पहुंचाई ,उसकी छवि सामने लाकर उससे माफ़ी मांगे ऐसा करके हम अपने को हो माफ़ करते हैं। ध्यान यानि मेडिटेशन नकारात्मक भावना से मुक्त होने का अच्छा साधन है। ध्यान के शुरुआती दौर में बहुत बेचैनी ,क्रोध ,उदासी हो सकती है ,लेकिन ध्यान करते रहें तो धीरे -धीरे मन में शांति होने लग जाती है।
जब हमारे कारण किसी को ऐसा नुकसान पहुंचे जिसकी भरपाई मुश्किल है या अनजाने में कोई शारीरिक अथवा मानसिक चोट पहुंचा दे तो अपराध बोध पैदा हो सकता है। भरपाई न हो सकने वाला नुकसान तो उदारता का कोई बड़ा काम करके उबरा जा सकता है जैसे वाहन की टककर से कोई अपंग हुआ हो तो संस्था खोलकर विकलांगो की मदद कर इससे उबरा जा सकता है।
किसी को धोखा दिया हो तो मन की आंखों के सामने वह घटना लाएं, लेकिन अब उस दृश्य में खुद को उचित व्यवहार करता देखें। दृश्य को छोटा -छोटा करते हुए उसे लुप्त कर दे। आंखें बंदकर कोरे कैनवस पर विचारों को आते देखा जा सकता है। फिर इन्हें आहिस्ते से जाने दे। दूसरे ,विचारों को नए वाक्यों में दोहराएं यानि वर्बलाइजेशन से अपराध बोध को उदारता में बदलें। जैसे मुझे मदद का वादा करके एन  वक्त पर उसे धोखा नहीं देना था..यह मेरी गलती थी अब मैं उनका अहसानमंद हूं यह सीख पाकर कि  जरूरत के वक्त मदद करना कितना अहम है। 
Read More
  • Share This:  
  •  Facebook
  •  Twitter
  •  Google+
  •  Stumble
  •  Digg

बात पते की 28/6/2018 - Hindi Quotes

 Updesh Kumari     June 28, 2018     Hindi Quotes     No comments   

1 साधारण दिखने वाले लोग ही दुनिया के सबसे अच्छे लोग होते हैं। यही वजह है कि भगवान ऐसे बहुत -से लोगों का निर्माण करते हैं। -अब्राहिम लिंकन
2 मानव के अंदर जो कुछ सर्वोत्तम है ,उसका विकास प्रशंसा तथा प्रोत्साहन के द्वारा किया जा सकता है। -चार्ल्स श्विव
3 जो व्यक्ति शत्रु बनाने से घबराता हो उसके जीवन में सच्चे मित्र भी कभी नहीं बन सकते। -विलियम हेज्लीट
4 हर व्यक्ति दुनिया की बदलने की सोचता है ,लेकिन कोई भी व्यक्ति खुद को बदलने के बारे में नहीं सोचता। -लियो टॉलस्टाय
5 खुद को समझने के लिए अपने दिमाग का इस्तेमाल कीजिए और दूसरों को संभालने के लिए दिल का। -एलेनॉर रूजवेल्ट
6 इंसान मकान बदलता है ,वस्त्र बदलता है ,दोस्त बदलता है ,फिर भी वह दुखी रहता है ,क्योंकि वह अपना स्वभाव नहीं बदलता। -स्वामी विवेकानंद
7 छोटी -सी बुराई को भी अपने पास न आने दे ,क्योंकि अन्य बड़ी बुराइयां इसके पीछे -पीछे चली आती हैं। -बाल्थज़र
8 कठिनाइयां हमें आत्मज्ञान कराती हैं। वे हमें दिखा देती हैं कि हम किस मिट्टी के बने हैं। -जवाहरलाल नेहरू
9आप जो करने से डरते हैं ,उसे करिए और करते रहिए। अपने डर पर विजय पाने का यही सबसे कारगर तरीका है। -डेल कारनेगी
10 प्रशंसा श्रेष्ठ मस्तिष्क वालों के लिए प्रेरणादायिनी होती है और क्षीण मस्तिष्क वालों के लिए अंत। -कोलटन

Read More
  • Share This:  
  •  Facebook
  •  Twitter
  •  Google+
  •  Stumble
  •  Digg

Wednesday, June 27, 2018

इंट्यूशन जगाना है तो फूलों जैसा बनने का प्रयास करें।

 Updesh Kumari     June 27, 2018     Gyaan Sangam     No comments   

जीवन एक सुंदर ,कोमल और सुगंधित फूलों का बुके है। फूल सूक्ष्मता ,कोमलता ,सौजन्यता ,धैर्य की अभिव्यक्ति है। सुगंधित पुष्प ईश्वर को अर्पित किये जाते हैं ताकि हमारे जीवन में ज्ञान की सुगंध भर जाये और हम अपने भीतर दिव्य गुणों को विकसित कर सकें। इसके लिए पहले हमें प्रतिदिन अपनी सोच में सकारात्मक संकल्प गूंथकर निम्नस्तरीय सांसारिक भावनाओं को दिव्य भावनाओं में बदलकर साधना करनी होगी।इससे हमारे अंदर प्रेरणाशक्ति का फूल खिलता है जिसे हम इंट्यूशन के नाम से भी जानते हैं। यह शक्ति सब कुछ जानती है और दिव्य कृपा की सर्वोच्च अभिव्यक्ति है। इसे एक ही समय में भूत ,वर्तमान और भविष्य का ज्ञान रहता।
प्रारम्भ में हमें बिजली की कौंध की तरह बीच -बीच में अंतर्दृष्टि के रूप में इंट्यूशन का अनुभव होगा। इंट्यूशन के लिए शांत मन का होना आवश्यक है ताकि इंट्यूशन के बीज का अंकुरण शुरू हो सके।   यदि एक नकारात्मक विचार या भावना बनी रहती है तो यह प्रेरणाशक्ति के प्रवाह का विरोध करेगी। शरीर की जरूरतों को समझना ,पैसा कमाने के लिए आइडिया ,चतुराई पूर्वक उठाये गये कदम ,कब तेजी दिखाना है ,कब धीमे चलना -ये सब विचार हमे इंट्यूशन के जरिये ही उजागर होते हैं। प्रेरणाशक्ति हम सब में बह रही है लेकिन ,अनियमित रूप से ,रुक -रुककर। इसका कारण यह है कि हम स्थिति पर बिना ज्यादा विचार किये प्रतिक्रिया देते हैं। कठोर या रूखा व्यवहार कर सकते हैं। इसकी बजाए अपने विचार फूलों जैसे कोमल होने दीजिए। दिल को छू लेने वाली कोमल भावनाओं के साथ बोले।   जैसे -जैसे हमारी साधना गहरी होती जाएगी ,हमारी प्रेरणाशक्ति बढ़कर हमारे पूरे जीवन को अपने आगोश में ले लेगी।      




Read More
  • Share This:  
  •  Facebook
  •  Twitter
  •  Google+
  •  Stumble
  •  Digg

Tuesday, June 26, 2018

बात पते की 27/6/2018 - Hindi Quotes

 Updesh Kumari     June 26, 2018     Hindi Quotes     No comments   

1 आलसी व्यक्ति के हाथ से अनेक सुअवसर ऐसे निकल जाते हैं ,जैसे मुट्ठी में बंद हवा। -पंचतंत्र
2 निर्धन मनुष्य की पूंजी और मित्र ,उसका अपने आप पर भरोसा यानि आत्मविश्वास ही है। -स्वेट  मार्डेन
3 चरित्र की सरलता गंभीर चिंतन का ही प्राकृतिक परिणाम होती है। -हेजलीट
4 अपनी खुशियों के प्रत्येक क्षण का आनंद ले। ये वृद्धावस्था के लिए अच्छा सहारा साबित होते हैं। -क्रिस्टोफर मोर्ले
5 जब तक ह्रदय में जीवमात्र के प्रति दया न हो ,तब तक प्रार्थना ,उपवास ,जप ,तप सब थोथा थोथा है। -महात्मा गाँधी
6 किसी व्यक्ति का चरित्र  उसका  सरंक्षण करने वाली दिव्यता होती है , लेकिन यही उसकी नियति भी होती है। -हेराक्लाइटस
7जिसे अपने गौरव का मान रहता है ,वह किसी चीज को मुफ्त पाने की बजाए उसे अपने पौरुष से प्राप्त करता है। -स्वामी रामतीर्थ
8 सफल होने के लिए आपकी सफलता की इच्छा आपके असफलता के डर से बड़ी होनी चाहिए। -बिल कोस्बी
9 मृत्यु के बाद भी लोग याद रखें ,इसके लिए या तो कालजयी रचनाओं की सृष्टि करो या वर्णन करने योग्य कर्म करो। -फ्रेंकलिन
10 हमें अपने वर्तमान काम यकीन करने की जरूरत है ,वरना हमें दूसरा काम खोज लेना चाहिए। -रिच देवास
11 असफलता की भावना से सफलता का पैदा होना उतना ही असम्भव है ,जितना कि बबूल के वृक्ष में गुलाब का खिलना। -बायरन
12 मित्र को क्षमा करने की अपेक्षा शत्रु को क्षमा कर देना सरल है। -विलियम ब्लेक
 


   
Read More
  • Share This:  
  •  Facebook
  •  Twitter
  •  Google+
  •  Stumble
  •  Digg

बात पते की 26/6/2018 - Hindi Quotes

 Updesh Kumari     June 26, 2018     Hindi Quotes     No comments   

1 विश्व में अधिकांश लोग इसलिए असफल हो जाते हैं ,क्योंकि उनमें समय पर साहस का संचार नहीं हो पाता। -स्वामी विवेकानंद
2 निष्काम कर्म ईश्वर को ऋणी बना देता है और ईश्वर उसको सूद सहित वापस करने के लिए बाध्य हो जाता है। -स्वामी रामतीर्थ
3 अपने कर्मों के प्रति बहुत  ज्यादा संकोची और निराशावादी मत  बनिए। दरअसल पूरा जीवन ही एक अनुभव है। -इमरसन
4 स्वर्ग और पृथ्वी सब हमारे ही अंदर विधमान हैं ,पर हम अपने अंदर के स्वर्ग से बिलकुल अपरिचित हैं। -महात्मा गांधी
5 बुजुर्गो के चेहरे की एक -एक झुर्री पर हजार -हजार अनुभव लिखे होते हैं। -मुनिश्री तरुणसागर
6 लोगों के साथ सामंजस्य स्थापित कर पाना सफलता का एक अति महत्वपूर्ण सूत्र है। -थियोडोर रूजवेल्ट
7युद्ध में उन्हीं को विजय प्राप्त होती है ,जो शत्रु की निर्बलता के समय उस पर प्रहार करते हैं। -कालिदास
8 विश्वास और प्रेम में एक समानता है ,दोनों में से कोई भी जबरदस्ती पैदा नहीं किया जा सकता। -शोपेन ऑवर
9 युवावस्था आवेशमय होती है। यदि वह क्रोध से आग हो सकती है तो करुणा से पानी भी हो सकती है। -प्रेमचंद
10 कर्म ,शील व गुण से मनुष्य जैसा पूज्य होता है ,वैसा जाति और कुल से नहीं ,क्योंकि श्रेष्ठता न जाति से प्राप्त होती है ,न कुल से ही। -शुक्रनीति
11 केवल मनुष्य ही रोता हुआ जन्मता है ,शिकायतें करता हुआ जीता है और निराश मरता है। -पं ,जवाहर लाल नेहरू
12 दूसरों की आजादी की रक्षा करके ही आप अपनी स्वतंत्रता को महफूज रख सकते हैं।- क्लेरेंस डेरो









Read More
  • Share This:  
  •  Facebook
  •  Twitter
  •  Google+
  •  Stumble
  •  Digg

Monday, June 25, 2018

अपनी खामियां स्वीकारें तब ही ईश्वर हमारी जिम्मेदारी लेते हैं।

 Updesh Kumari     June 25, 2018     Gyaan Sangam     No comments   

हर घर में आईना होता है। हम इसमें खुद को देखकर खुश होते हैं लेकिन कहे कि खुद को तो देख लीजिए ,तो हमें गुस्सा आता है। कोई भी अपनी कमजोरियां नहीं देखना चाहता है। हमारे पास हमेशा दूसरों को देखने की दृष्टि रहती है।. दूसरे की कमियां हमें बहुत जल्दी दिखती हैं। दूसरे की ओर लगातार देखते रहते हैं तो हम अपनी कमियां भूलने लगते हैं। हम कभी खुद को आईना दिखने की कोशिश नहीं करते हैं
स्वयं का मूल्यांकन एक सकारात्मक अनुभव है। अपनी खामियां जानने का लाभ यह है कि जैसे ही हमें अपनी सीमाएं पता चलती हैं ,हम उनके पार जाने की कोशिश करते हैं। अयोध्याकाण्ड में राम के वन -गमन के समय दशरथ भरी सभा में आईना देखते है। यह आत्मविश्लेषण है। सबके सामने आईना देखना कठिन है ,लेकिन जो साधक होगा वह वह सबके सामने ही आईना देखेगा। अकेले में यह कबूल कर लेना कि आप पापी हैं ,बहुत आसान है लेकिन लोगों के सामने स्वीकारना आसान नहीं है। हम चाहते हैं कि हमारी गलतियां कोई और न जाने। दूसरों को पता चलेगा तो वे निंदा करेंगे ,जिससे हम बचना चाहेंगे।
सच्चा साधक वह होता है, जो अपने आप में बुनियादी असंतुलन देख पाता है और उसे संतुलित करने की कोशिश करता है। जीवन का सबसे बड़ा संघर्ष क्या है ?खुद को पहचान पाना ,खुद को स्वीकार करना ,समस्त गलतियों और कमियों के साथ स्वयं का आलिंगन करना। चाहे किसी भी स्तर पर हो ,वह घर हो या कार्यस्थल ,सीखने का सबसे अहम उपाय प्रतिबिम्ब है। आपको अपने में ही बदलाव की जरूरत होती है। सारी शारीरिक और मानसिक बीमारियों से घिरा मानव यह तो जानता है कि उसे शारीरिक तकलीफ है ,लेकिन वह यह नहीं समझता है कि उसे मानसिक तकलीफ भी है।
सुग्रीव में कई तरह की कमियां थी लेकिन भगवान राम को उनकी सादगी भा गई। राम को अपनी कहानी सुनाते समय स्वीकार कर लिया था कि वे डरपोक और कायर हैं उन्होंने तथ्य छिपाये नहीं। राम सुग्रीव से बेहद खुश हुए और उन्हें सरलता का प्रतीक माना। जब सुग्रीव नेअपनी कमियां नहीं छिपाई तभी भगवान राम उसकी जिम्मेदारी स्वीकारने को तैयार हुए। शास्त्रों में भी अपनी कमियों को स्वीकारने को महत्व दिया है। जिंदगी में स्वयं का मूल्यांकन अति आवश्यक है।

Read More
  • Share This:  
  •  Facebook
  •  Twitter
  •  Google+
  •  Stumble
  •  Digg

भला इंसान दूसरों में अच्छाई ढूंढ ही लेता है।

 Updesh Kumari     June 25, 2018     Gyaan Sangam     No comments   

भला इंसान दूसरों में अच्छाइयां ढूंढ ही लेता है। फिर भले ही दूसरा मनुष्य बुरा हो ,कृतघ्न हो या चालाक हो ,भले ही दुनिया में कहीं भी हो ,लेकिन एक अच्छा व्यक्ति उसमें हमेशा कोई न कोई अच्छाई जरूर ढूंढ लेता है। ऐसे व्यक्ति हमेशा लोगों की सैकड़ों हजारों अच्छाइयों का ही बखान करते रहते हैं ,ठीक उसी तरह से जैसे मधुमक्खी उन फूलों पर भी जाती है ,जिनमें मधु नहीं होता है। हम जिस दौर में रह रहे हैं वहां प्रतिक्रियाएं तत्काल मिलती हैं। इसमें से सकारात्मक कम नकारात्मक ज्यादा होती हैं। सामने वाले की गलतियां ढूंढ़कर उसमें कुछ मसाला जोड़कर किस्से और गप बनाये जाते हैं और उसकी बुराई कर  सुख लिया जाता है। जो कमियां उक्त व्यक्ति में नहीं हैं ,वह भी जोड़ दी जाती हैं। जो चन्द्रमा में दाग देखकर उसकी आलोचना करते हैं ,वे मूर्ख ही होंगे।
जिस तरह मधुमक्खी किसी फूल की बुराई नहीं देखती ,वह केवल उसके मधु पर ध्यान रखती है उसी प्रकार से अच्छे लोग भी केवल अच्छाई की तलाश में रहते हैं। यहां तक कि किसी व्यक्ति में मामूली -सी अच्छाई भी हो तो भी उसे तब तक वे बढ़ा -चढ़ाकर बताते हैं जब तक कि बुराइयां व्यक्ति में खत्म न हो जाए। दुनिया में हम अच्छे और बुरे दोनों ही से सीख ले सकते हैं।
यदि आप शारीरिक रूप से स्वस्थ हैं और शरीर में कुछ कटने से उसमें संक्रमण हो जाता है तो मकिखयां उसपर मँडराएंगी। वे स्वस्थ शरीर की ओर  आकर्षित  न होकरउस  संक्रमण की ओर आकर्षित हो रही हैं। इसलिए जिनकी प्रकृति गंदगी की ओर आकर्षित होने की है ,वे सदैव उधर ही जायेंगे ,वे गलती ही ढूंढ़ते रहेँगे और दूसरों को कोसते ही रहेंगे। अतः मनुष्य को चाहिए कि वह दूसरों की गलतियों की ओर ध्यान ही न दें।  किसी दूसरे मनुष्य में क्या अच्छा है ,इसे समझने और इस पर चिंतन को केंद्रित करें।  
Read More
  • Share This:  
  •  Facebook
  •  Twitter
  •  Google+
  •  Stumble
  •  Digg

Sunday, June 24, 2018

बात पते की 24/6/2018 - Hindi Quotes

 Updesh Kumari     June 24, 2018     Hindi Quotes     No comments   

1.       विद्यार्थियों की शिक्षक संस्कार रूपी जड़ों में खाद देते हैं और अपने श्रम से उन्हें सींच -सींच कर महाप्राण शक्तियां बनाते हैं। -महर्षि अरविन्द
2.       वह दृढ़ प्रतिज्ञ मानव ,जो प्राण देने के लिए तैयार रहता है ,ब्रह्मांड तक को हाथों पर उठा सकता है। -रोम्या रोलां
3.       जो एक साथ बहुत कुछ कर डालने की प्रतीक्षा में है ,वह कभी कुछ नहीं कर पायेगा। -सैम्युअल जॉनसन
4.       जो निःस्वार्थ भलाई करता है ,वह न तो प्रशंसा का आकांक्षी होता और न पुरस्कार का। ये उसे स्वतः प्राप्त हो जाते हैं। -विलियम पेन
5.       गलती न करना मनुष्य के वश की बात नहीं ,लेकिन समझदार लोग गलतियों से भविष्य के लिए सबक सीख लेते हैं।- प्लूटार्क
6.       अच्छा स्वास्थ्य जीवन के आनंद को जीवंत बनाता है। इसके बिना हमारा जीवन नीरस हो जाता है। -विलियम टैम्पल
7.       डूबने वाले के साथ सहानुभूति का यह अर्थ नहीं कि उसके साथ डूब जाओ ,बल्कि तैर कर उसे बचाने का प्रयत्न करो। -आचार्य विनोबा भावे
8.       पहले अपराधी तो वे हैं,जो अपराध करते हैं और दूसरे वे ,जो उन्हें होने देते हैं। -फुलर
9.       तीन तरीकों से बुद्धिमान बना जा सकता है -गहन चिंतन से ,दूसरों को देखकर और अपने अनुभव से सीख कर। -कन्फ्यूशियस
10.   अपने मस्तिष्क को उच्च विचारों और आदर्शों से भर लो ,उन्हीं से महान कार्यों का जन्म होगा। -स्वामी विवेकानंद
Read More
  • Share This:  
  •  Facebook
  •  Twitter
  •  Google+
  •  Stumble
  •  Digg

बात पते की 25/6/2018 - Hindi Quotes

 Updesh Kumari     June 24, 2018     Hindi Quotes     No comments   

1 दुनिया में व्यक्ति अपने आचरण अथवा दुराचरण के कारण पूजा और पीटा जाता है।- मुनिश्री तरुणसागर
2 रणनीति कितनी भी अच्छी क्यों न हो ,उसके परिणामों पर भी विचार किया जाना बेहद जरूरी होता है। -विंस्टन चर्चिल
3 दुर्जन से सतकर्मों की आशा नहीं करनी चाहिए ,क्योंकि मनुष्य के स्वभाव में परिवर्तन हो सकता है ,उसकी प्रवृति नहीं बदलती। -चाणक्य
4 शक्ति के बल पर जीतने वाला अपने शत्रु पर अपूर्ण विजय ही प्राप्त कर पाता है। -मिल्टन
5 जो ढोंगी हर समय एक -सा ही अभिनय किया करता है ,वह अंततः ढोंगी नहीं रह जाता। -नीत्शे
6 यदि गुरु अयोग्य शिष्य चुने ,तो इससे गुरु की बुद्धिहीनता ही प्रकट होती है। -कालिदास
7 समाज खारे पानी की तरह है ,जिसमें तैरना आसान है ,लेकिन उसे पीना मुश्किल है। -ऑर्थर स्ट्रिंगर
8 जो शांत भाव से सहन करता है ,वही गंभीर रूप से आहत होता है। -रवीन्द्रनाथ टैगोर
9 योग्य के योग्य से मिलन से ही शक्ति उत्पन्न होती है। -हजारी प्रसाद द्विवेदी
10 जो सभ्यताएं अंतरिक्ष यात्राएं नहीं कर पाती वे विलुप्त हो जाती हैं। -कार्ल सांगा
11विवाह एक ऐसा उत्सव है ,जिसमें दावत ही नहीं ,गरिमा भी महत्वपूर्ण है। -चार्ल्स कोलटन
12शिक्षा  का सबसे बड़ा उद्देश्य ज्ञान प्राप्त करना नहीं ,बल्कि उसे व्यवहार में लाना है। -हर्बर्ट स्पेंसर
13 नेतृत्व उस व्यक्ति को मिलता है ,जो खड़ा होकर अपने विचार व्यक्त कर सके। -डेल कार्नेगी   
Read More
  • Share This:  
  •  Facebook
  •  Twitter
  •  Google+
  •  Stumble
  •  Digg

बात पते की 24/6/2018 - Hindi Quotes

 Updesh Kumari     June 24, 2018     Hindi Quotes     No comments   

1 जिसको सदा जानने की इच्छा बनी रहती है और जो बिना जाने कभी संतुष्ट नहीं होता ,वही सच्चा दार्शनिक है। -सुकरात
2 भाषा की मर्यादा रखना जरूरी है ,क्योंकि भाषा बिगड़ती है तो जीवन में उथल -पुथल मच जाती है। -मुनिश्री तरुणसागर
3 संदेह का कार्य और परिणाम क्षय रोग के कीटाणु की तरह होता है। मनुष्य के विनाश का यही जन्मदाता है।- श्री सत्यसाई
4 पढ़ने से सस्ता कोई मनोरंजन नहीं और न ही कोई ख़ुशी उतनी  स्थायी।-- लेडी मोंटेग्यू
5 आपकी तैयारियों की मुलाकात जब अवसर से होती है ,तो उसे किस्मत कहते हैं। -ओप्रा  विनफ्रे
6 जब हम निर्माण करें तो ऐसा सोच कर करें कि यह हमेशा -हमेशा के लिए है। -जॉन रस्किन
7 हम अक्सर अवसर चूक जाते हैं ,क्योंकि इसने लबादा ओढ़ा होता है और यह काम की तरह नजर आता है। -थॉमस अल्वा एडिसन
8 किस्मत अक्सर उस सड़क पर मिलती है ,जिसे आदमी किस्मत से बचने के लिए चुनता है। -फ्रांसीसी कहावत
9 हम किसी चीज की बहुत आस करें ,उससे पहले देख ले कि जिनके पास वह पहले से है ,वे कितने सुखी हैं। -फ्रेंकोइस डे
10 समय के पैर नहीं ,पंख होते हैं। वह चलता नहीं ,उड़ता है। इसलिए अपनी रफ्तार बढ़ाओ ,वरना पिछड़ जाओगे। -मुनिश्री तरुणसागर



Read More
  • Share This:  
  •  Facebook
  •  Twitter
  •  Google+
  •  Stumble
  •  Digg

हम किसी के शब्दों से आहत क्यों होते हैं ?

 Updesh Kumari     June 24, 2018     Gyaan Sangam     No comments   

हम हमेशा खुद को हर चीज के केंद्र में मानने लग जातें हैं और उलझन में पड़ जाते हैं। स्वयं को किसी घटना के केंद्र में देखना स्वाभाविक है। किन्तु दुनियाभर की आंखें आपको ही देख रही हैं ऐसा सोचना बहुत   भारी भूल है। किसी के पास इतनी फुर्सत नहीं है कि आपको देखें। आपको ही खुद को देखना है कि कहां जा रहे हैं।
महाभारत के अंत में पांडव कर्ण की अंत्येष्टि में गए। तब पता चला कि कर्ण उनका सबसे बड़ा भाई था। कुंती चाहती थी कि युधिष्ठिर कर्ण की चिता को अग्नि दे।कुंती ने उसे कर्ण को नदी में बहाने की कहानी सुनाई। यह जानने के बाद युधिष्ठिर मां को माफ़ नहीं कर सका। उसने सभी महिलाओं को कोसना शुरू कर दिया। दरअसल वह खुद को कुंती से श्रेष्ठ साबित कर रहा था। जब हम स्वयं को केंद्र में रखकर लोगों के साथ हुई घटना और उनकी प्रतिक्रिया देखते हैं तो उन्हें गलत समझने लगते हैं। अपनी श्रेष्ठता के दम्भ में हम यह भी आकलन नहीं करते कि किन हालातों में वह इसमें उलझा। परन्तु जब हम स्वयं को हटा देते हैं तो हमें सच्चाई स्पष्ट नजर आने लगती है। यदि किसी के आत्म -केंद्रित बर्ताव को हम अपने ही आत्मकेंद्रित नजरिये से देखेँगे तो कोई अर्थ नहीं निकलेगा।
उलटे इससे हम दुखी व कुंठित होने लगेँगे। हम खुद को केंद्र में रखकर दुनिया की घटनाओं और उसपर लोगों की प्रतिक्रिया का आकलन करते हैं। इससे हम खुद के अलावा दूसरों से उलझ जाते हैं। हमारे साथ आए दिन ऐसा होता रहता है। खराब मौसम से लेकर इंटरनेट या शेयर मार्केट पर किये जाने वाले कमेंट तक  हमें परेशान कर देते हैं। हमें लगता है कि यह हम पर कहर बरपा रहे हैं। हमारे आसपास की दुनिया में घटनाएं हमें केंद्र में रखते हुए नहीं हो रही हैं ,हमें उससे क्या लेना -देना। ऐसे में क्या किया जा सकता है? यदि किसी बात का आपको दुःख हो रहा है तो इसका मतलब है ,आप स्वयं को उस हालात में घेरे हुए हैं, बाहर निकल नहीं पा रहे हैं। कोई शब्द ,कोई वाक्य आपको छलनी कर रहा है ,यहां से विषाद शुरू होता है और आप दुखी रहने लग जाते हो। अर्जुन ने जब खुद को कृष्ण को समर्पित कर दिया ,तो फिर वह केंद्र में कहीं नहीं था ,बस कृष्ण ही कृष्ण थे। इसी प्रकार केंद्र में आप भी नहीं हैं। हालात केवल आपके लिए नहीं हैं। अतः आप अपने को तटस्थ रखकर खुश रखें। 
Read More
  • Share This:  
  •  Facebook
  •  Twitter
  •  Google+
  •  Stumble
  •  Digg

मृत्यु से डर क्यों लगता है ?

 Updesh Kumari     June 24, 2018     Gyaan Sangam     No comments   

मृत्यु से डर इसलिए लगता है कि हमने मृत्यु को अच्छी तरह समझा ही नहीं है। अपनी ही अज्ञानता के कारण मृत्यु हमें भयानक लगती है इसके बारे में अगर ठीक- ठाक जानकारी प्राप्त हो जाए तो मृत्यु का डर दूर हो सकता है। ममता के कारण भी मृत्यु से अधिक भय लगता है। मृत्यु अवश्यम्भावी है ,होनी ही है ,इसको टाला नहीं जा सकता ,तब मृत्यु से क्यों डरना ,क्यों घबराना ?जितना डरते रहेंगे मृत्यु का भय उतना ही डरावना होता जाएगा। मृत्यु के बाद जन्म है -इतना समझ में आ जाए तो फिर सरल -सी लगेगी।
जब साधारण मनुष्य के आगे मृत्यु होती है तो वह उसे देख -देख कर डरता है लेकिन जब मनुष्य मृत्यु के आगे चलता है अथार्त ज्ञान पाकर मृत्यु को पीछे छोड़ देता है तो उसे मृत्यु का डर नहीं सताता :अतः मृत्यु के डर से बचने का यही उपाय है कि ज्ञान प्राप्त कर मृत्यु पर विजय पा ले। 
Read More
  • Share This:  
  •  Facebook
  •  Twitter
  •  Google+
  •  Stumble
  •  Digg

जब नकारात्मक व्यक्ति से प्रतिदिन सामना हो -

 Updesh Kumari     June 24, 2018     Gyaan Sangam     No comments   

काम की जगह या पास-पड़ोस में आपका सामना ऐसे व्यक्तियों से हो सकता है ,जो दूसरों का फायदा लेने में माहिर होते हैं। उन्हें न तो कभी पश्चाताप होता है और न दूसरों के प्रति सहानुभूति रहती है। सोशियोपैथ कहलाते हैं। आपका सोशियोपैथ साथी कुछ भी बताए तो आसानी से भरोसा न करें। ये लोग दुखती रग पर हाथ रख कर फायदा उठाने में माहिर होते हैं। जैसे वे कहेंगे बॉस तुम्हारी रिपोर्ट से बहुत नाराज है। जब तक खुद बॉस के मुंह से न सुन ले ,भरोसा न करे। दूसरे ,ऐसे व्यक्तियों को सुधारने की कोशिश न करें।उनसे निपटना आसान नहीं होता। यदि आप संवेदनशील व सहानुभूति रखने वाले व्यक्ति हैं तो यह उनके लिए और भी सही है। वे ऐसे ही लोगों को निशाना बनाते हैं। बेहतर होगा यदि आप पूरी तरह से उनसे संबंध तोड़ लें। तीसरे ,सोशियोपैथ आसपास हो तो चेहरा प्रसन्न रखें। फिर आपका मूड खराब ही क्यों न हो। अपना वास्तविक मूड ऐसे व्यक्तियों पर जाहिर न करें। आपकी नकारात्मक भावना उन्हें उसे भुनाने के लिए आकर्षित करेगी।
व्यक्तिगत जानकारी न दें -अपने परिवार ,मित्रों ,सपनों और भविष्य की योजनाओं पर इनसे बात न करें। ये आपका ,आपके संसाधनों और संबन्धों का इस्तेमाल करना चाहते हैं। उन्हें यह जता दें कि आपका फायदा उठाना आसान नहीं है। उसे ही बोलते न रहने दें। बातचीत अपने हाथ में लें और लगातार विषय बदलें खासतौर पर जब वह आपको आहत करने की कोशिश कर रहा हो। प्रयास करें कि बातचीत में मौन के लम्बे पल न हो। इनके लिए तीन नियमों का पालन करें -1 एक बार झूठ बोला ,एक वादा तोड़ा और दी गई एक जिम्मेदारी नहीं निभाई। चौथा मौका न दें।आप ऐसे झूठे व्यक्ति से निपट रहे हैं ,जिसकी अंतरात्मा ही नहीं है। दया दिखाएंगे तो वह और फायदा उठाएगा।
2 कौन -सी बातें आपको व्यथित करती हैं या ख़ुशी देती हैं ,इस बारे में बात करना टालें। यदि उसे मालूम पड़ गया है कि कौन -सी बातें आपको गुस्सा दिलाती हैं या उदास करती हैं तो वह इसका इस्तेमाल आपके खिलाफ हथियार की तरह करेगा। अपनी कमजोरी की शिकायत भी न करें।
3 ऐसे लोगों से कभी अहसान न लें। लोगों को शिकार बनाने का उनका एक तरीका यह है कि वे अहसान दिखा कर लोगों पर अधिकार स्थापित कर लेते हैं। ऐसा कुछ न करें कि बाद मेंसोशियोपैथ आपका व्यवहार नियंत्रित करने के लिए उनका इस्तेमाल करे। जैसे पैसे उधार न लें ,तोहफा न लें अथवा किसी भी रूप में मदद न लें।
Read More
  • Share This:  
  •  Facebook
  •  Twitter
  •  Google+
  •  Stumble
  •  Digg

Saturday, June 23, 2018

निद्रा और मृत्यु दोनों सगी बहनें - कैसे ?

 Updesh Kumari     June 23, 2018     Gyaan Sangam     No comments   

निद्रा और मृत्यु दोनों सगी बहनों की भाँति हैं। मृत्यु माँ है तो निद्रा माँ -सी है अथार्त उसकी छोटी बहन है। जितनी आवश्यकता नींद की होती है ,मृत्यु की आवश्यकता उससे कहीं अधिक होती है। मृत्यु का महत्व नींद की तुलना से अधिक है। जीवन -भर में प्राणी कितनी ही नींदें कर ले ,परन्तु अंतिम नींद मृत्यु की ही गोद में करनी पड़ती है। नींद की अवधि कुछ ही घंटों के लिए होती है ,परन्तु जिसे मृत्यु सदा के लिए गोद में सुला देती है उसे फिर कोई जगा नहीं सकता।
निद्रा और मृत्यु में बहुत हद तक समानता है। निद्रा में दिन -भर की शारीरिक थकान मिटती है ,आनंद -सा प्राप्त होता है ,फिर सुबह उठने पर स्फूर्ति ,ताजगी मिलती है ;उसी प्रकार मृत्यु सारे जीवन की थकान दूर करती है ,पुराने शरीर को समाप्त कर नया शरीर प्रदान करती है। नई स्फूर्ति ,नए साहस के साथ नया जन्म मिलता है। जीवात्मा पुनः कर्म करता है और उन्नति का एक और अवसर मिलता है ,ईश्वर प्राप्ति का एक और अवसर प्राप्त होता है। जहां पर उसे आनंद ही आनंद मिलता है। 
कभी -कभी मनुष्य को नींद नहीं अपनाती ,नींद नहीं आती ,लोग नींद के लिए परेशान होते हैं ,ओषधियाँ लेते है फिर भी नींद नसीब नहीं होती ,परन्तु मृत्यु की गोद में सभी प्राणियों को सदा के लिए नींद अवश्य ही प्राप्त होती है। नींद ठुकरा सकती है ,परन्तु मृत्यु किसी को नहीं ठुकराती ,सबको गले लगाती है ,सबको अपनी आग़ोश में पनाह देती है। यही फ़र्क है निद्रा और मृत्यु में। 
Read More
  • Share This:  
  •  Facebook
  •  Twitter
  •  Google+
  •  Stumble
  •  Digg

मनुष्य -योनि सर्वश्रेष्ठ योनि कैसे ?

 Updesh Kumari     June 23, 2018     Gyaan Sangam     No comments   

मनुष्य - योनि ही सर्वश्रेष्ठ योनि है -केवल मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जो अपनी बुद्धि का विकास करके अपने लिए सब सुख -साधन की वस्तुएँ इकट्ठी कर सकता है। पृथ्वी पर ,जल में और अंतरिक्ष में भ्रमण कर सकता है। मनुष्य के मस्तिष्क का कमाल है कि बाकि सब योनियों के प्राणी मनुष्य के पराधीन रहते हैं। मनुष्य में कर्म करने की स्वतंत्रता है। जितनी भी तरक्की देख रहे हैं ,वह किसी और ने नहीं ,मनुष्य ने ही की है।
जो सबसे महत्वपूर्ण है वह ईश्वरीय ज्ञान वेद है जो ईश्वर केवल मनुष्यों को ही प्रदान करता है। इससे भी यह प्रमाणित होता है कि ईश्वर की मनुष्य -जाति के ऊपर विशेष कृपा है। मनुष्य- योनि में ही भोग और योग होता है जबकि इसके अलावा सब योनियों में केवल भोग होता है।
संक्षेप में मनुष्य के पास वेद है ,विवेक है ,धर्म है ,कर्म करने की क्षमता और स्वतंत्रता है और ईश्वर -प्राप्ति के सब साधन उपलब्ध हैं -इससे वह सब प्रकार के दुखों से निवृति पाकर नितांत सुख प्राप्त कर सकता है -परम आनंद की प्राप्ति कर जन्म -मरण के बंधन से परान्तकाल तक मोक्ष प्राप्त कर सकता है ,इसीलिए मनुष्य -योनि ही सर्वश्रेष्ठ योनि है। 




Read More
  • Share This:  
  •  Facebook
  •  Twitter
  •  Google+
  •  Stumble
  •  Digg

Friday, June 22, 2018

बात पते की 23/6/2018 - Hindi Quotes

 Updesh Kumari     June 22, 2018     Hindi Quotes     No comments   

1 दान से दरिद्रता ,शील स्वभाव से दुर्गति ,बुद्धि से मूर्खता तथा अच्छी भावना से भय का नाश होता है। -चाणक्य
2 जो दूसरों को जानता है ,वह शिक्षित है ,किन्तु जो स्वयं को पहचानता है ,वह बुद्धिमान है। -लाओत्से
3 सत्य निःशब्द है और कुछ प्रश्नों के उत्तर मौन में दिए जा सकते हैं। --मुनि श्री तरुणसागर
4 लोग अकेले इसलिए होते हैं ,क्योंकि वे मित्रता का पल बनाने की बजाए दुश्मनी की दीवार खड़ी कर लेते हैं। -जोसेफ फोर्ट न्यूटन
5 बुद्धिमान इसलिए बोलते हैं ,क्योंकि उनके पास बोलने के लिए कुछ होता है ,जबकि मूर्ख व्यक्ति सिर्फ बोलने के लिए बोलते हैं। -प्लेटो
6 मनुष्य अपने दृष्टिकोण में परिवर्तन करके अपने जीवन को बदल सकता है। --विलियम जेम्स
7 निर्धनता में भी खुश रहने वाला व्यक्ति निर्धन नहीं होता। --हिचकॉक
8 असफल व्यक्तियों में से निन्यानवे प्रतिशत वे लोग होते हैं ,जिनकी आदत बहाने बनाने की होती है। -जार्ज वॉशिंगटन कार्वर
9 जब कोई व्यक्ति लक्ष्य के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगाने को तैयार हो तो उसका जितना सुनिश्चित है। -नेपोलियन हिल
10 सेहत संबंधी किताबें पढ़ते वक्त सतर्क रहें। प्रूफ की गलती से आप निपट भी सकते हैं। --मार्क ट्वेन

Read More
  • Share This:  
  •  Facebook
  •  Twitter
  •  Google+
  •  Stumble
  •  Digg

बात पते की 22/6/2018 - Hindi Quotes

 Updesh Kumari     June 22, 2018     Hindi Quotes     No comments   

1 आत्मविश्वास ,आत्मज्ञान ,आत्मसंयम -यही तीन जीवन को परम शक्ति -सम्पन्न बना देते हैं। -टेनीसन
2 बुद्धिमान विवेक से ,साधारण मनुष्य अनुभव से ,अज्ञानी आवश्यकता से और पशु स्वभाव से सीखते हैं। -सिसरो
3 एक मनुष्य के लिए व्यक्तित्व का वही महत्व होता है ,जो एक फूल में सुगंध का होता है। -चार्ल्स एम ,श्वाब
4 उद्योग से दरिद्रता नहीं रहती ,जप से पाप नहीं रहता ,मौन से कलह नहीं होती और जागते रहने से भय नहीं रहता। -चाणक्य
5 असंतोष अपने ऊपर अविश्वास का फल है। यह कमजोर इच्छा का रूप भी है। -इमर्सन
6 विपत्ति हीरे का वह चूर्ण है ,जिससे ईश्वर अपने रत्नों की पॉलिश करता है। -लेटन
 7 विश्वास उस पक्षी के समान है ,जो सवेरा होने से पूर्व के अंधकार में ही प्रकाश का अनुभव करके चहचहाने लगता है। -रवीन्द्रनाथ टैगोर
8 जिसने ईमानदारी खो दी ,उसके पास खोने के लिए और कुछ नहीं बचता।-- जॉन लाइली
9 अत्याचारी से बढ़कर अभागा व्यक्ति दूसरा नहीं ,क्योकि विपत्ति के समय उसका कोई मित्र नहीं होता।-- शेख सादी
10 बुद्धिमान लोग कभी अपनी हानि पर शोक नहीं करते ,बल्कि प्रसन्न्तापूर्वक क्षति को पूरा करने का उपाय करते हैं। -शेक्सपीयर
Read More
  • Share This:  
  •  Facebook
  •  Twitter
  •  Google+
  •  Stumble
  •  Digg

इंसान भी अजीब किस्म का व्यापारी है

 Updesh Kumari     June 22, 2018     Gyaan Sangam     No comments   

इंसान भी बड़ा ही  अजीब किस्म का व्यापारी है। जब चीज हाथ से निकल जाती है तब वह उसकी कीमत पहचानता है। जब सुकरात की मृत्यु हुई तब उस मृत्यु का कारण बनने वाले एक दुष्ट व्यक्ति को बड़ा पछतावा हुआ। वह सुकरात के एक शिष्य से जाकर बोला -मुझे सुकरात से मिलना है। इसपर शिष्य ने कहा -क्या अब भी तुम्हें उनका पीछा नहीं छोड़ना है ? 'नहीं भाई ,ऐसा नहीं है। मुझे बहुत पछतावा हो रहा है। मुझे ऐसा लग रहा है कि मैंने उस महापुरुष के प्रति भयंकर अन्याय किया है। मुझे उनसे क्षमा मांगनी है। '
अरे मूर्ख व्यक्ति ! यह तो अब असंभव है। पुल के नीचे बहुत पानी बह गया है। स्वयं सुकरात ने एक स्थान पर कहा है --'अंतिम समय में मृत्युवेला में मनुष्य सत्य को पहचान ले यह सम्भव है ,किन्तु उस समय बहुत विलम्ब हो चुका होता है। '
सत्यानाश कर डालने के बाद पश्चाताप करने का कोई अर्थ ही नहीं। जब महापुरुष शरीर छोड़कर चले जाते हैं ,तब उनकी महानता का पता लगने पर इंसान पछताते हुए रोते रह जाता है और उनके चित्रों को दीवार पर सजाता है लेकिन उनके जीवित सानिंध्य में कभी अपना दिल दिया होता तो बात ही कुछ और होती। अब पछताये होत क्या ---जब संत गये निजधाम।

Read More
  • Share This:  
  •  Facebook
  •  Twitter
  •  Google+
  •  Stumble
  •  Digg

निन्दा से जीवन शक्ति का ह्रास

 Updesh Kumari     June 22, 2018     Gyaan Sangam     No comments   

निंदकों का काम है -निंदा करना तथा अपने पुण्यों एवं आंतरिक शांति का विनाश करना। यदि निंदा में रूचि लेने वाला व्यक्ति इतना समझ जाए कि निंदा क्या है तो कितना अच्छा हो ! किन्तु यदि वह इसे समझना ही न चाहे तो क्या किया जा सकता है ?एक सज्जन ने अपने गुरु से कहा कि सत्य की तुलना में असत्य बिलकुल निर्बल होता है। फिर भी वह इतनी जल्दी क्यों फैल जाता है ? इसका कारण यह है कि सत्य जब तक अपना जूता पहनता है ,तब तक असत्य सारी पृथ्वी का चक्कर लगा आता है। सत्य में सब कुछ स्पष्ट ही होता है जबकि असत्य अपने  हजारों रंग दिखाता रहता है।
हजरत मुहम्मद को एक बार ऐसा पता लगा कि उनके पास आने वाले एक व्यक्ति को निंदा करने की बड़ी आदत है। उन्होंने उस व्यक्ति को अपने पास बुला कर पँखों से बनाए गये एक तकिए को देते हुए कहा कि ये पँख तुम घर -घर फेंक आओ। उस व्यक्ति को कुछ पता न चला कि यह सब क्या हो रहा है ?वह  बड़े उत्साह से चल पड़ा। उसने प्रत्येक घर में एक -एक पँख रखते हुए किसी न किसी की निंदा भी की।
दूसरे दिन शाम को पैगंबर ने उसे अपने पास बुलाकर कहा -अब तू पुनः जा और सारे पँखों को वापस ले आ। व्यक्ति ने कहा -यह अब कैसे हो सकेगा ?सारे पँख न जाने कहाँ उड़कर चले गए होंगे ? इस पर मुहम्मद ने कहा -इसी तरह तू जो जगह -जगह जाकर गैर जिम्मेदार बातें करता है ,वे भी वापस नहीं आ सकती। वे भी इधर- उधर उड़ जाती हैं। उनसे तुझे कुछ मिलता नहीं बल्कि तेरी जीवनशक्ति का ही ह्रास होता है और सुनने वालों की भी तबाही होती है। अतः निन्दा जैसी दुष्प्रवृति से बचना ही श्रेयस्कर है। 
Read More
  • Share This:  
  •  Facebook
  •  Twitter
  •  Google+
  •  Stumble
  •  Digg

Thursday, June 21, 2018

असम्भव बातों पर विश्वास न करें -

 Updesh Kumari     June 21, 2018     Gyaan Sangam     No comments   

असम्भव बातों पर कभी विश्वास मत करो -इसको हम एक दृष्टांत द्वारा बतलाना चाहते हैं। एक गांव में एक शिकारी रहता था। वह प्रतिदिन जंगल में जाता और कोई न कोई शिकार करके लाता था। तभी उसकी नजर पेड़ की डाल पर बैठी एक सुंदर चिड़िया पर पड़ी और उसने तुरंत एक क्षण भी गवाएँ उस पर अचानक जाल फेंक दिया। जाल में फँसी बेबस चिड़िया ने शिकारी से कहा -हे भाई ! कृपा करके मुझे छोड़ दो। मैं तुम्हारा जीवन भर अहसान मानूँगी। मुझ जैसे छोटे पक्षी को मार  कर तुम्हें क्या मिलेगा ?इतना ही नहीं बड़ी चालाकी से चिड़िया बोली -देखो शिकारी अगर तुम मुझे छोड़ दोगे तो मैं तुम्हें दो बातें बताऊँगी जिससे जीवन में तुम्हें बहुत लाभ होगा और यदि तुम मुझे मार दोगे तो वे दोनों बातें मेरे साथ ही चली जाएंगी फिर तुम जीवन भर पछताओगे।
चिड़िया की यह बात सुनकर शिकारी के मन में लालच उत्पन्न हुआ और वह दो बातें बताने के बाद राजी हो गया। चिड़िया ने शिकारी को पहली बात बताई कि जीवन में किसी भी ऐसी बात पर विश्वास मत करो जो असम्भव हो ,फिर वह बात चाहे किसी ने भी क्यों न कही हो। शिकारी ने चिड़िया से दूसरी बात बताने को कहा तो वह बोली -कोई चीज तुम्हारे हाथ से निकल जाए तो उसके लिए पछताने की जरूरत नहीं। लेकिन मैं तुम्हें एक राज की बात बताती हूँ। सुनो ,मेरे पेट में एक आधा किलो वजन का हीरा है यदि तुम मुझे मार देते तो वह हीरा तुम्हें मिल जाता और तुम लखपति हो जाते।
इतना सुनकर शिकारी रोने पीटने लगा और कहने लगा कि हाय मैं तो कंगाल हो गया, यह मैंने क्या किया तो उसका रोना सुनकर चिड़िया बोली -मूर्ख  शिकारी अभी -अभी मैंने तुम्हें बात बताई थी कि जो चीज हाथ से निकल जाए उसका पछतावा करने की जरूरत नहीं ,उसके पहले बताया था कि जो सम्भव नहीं उस बात पर विश्वास मत करो। बेवकूफ  कहीं    के ,मेरा तो वजन 50 ग्राम भी नहीं फिर मेरे पेट में आधा किलो ग्राम का हीरा कहाँ से आया। इतना कहकर चिड़िया पेड़ की डाल से उड़ गई और शिकारी उसे पथराई आँखों से देखता रह गया।            
 
Read More
  • Share This:  
  •  Facebook
  •  Twitter
  •  Google+
  •  Stumble
  •  Digg

ईश्वर प्राप्ति के लिए गुरु व आचार्य आवश्यक है या नहीं

 Updesh Kumari     June 21, 2018     Gyaan Sangam     No comments   

ईश्वर प्राप्ति के लिए किसी गुरु व आचार्य की आवश्यकता होती है अथवा नहीं यह एक विचारणीय प्रश्न है ?इसके लिए वैदिक मान्यताए बड़ा तर्क संगत उत्त्तर देती है | उनके मतानुसार ईश्वर तक पहुंचने के लिए किसी दलाल, वकील, पीर अवतार या गुरु की आवश्यकता नहीं है | ईश्वर सभी प्राणियों के अंदर बसा हुआ है | वह सभी के उतना ही समीप है | आत्मा के दवारा ही ईश्वर को जाना जा सकता क्योकि ईश्वर आत्मा में विधमान है |आत्मा और परमात्मा के बीच और कुछ नही है | मनुष्य अपने ज्ञान से और मन की पवित्रता से ही ईश्वर को जान सकता है | ईश्वर किसी की सिफारिश नहीं मानता | ईश्वर किसी एक को अपना दूत बना कर भेजे तो वह पक्षपाती बनता है | वह तो सभी के लिए एक समान है | आजकल जो सेकड़ो गुरु बने हुए है वे तो केवल धन बटोरने, अपने ऐशोआराम के लिए तथा मानसम्मान हेतु शिष्य बनाते है | ये गुरु ज्ञान की बजाय अज्ञान फैलाते है | ईश्वर के स्थान पर अपनी पूजा करवाते है | वेद आदि उत्तम ग्रंथो की बजाय अपनी स्वार्थपूर्ण घटिया पुस्तके पढ़ने को  देते है, पूजने के लिए अपनी तस्वीरे देते है जबकि ईश्वर प्राप्ति में मूर्तिपूजा का कोई स्थान नहीं | अपने शिष्यों को इतने अंधविश्वासी बना देते है कि जो गुरु कहे वह सब सत्य अन्यथा सब झूढ | अपने शिष्यों में वे दिखावटी ज्ञान को भरने का प्रयास करते है |वे आसन लगाकर समाधि की मुद्रा में बैठ कर ध्यान करने का आडम्बर करते है वास्तव में तो उनके मन में अहंकार भरा होता है |

ये शिष्य भी गुरु का झूठा खाने में गौरव मानते है |गुरु के पीछे ऐसे भागते कि अपनी ज्ञान की आँखे बंद कर लेते है और अपने जीवन में घोर अंधकार, अज्ञान तथा दुख पाल लेते है | दुःखों से छूटना और मुक्ति पाना--आसान काम नहीं ,गुरु ने फूक मारी ओर दुख उड़ गए | मन वचन कर्म से शुद्ध होकर सहज भाव की भक्ति से ईश्वर को पाया जा सकता है अज्ञानी गुरुओ की शरण में जाने से नहीं | |
Read More
  • Share This:  
  •  Facebook
  •  Twitter
  •  Google+
  •  Stumble
  •  Digg

मेरी मौत ने जाना सच

 Updesh Kumari     June 21, 2018     Gyaan Sangam     No comments   

कई बार स्वपन भी इंसान को समाज का आईना दिखा देते है| एक दिन सपने में मेरे प्राण पखेरू उड़ गए| मैंने देखा कि शमशान भूमि में वे लोग भी हाजिर थे जो जिंदा रहते हुए मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं करते थे| मैं चिता के भीतर से उन सबकी हरकते चुपचाप देख रही थी| वे ऐसे फूटफूट कर रो रहे थे जैसे उनका कोई अपना मर गया हो| मुझे यह सब देख कर बड़ी हैरानी हुई| एक ने कहा यह महिला दुनिया की महान लेखिका होती यदि कुछ दिन और जीवित रहती| इसका जाना हिंदी साहित्य की महत्वपूर्ण क्षति है जो निकट भविष्य मैं पूरी नहीं होगी |दूसरे व्यक्ति ने कहा ये महिला जिंदगी भर क्रांति की बातें करती रही लेकिन जनता क्रांति के लिए बिल्कुल तैयार नहीं हुई, विश्वास कीजिये अब यह क्रांति करने के लिए जरूर हमारे बीच जन्म लेगी तभी इनकी आत्मा को शांति मिलेगी| तीसरे ने कहा देवी थी देवी, अगर यह दूसरे लोगों की तरह जीवन मैं समझौते कर लेती तो वास्तव मैं बहुत कुछ हासिल कर लेती| चौथे ने कहा इसमें आग थी आग जीवन भर जलती रहती थी क्रोध रूपी अग्नि मैं जलने पर भी वह दुसरो के हित मैं कार्य करती रहती थी| पांचवे ने कहा यह महादेवी थी- दैवीय गुणों से भरपूर थी| उनके न रहने के बाद भी लगता है कि वह अभी किसी क्षण हमारे बीच अचानक आ जाएगी| मेरा मन हुआ कि चित्ता के भीतर से निकल कर कह दू कि तुम लोग जिंदगीभर  मुझे गलियां देते रहे अब मरने के बाद मुझे देवी बनाने पर तुले हुए हो| वैसे सच मानिये मरना मेरे लिए घाटे का सौदा नहीं रहा| मैंने यह तो जाना कि लोग मेरे बारे मैं कैसा सोचते है?|
Read More
  • Share This:  
  •  Facebook
  •  Twitter
  •  Google+
  •  Stumble
  •  Digg

गुस्से को काबू करना --एक कौशल

 Updesh Kumari     June 21, 2018     Gyaan Sangam     No comments   

गुस्से को काबू करना कौशल है जिसे सीखना पड़ता है | गुस्से से उबलता हुआ व्यक्ति कई बार अपना आपा खो बैठता है | एक महिला ने अपनी शादी टूटने की वजह से बेहद तनावग्रस्त और परेशान हो कर अपनी बिल्ली को पैरो से कुचल कर मार डाला | अंत में उसे बिल्ली की मौत का  खामयाजा भुगतना पड़ा व् माफ़ी भी मांगनी पड़ी | गुस्से से कई बीमारिया घर कर जाती है | लम्बे समय में यह ब्लड शुगर का संतुलन बिगाड़ता  है इससे हड्डिया और रोग प्रतिरोधक शक्ति कमजोर होती है | दिमाग की सोचने की क्षमता प्रभावित होती है और ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है | खून का थक्का जम जाता है जो दिल या दिमाग में जा कर हार्ट अटैक या लकवे का कारण बन सकता है | गले व् दिमाग की मांशपेशियों में कड़ेपन से सिरदर्द, माइग्रन और नींद न आने की शिकायत हो जाती है | सर्वप्रथम भाईचारे की भावना रख कर गुस्से पर काबू पाया जा सकता है, दूसरे समझा कर शांत किया जा सकता है जेसे हम फिल्म में किसी को रोते देखते है तो वही भाव आपके चेहरे पर आ जाते है | यह मिरर न्यूरॉन कहलाते है  |क्रोध में आये व्यक्ति को शांत मुद्रा में समझाया जाये तो तो उसका गुस्सा ठंडा पड़ जायेगा क्योकि उसके मिरर न्यूरॉन आपकी शांत मुद्रा की नकल करते है |
Read More
  • Share This:  
  •  Facebook
  •  Twitter
  •  Google+
  •  Stumble
  •  Digg

जीवन ही नहीं मृत्यु भी पर्व की तरह लगे

 Updesh Kumari     June 21, 2018     Gyaan Sangam     No comments   

हेलो, जीवन ही नहीं मृत्यु भी पर्व की तरह लगे- मनुष्य अपने जीवन को इस तरह जिए कि  मृत्यु भी पर्व की तरह सुखद हो | मृत्यु आने पर मनुष्य को सुखद अनुभूति की तृप्ति मिले, जब नदी किसी महासागर मे मिलती है तो उसके बहाव में सागर से मिलने की उमंग होती हे | हम भी मृत्यु को महासागर माने और जीवन को नदी की तरह मानते हुए तैयार रहें  कि एक न एक दिन सागर रुपी परमात्मा से मिलना है, परमात्मा से मिलने का जो उत्साह है उसका माध्यम मृत्यु ही तो है | लोग मौत के भय से टूट जाते है क्योकि उन्होंने जीवन सही ढंग से व् सम्मानपूर्वक नहीं जीया | अतः जीवन में घटित विगत सुखद पलों को मृत्यु से जोड़े तो मृत्यु के समय भी वैसी ही अनुभूति मिलेगी, अगर हमने अपना जीवन ईमानदारी से व्यतीत किया है तो जिस दिन मौत आयेगीआप संतुष्ट होंगे कि इसी दिन का तो इंतजार था |
Read More
  • Share This:  
  •  Facebook
  •  Twitter
  •  Google+
  •  Stumble
  •  Digg

Wednesday, June 20, 2018

बात पते की 21/6/2018 - Hindi Quotes

 Updesh Kumari     June 20, 2018     Gyaan Sangam, Hindi Quotes     No comments   

1 अवगुण नाव के पेंदे में मौजूद उन छिद्रों के समान हैं ,जो कभी भी नाव को डुबो सकते हैं।-- कालिदास
2 त्याग से पाप का मूलधन ही चुकता है और दान से पाप का ब्याज। --आचार्य विनोबा भावे
3 कमजोर आदमी हर काम को असंभव समझता है ,जबकि वीर पुरुष हर असंभव कार्य को साधारण। -पं.मदनमोहन मालवीय
4 जो मस्तिष्क समर्पण में झुकता है ,उसे शर्म से कभी नहीं झुकना पड़ता।-- श्री श्री रविशंकर
5 थोड़ा पढ़ना ,ज्यादा सोचना ,कम बोलना ,ज्यादा सुनना -ये बुद्धिमान होने के उपाय हैं।-- रवीन्द्रनाथ टैगोर
6 आदमी जो कमाता है वह नहीं ,बल्कि जो बचाता है वह धन ही उसे धनी बनाता है। -महाभारत
7 चिंता एक काली दीवार की भांति चारों ओर से हमें घेर लेती है ,जिसमें से निकलने की फिर कोई गली नहीं सूझती। -प्रेमचंद
8 सहनशील होना अच्छी बात है ,परन्तु अन्याय का विरोध करना उससे भी उत्तम है। -जयशंकर प्रसाद
9 अज्ञानता और विचारहीनता मानवता के विनाश के दो बड़े कारण हैं। --जॉन मिलटन
10 सुख और आनंद ऐसे इत्र हैं जिन्हें जितना अधिक दूसरों पर छिड़कोगे ,उतनी ही सुगंध आपके भीतर समाएगी। -इमर्सन
Read More
  • Share This:  
  •  Facebook
  •  Twitter
  •  Google+
  •  Stumble
  •  Digg

Tuesday, June 19, 2018

बात पते की 20/6/2018 - Hindi Quotes

 Updesh Kumari     June 19, 2018     Hindi Quotes     No comments   


  1. अपनी क़द्र करना चाहते हो तो अपनी वाणी की कद्र करना सीखो। कम बोलो ,काम का बोलो। --मुनि श्री तरुणसागर
  2. किसी को अपनी प्रशंसा करने के लिए विवश कर देने का केवल एक ही उपाय है कि सत्कर्म करें। -वाल्टेयर
  3. सत्य सिद्धांत नहीं ,अनुभूति है। इसे शास्त्र में नहीं ,स्वयं में ही खोजना पड़ता है। --ओशो
  4. आशा उत्साह की जननी है। आशा में तेज है ,बल है ,जीवन है। आशा ही संसार की संचालन शक्ति है। --प्रेमचंद
  5. निराशावादी हर अवसर में मुश्किल देखता है जबकि आशावादी हर मुश्किल में अवसर तलाश लेता है। --विंस्टन चर्चिल
  6. निष्काम कर्म करने में ही सच्चे धर्म का पालन है और वही वास्तविक योग है। ---श्री गुरुग्रंथ साहिब
  7. धन खाद की तरह है। जब तक इसे फैलाया न जाए ,तब तक यह बहुत कम उपयोगी होता है। --फ़ॉसिस बेकन
  8. हमारे जीवन का उद्देश्य संसार के प्रति भलाई होनी चाहिए ,न कि अपने गुणों का गान। --स्वामी विवेकानंद
  9. सुखी वह है ,जो इस संसार को एक स्वर्गीय उपवन में परिणत कर देता है। --स्वामी रामतीर्थ
  10. छोटेलोग आपकी महत्वाकांक्षाओं को तुच्छ बनाने का प्रयास करते हैं, वही महान लोग महान बनने की प्रेरणा देते हैं।-- मार्क ट्वेन 
Read More
  • Share This:  
  •  Facebook
  •  Twitter
  •  Google+
  •  Stumble
  •  Digg

बात पते की 19/6/2018 - Hindi Quotes

 Updesh Kumari     June 19, 2018     Hindi Quotes     No comments   


  1. निष्क्रियता से संदेह और डर उत्पन्न होता है जबकि क्रियाशीलता से विश्वास व साहस का सृजन होता है। --डेल कारनेगी
  2. हम अगर किसी चीज की कल्पना कर सकते हैं तो उसे साकार भी कर सकते हैं। --नेपोलियन हिल
  3. अभिलाषा की पूर्णता और सिद्धि के लिए अंतःकरण से प्रयत्न करने पर उसकी प्राप्ति अवश्य होती है। -स्वेट मार्डेन
  4. घृणा करना शैतान का कार्य है ,क्षमा करना मनुष्य का धर्म है और प्रेम करना देवताओं का गुण है। --भर्तृहरि
  5. बुद्धिमानों की रचनायें ही एकमात्र ऐसी अक्षय निधि हैं ,जिन्हें हमारी संतति विनष्ट नहीं कर सकती। --लेंटर
  6. मानव के सभी गुणों में साहस पहला गुण है ,क्योंकि यह सभी गुणों की जिम्मेदारी लेता है। --चर्चिल
  7. त्याग का आदर्श महान है और वही जगत में कुछ कर सकता है ,जिसमें त्याग की भावना अधिक हो। --महावीर स्वामी
  8. दृढ़ -प्रतिज्ञ मनुष्य संसार को अपनी इच्छा के अनुसार झुकाने की सामर्थ्य रखते हैं। --गेटे
  9. न अतीत पर दुखी होना चाहिए और न भविष्य के बारे में चिंतित होना चाहिए। विवेकी मनुष्य वर्तमान में ही जीते हैं। -चाणक्य
  10. जीवन प्रत्येक व्यक्ति को प्रिय है ,किन्तु शूरवीर को आत्म -सम्मान जीवन से भी अधिक प्रिय होता है। --शेक्सपियर
Read More
  • Share This:  
  •  Facebook
  •  Twitter
  •  Google+
  •  Stumble
  •  Digg

Monday, June 18, 2018

दान किसे दे ?दान के प्रकार

 Updesh Kumari     June 18, 2018     Gyaan Sangam     No comments   

[दान किसे दें ?दान के प्रकार]
सुपात्र को दान देना एक शुभ कर्म ,परन्तु कुपात्र को देना अशुभ।
सुपात्र कौन --गरीब ,रोगी ,अपाहिज ,अनाथ ,कोढ़ी ,विधवा व कोई भी जरूरतमन्द ,विद्याऔर कला कौशल की वृद्धि ,गोशाला ,अनाथालय ,हस्पताल आदि दान के सुपात्र हैं।

कुपात्र कौन --अगर कोई व्यक्ति दान लेकर उस धन को शराब ,मांस ,तम्बाकू ,जूआ ,सटटा ,व्यभिचार आदि दुष्कर्मो में लगाता है उससे उसके मन ,बुद्धि ,आत्मा और शरीर को हानि होती है। अतः उसे सुख की बजाय दुःख भोगना पड़ता है। इसमें भागी दान देने वाला भी होता है। जैसे पत्थर की नाव में बैठने वाला तथा नाव दोनों ही डूबते हैं।

महाभारत में कहा गया है कि धनवानों को धन मत दो ,दरिद्रों की पालना करो। भरे पेट को रोटी देना उतना ही गलत है जितना स्वस्थ को औषधि। रोटी भूखे के लिए है और औषधि रोगी के लिए। समुन्द्र में वर्षा हुई व्यर्थ है।

सृष्टि में ईश्वर  ऐसा नियम है कि जो कोई किसी को जितना सुख पहुँचाता है ईश्वर के न्याय से उतना ही सुख उसे भी मिलता है। इसलिए दान का उद्देश्य प्राणियों को अधिक से अधिक  सुख पहुँचाना होता है। कठोपनिषद में लिखा है ऐसा दान जिसके लेने से लेने वाले को सुख न मिले तो देने वाले को भी आनंद नहीं मिलता। 

 गीता में तीन प्रकार का दान बताया गया है -

1 सात्विक दान --उचित समय पर तथा उचित स्थान पर किसी ऐसे सुपात्र को सत्कारपूर्वक दिया हुआ दान जिससे किसी प्रतिफल की आशा न हो सात्त्विक ज्ञान कहलाता है।

2 राजसी दान --प्रतिफल की आशा से या भविष्य में किसी लाभ की आशा से दिया हुआ दान और जिसे देने में दुःख होता हो ऐसा दान राजसी दान होता है।  3तामस दान --गलत स्थान पर और गलत समय पर कुपात्र को बिना उचित सत्कार के अथवा तिरस्कार पूर्वक दिया हुआ दान तामस दान है।

तैत्तिरीय उपनिषद में कहा गया है कि यदि दान देने में श्रद्धा है तो दान देना ,यदि श्रद्धा नहीं भी है तो भी दान देते रहना। संसार में यश पाने के ख्याल से दान देना  .दूसरे लोग दान दे रहे हैं ,उन्हें देखकर लज्जावश भी दान देना। इस भय से भी दान देना कि यदि नहीं दूँगा तो परलोक न सुधरेगा ,कमाया हुआ धन भी सार्थक न होगा। इस विचार से भी दान देते रहना कि गुरु के सामने प्रतिज्ञा की थी कि दान दूँगा।

मनुस्मृति में बताया गया है कि संसार में जितने दान हैं अथार्त जल ,अन्न ,गौ ,पृथ्वी वस्त्र ,तिल ,सुवर्ण ,घृत आदि इन सब दानों से वेद विद्या का दान श्रेष्ठ है। इसलिए जितना बन सके उतना प्रयत्न तन ,मन ,धन से विद्या की वृद्धि में किया करें। 
Read More
  • Share This:  
  •  Facebook
  •  Twitter
  •  Google+
  •  Stumble
  •  Digg

Sunday, June 17, 2018

बात पते की 17/6/2018 - Hindi Quotes

 Updesh Kumari     June 17, 2018     Hindi Quotes     No comments   

1 जिस त्याग से अभिमान उत्पन्न होता है ,वह त्याग नहीं है। अभिमान का त्याग ही सच्चा त्याग है। -आचार्य विनोबा भावे
2 पुस्तकें वे विश्वस्त दर्पण हैं , जो संतों और शूरों के मस्तिष्क का परावर्तन हमारे मस्तिष्क पर करती हैं। --गिबन
3 संसार में ज्ञानी ,तपस्वी ,शूरवीर ,कवि ,विद्वान् और गुणवान सभी लोभ के कारण उपहास के पात्र हुए हैं। --तुलसीदास 
Read More
  • Share This:  
  •  Facebook
  •  Twitter
  •  Google+
  •  Stumble
  •  Digg

ईश्वर की स्तुति व पूजा कब और कैसे ?

 Updesh Kumari     June 17, 2018     Gyaan Sangam     No comments   

ईश्वर की स्तुति व पूजा कब और कैसे की जाए ?इसके लिए आवश्यक है कि संध्या ,प्रार्थना ,उपासना करें। इनको जानने से पहले अन्तःकरण की वृतियों को जानना जरूरी है। अन्तःकरण की चार वृतियां हैं -मन ,बुद्धि ,चित्त ,अहंकार। अन्तःकरण की सुख- दुःख आदि के कारण को विचारने वाली वृति का नाम मन ,इन्द्रियों के द्वारा बाहरी वस्तुओं का ज्ञान प्राप्त करने की वृति का नाम बुद्धि,व्यापार आदि के संबंध में विचारने का नाम चित्त ,अपनी सत्ता तथा अपने से संबंधित वस्तुओं को अपना जानता हुआ प्रकाश करता है इस वृति का नाम अहंकार है। 

संध्या -मनुस्मृति में बताया है कि दो संध्या काल होते हैं -प्रातः और सायं ,जब दिन और रात मिलते हैं। मनुष्य प्रातःकाल संध्या में बैठ कर रात के समय में आए मानसिक दोषों को दूर करे और सायंकाल संध्या में बैठ कर दिन में आए मानसिक दोषों को दूर करे। अथार्त दोनों समय संध्या में बैठ कर उससे पहले समय में आए मानसिक विकारों पर चिंतन ,मनन और पश्चाताप करके उन्हें आगे न आने देने का निश्चय करे। 

प्रार्थना -कोई वस्तु परमात्मा से मांगने से पहले उस वस्तु को प्राप्त करने के लिए उसके अनुसार प्रयत्न करना आवश्यक है। विद्यार्थी परमात्मा से प्रार्थना करे कि वह उसे परीक्षा में पास कर दे तो विद्यार्थी का कर्तव्य है कि वह परीक्षा की तैयारी पूरी मेहनत से करे। हम ईश्वर से प्रार्थना करें कि वह हमें तीक्ष्ण बुद्धि दे तो उसके लिए हमें भी ऐसे यत्न करने चाहियें जिससे बुद्धि तीक्ष्ण हो -शुद्ध खान ,पान ,ब्रह्मचर्य का पालन ,अच्छी- अच्छी पुस्तकों का पढ़ना आदि। यदि हम स्वयं प्रयत्न न करें और ईश्वर से मांगते रहें तो हमें कुछ न मिलेगा। जो परमेश्वर के सहारे आलसी बन कर बैठे रहते हैं ,उन्हें कुछ प्राप्त नहीं होता क्योंकि ईश्वर की पुरुषार्थ करने की आज्ञा है। ईश्वर उसी की सहायता करता है जो अपनी सहायता आप करता है। 

उपासना -जब ईश्वर की उपासना करना चाहे तब एकांत शुद्ध स्थान पर जाकर आसन लगाकर आंखें बंद करके बैठ जाएं। सभी इंद्रियों को बाहरी संसार से रोककर पहले प्राणायाम करें ,फिर अपने मन को हृदय ,नाभि या कंठ -किसी एक स्थान पर स्थिर करके अपने आत्मा और परमात्मा का चिंतन कर परमात्मा में मग्न हो जाएं। ऐसा करते रहने से आत्मा और अन्तःकरण सभी पवित्र हो जाते हैं तथा मनुष्य की केवल सत्याचरण में ही रूचि हो जाती है। आत्मा का बल इतना बढ़ जाता है कि पहाड़ के समान मुसीबत आने पर भी मनुष्य घबराता नहीं और सहन कर लेता है। 

ईश्वर की प्रेरणा -मनुष्य जब कोई अच्छा काम करने लगता है तो उसे आनंद ,उत्साह तथा निर्भयता महसूस होती है ,वह ईश्वर की तरफ से ही होती है। मनुष्य जब कोई गलत काम करने लगता है तो उसे भय ,शंका ,लज्जा जो होती है वह भी ईश्वर की तरफ से होती है।                 
Read More
  • Share This:  
  •  Facebook
  •  Twitter
  •  Google+
  •  Stumble
  •  Digg

ईश्वर के गुण ,कर्म ,स्वभाव

 Updesh Kumari     June 17, 2018     Gyaan Sangam     No comments   

ईश्वर के गुण ,कर्म ,स्वभाव क्या हैं ?हम ईश्वर की स्तुति तो करते हैं पर पूर्ण रूप से उनके गुणों को नहीं जान पाते। आइये जाने क्या हैं हमारे सर्वशक्तिमान प्रभु के गुण ,कर्म व् स्वभाव ?

1 ईश्वर निराकार है -ईश्वर का कोई रूप (आकृति ,वर्ण ,स्वरूप )नहीं जिसे आंखो से देखा जा सके। उसकी कोई मूर्ति भी नहीं बन सकती। इसी कारण वह आँखों से नहीं देखा जा सकता। नाक ,कान ,जिह्वया ,त्वचा -इन्द्रियां भी उसका अनुभव नहीं कर सकती। वह हृदय में स्थित है। जो उसे हृदय से या मन से जान लेते हैं वे आनंद को प्राप्त होते हैं। 

2 ईश्वर स्थूल और सूक्ष्म दोनों है -ईश्वर सूक्ष्म से सूक्ष्म तथा सर्वत्र  व्यापक है। वह सूक्ष्म इतना है कि सूक्ष्म से सूक्ष्म वस्तु में भी समाया हुआ है। कोई अणु भी उसकी उपस्थिति के बिना नहीं है। सभी जगह व्यापक होने के कारण उसे स्थूल से स्थूल भी कहा जा सकता है।
3ईश्वर अंर्तयामी है -आत्मा शरीर में बहुत सूक्ष्म पदार्थ है परन्तु ईश्वर उस आत्मा में भी विध्यमान है। इसी कारण से ईश्वर को अन्तर्यामी कहा गया है। 

3 ईश्वर अजन्मा ,अनन्त और अनादि है -ईश्वर कभी उत्पन्न नहीं होता। जो वस्तु उत्पन्न होती है वह मरती भी अवश्य है। क्योंकि ईश्वर कभी उत्पन्न नहीं होता। वह परमात्मा अनादि स्वरूप वाला है ,उसको कोई बनाने वाला नहीं है ,उसके माता पिता नहीं हैं। उसका गर्भवास ,जन्म ,मृत्यु आदि नहीं होते। वह  सदा रहने वाला है। 

4 ईश्वर ज्ञानवान तथा न्यायकारी है -संसार में फैले सम्पूर्ण सद्ज्ञान का स्रोत ईश्वर ही है। वह पूर्ण ज्ञानी है। वेदों के रूप में उसने ही सारा ज्ञान प्राणिमात्र के कल्याण के लिए दिया है। वह सभी जीवों के कर्मों को देखता तथा जानता है। उन्हें उनके कर्मों के अनुसार यथायोग्य सुख व् दुःख के रूप में फल देता है। सभी जीव कर्म करने में स्वतंत्र हैं परन्तु उन कर्मों के अनुसार फल भोगने में ईश्वर की व्यवस्था से परतंत्र हैं। यानि किए हुए कर्म का फल भोगने में जीव की मर्जी नहीं चलती ,उसे फल भोगना ही पड़ता है। 

5 उत्पति और प्रलय करने वाला भी ईश्वर ही है -सृष्टि की रचना करना ,सभी जीवों को उनके कर्मों के अनुसार उत्पन्न करना तथा सृष्टि की प्रलय करना भी उसी के हाथ में है। 

6 ईश्वर आनंद स्वरूप है -ईश्वर के समीप जाने से आनंद प्राप्त होता है। जैसे सर्दी में ठिठुरते हुए को आग के पास जाने से सुख मिलता है। ईश्वर की जीव से समय या स्थान की दूरी नहीं अपितु ज्ञान की दूरी है। पवित्र मन से उस ईश्वर का ध्यान करने से उसकी समीपता अनुभव होती है।
 
7 ईश्वर दयालु है -ईश्वर ने दया करके ही अनंत पदार्थ हमारे सुख के लिए दे रखे हैं। जैसे वायु ,अन्न ,जल ,सब्जियाँ ,फल ओषधियाँ आदि। लेकिन हम इनका भी ठीक प्रकार से प्रयोग नहीं कर पा रहे। 

8 ईश्वर निर्विकार है -ईश्वर में राग ,द्वेष ,मोह ,लोभ ,काम ,क्रोध ,अहंकार आदि विकार नहीं आते। वे किसी से ज्यादा प्रेम व किसी से ज्यादा शत्रुता नहीं रखते। वे निरपेक्ष रहते हैं। 

9 ईश्वर अनुपम हैं -ईश्वर के समान कोई दूसरा नहीं अविधा आदि दोष न होने से वह सदा पवित्र है। वह कभी भी पाप कर्म नहीं करता। वह सर्वज्ञ है। वह सभी जीवों की मनोवृतियों को जानता है। वह दुष्ट पापियों  का तिरस्कार करने वाला है।

10 ईश्वर सर्वशक्तिमान है -ईश्वर को अपनी दया ,न्याय ,सृष्टि की रचना ,प्रलय आदि काम करने के लिए किसी की सहायता की आवश्यकता नहीं है। बिना हाथ ,पैर सहज में ही अपने सभी काम वह स्वंय ही कर लेता है। वह  किसी का सहारा नहीं लेता। 

उपनिषद में बताया गया है कि जीवात्मा में परमात्मा उसी प्रकार रहता है जैसे तिलों में तेल ,दही में घी और झरनो में पानी। जिस प्रकार तिलों को पीड़ने से ,दही को बिलोने से ,झरनों को खोदने से ये प्रकट होते हैं उसी प्रकार सत्य और तप से ही प्रभु   को जाना जा सकता है। जैसे मकड़ी अपने शरीर के अंदर से जाले बनाती है और फिर उन्हें अपने ही अंदर समेट लेती है ,जैसे पृथ्वी से ओषधियाँ उत्पन्न होती हैं जैसे जीवित पुरुष के शरीर में बाल निकलते हैं ,उसी प्रकार ईश्वर के प्रकृति रूपी शरीर से यह संसार बन जाता है। 
Read More
  • Share This:  
  •  Facebook
  •  Twitter
  •  Google+
  •  Stumble
  •  Digg

ईश्वर भक्ति कैसे हो ?

 Updesh Kumari     June 17, 2018     Gyaan Sangam     No comments   

ईश्वर भक्ति क्या है ?ईश्वर भक्ति ,स्तुति ,पूजा ,नाम स्मरण ,गुणगान ,कीर्तन आदि जो हम करते है वह ईश्वर के लिए नहीं है। हमारे कुछ भी करने से ईश्वर को लाभ ,हानि ,सुख ,दुःख नहीं होता और न ही वह प्रसन्न ,अप्रसन्न होता है। हमारे किसी काम का भी ईश्वर के ऊपर कोई प्रभाव नहीं होता। ईश्वर को सुनाने के लिए न ऊँची बांग देने की जरूरत है ,न घंटी बजाने की और न लाउडस्पीकर लगाने की। ईश्वर सुगंध ,दुर्गंध से परे है ,इसलिए उसके लिए धूपबत्ती लगाने की कोई जरूरत नहीं। ईश्वर को कोई शक्ल सूरत नहीं ,इसलिए उसे कपड़े पहनाने ,तिलक लगाने या साज श्रृंगार करने का कोई तुक नहीं।

हम जो कुछ भी करते है सब अपने लिए करते हैं। ईश्वर हमारे कामों के अनुसार हमें अच्छा या बुरा फल देता है। कुछ कामों का फल उसी समय मिल जाता है और कुछ कामों का फल बाद में उचित अवसर आने पर मिलता है। जो फल हमें बाद में मिलता है उसे हम किस्मत कह देते हैं। 

ईश्वर भक्ति का अर्थ है -ईश्वर के गुणों को याद करना तथा उन गुणों को अपने जीवन में अपनाना। ईश्वर न्यायकारी है ,वह सदा पक्षपात रहित होकर न्याय ही करता है।वह किसी की सिफारिश नहीं मानता। वह अन्याय कभी नहीं करता। ईश्वर सत्यकर्ता है। वह सदा ठीक काम ही करता है ,गलत काम कभी नहीं करता। ईश्वर ज्ञानवान है। सारा सच्चा ज्ञान ईश्वर के पास है। वह किसी बात में भी अज्ञानी नहीं है। ईश्वर पवित्र है ,अविद्या आदि दोष उसमें नहीं हैं। ईश्वर दयालु है उसने दया करके हमारे उपभोग के लिए हजारों पदार्थ दे रखें हैं। अतः हमें भी न्यायकारी ,सत्यकर्ता ,ज्ञानवान ,पवित्र ,दयालु बनना चाहिए। हम ईश्वर की भक्ति तो करते हैं परन्तु उसके गुणों को नहीं अपनाते तो हमारा भक्ति करना बेकार है तथा हमारी वह स्थिति उस गधे के समान है जो अपनी पीठ पर लाद क़र धान को ढोता तो है पर वह उसे खा नहीं सकता।
Read More
  • Share This:  
  •  Facebook
  •  Twitter
  •  Google+
  •  Stumble
  •  Digg

शरीर को स्वस्थ कैसे रखा जाए ?

 Updesh Kumari     June 17, 2018     Gyaan Sangam     No comments   

पहला सुख निरोगी काया -अगर मानव शरीर ठीक न हो तो कोई कार्य सम्पन्न नहीं हो सकता। यदि शरीर गरमी ,सर्दी ,धूप और वर्षा को सहन नहीं कर सकता तो वह शरीर स्वस्थ नहीं माना जाता। महर्षि चरक ने शरीर को स्वस्थ रखने की उत्तम विधि बतलाई है। उनका मत है कि जो मनुष्य हितभुक ,मितभुक ,ऋतभुक हो वह रोगी नहीं हो सकता।

हितभुक का अर्थ है -ऐसी वस्तुएँ खाओ जो आपके लिए अच्छी है। केवल खाने के लिए मत जीओ जीने के लिए खाओ। जिह्वा के स्वाद में फँस कर कूड़ा करकट न भरते जाओ। यह सोच कर खाओ कि जो खाते हो उससे लाभ क्या होगा ?जो व्यक्ति साधना करना चाहते उनके लिए अपनी इन्द्रियों पर अधिकार करना आवश्यक है। याद रखो जिन व्यक्तियों का अपनी जिह्वा पर सयंम नहीं वे किसी भी इन्द्रिय पर सयंम नहीं कर सकते। स्वाद वाली वस्तुयें खाइये परन्तु यह सोच कर खाइये कि क्या वे आपका हित करेंगी।

ऐसी वस्तुएं खाओ जिनसे शरीर को लाभ हो मलाई खाओ ,दूध पीओ ,दही खाओ,मक्खन खाओ। वे वस्तुएं प्रयोग करो जिनमें केवल जिह्वा को स्वाद न आये ,शरीर को भी स्वाद आये।
मलाई खाओ तो कितनी यदि आप दो किलो मलाई ही खा जाये या डेढ़ किलो मक्खन ही चट कर जाये तो इससे शरीर को लाभ के स्थान पर हानि होगी। अतः महर्षि चरक ने दूसरी बात कही है -मितभुक। अच्छी वस्तुएं खाओ ,परन्तु थोड़ी खाओ। मर्यादा में रह कर खाओ। मर्यादा से अधिक पीया हुआ अमृत भी विष हो जाता है

अच्छी वस्तुएं खाओ ,उचित मात्रा में खाओ। पेट में चार रोटियों की जगह हो तो दो रोटियां खाओ। दो रोटियों की जगह पानी और हवा के लिए रहने दो। उतना खाओ जितना पच जाये इससे अधिक खाओगे तो हानि होगी। हर समय खाओ ,खाओ ,खाओ। क्या इसीलिए बना है मनुष्य ?पेट की यह देगची है इसमें एक सीमा से अधिक नहीं आता। 

किन्तु केवल हितभुक और मितभुक से कार्य नहीं बनता। मनुष्य यदि अपने चरम लक्ष्य को प्राप्त करना चाहता है तो उसके लिए आवश्यक है कि वह ऋतभुक भी बने। अच्छी वस्तुएं खायें ,थोड़ी खाएं परन्तु वे वस्तुयें खायें जो उत्तम कमाई से पैदा की गई हो।कोई वस्तु ठीक कमाई से मिली या नहीं इसका बहुत मनुष्यों को पता नहीं लगता। जो लोग सदा पाप का अन्न खाते रहे हो ,उन्हें पाप और  पुण्य में अंतर् दिखाई नहीं देता। सफेद चादर पर लगा हुआ धब्बा दिखाई देता है परन्तु काले कंबल पर लगा दाग किसे दिखाई देता है ?वह तो साधना से ,ज्ञान से,प्रयत्न से ज्ञात होता है। पाप का अन्न खाने का परिणाम है कि इससे आत्मा गिरती है यानि आगे बढ़ता हुआ मनुष्य इससे पीछे हटता है। मनुष्य यदि हर प्रकार के रोगों  से बचना चाहता है तो उसे ऋतभुक भी होना चाहिए। अतः हितभुक ,मितभुक और ऋतभुक बन कर ही मनुष्य शारीरिक साधना कर सकता है और अपने चरम लक्ष्य मोक्ष को प्राप्त कर सकता है।
Read More
  • Share This:  
  •  Facebook
  •  Twitter
  •  Google+
  •  Stumble
  •  Digg

परमात्मा से संबंध कैसे बनाएं ?

 Updesh Kumari     June 17, 2018     Gyaan Sangam     No comments   

जीवन में आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त करनी हो तो अच्छी सोच विकसित करनी होगी ,इसके लिए आवश्यक है कि परमात्मा से प्रेममय अनुभूति बनाये रखें। हम मंदिर या किसी धार्मिक स्थल पर जाते है लेकिन हम जानते ही नहीं है कि हम यह सब क्यों कर रहे है ,तो कहीं हमारे इस तरह के कार्य डर की उपज तो नहीं है ? ऐसा भय जो हमें लगता है कि हम इन सब परम्पराओं का पालन नहीं करेँगे तो भगवान नाराज हो सकते है। वे हमें दंडित करेंगे। हम आशा करते है कि परम्पराओं का पालन कर हम अपने पाप धो लेंगे। इतना ही नहीं इनका पालन करने से भगवान हमें वह सब प्रदान करेंगे जो हमे अच्छा जीवन जीने के लिए इस धरती पर जरूरी लगता है। उसमें समृद्धि ,पैसा,सुख और सफलता शामिल है। 

किन्तु भगवान से इस तरह का संबंध बहुत ज्यादा अंधविश्वासी और सतही लगता है। आपमें तब और गहराई आ जाती है जब आप कुछ पाने के लिए इन रीतियों का पालन करते है।जैसे हम परीक्षा के दिनों में भगवान के मंदिर जाते है ,ताकि अच्छे अंकों से पास हो सके या फिर लम्बे समय से टल रही पदोन्नति के लिए हम उनकी इबादत करने पहुंच जाते है। जैसे मैं समय निकाल कर आपके मंदिर में आया हूं ,इसके एवज में आप मुझे वह दो ,जो मुझे चाहिए। यहां हम भय की बजाय उम्मीद लेकर गए है। 

भगवान के पास जाने का एक और मकसद है -कर्तव्य या ड्यूटी। हम इबादत आभार व्यक्त करने के लिए भी करते हैं। हमें वायु ,जल ,आहार भगवान ने दिया है ,उसका धन्यवाद हमें उसे देना होता है। लेकिन जब हम कहीं से धोखा खा जाते है तो हम भगवान को ही कोसने लग जाते है।
वैदिक शास्त्र कहते हैं कि भय,आशा और कर्तव्यपालन पर्याप्त नहीं भगवान हमसे संबंध बनाना चाहते हैं। यदि हम भगवान के साथ कुछ करने जा रहे हैं तो उसमें प्रेम शामिल कर दे तो वह उन्हें प्रसन्न करता है। हमे परम्पराओं ,धर्म ,आध्यात्म के मायने मालूम हो। जब तक प्रेम नहीं होगा तब तक इन शब्दों के कोई मायने नहीं रह जायेंगे। इसलिए परमात्मा के पास भय से नहीं प्रेम के साथ जाना उचित है तभी वे हमारा ठीक मार्ग प्रशस्त करेंगे।
Read More
  • Share This:  
  •  Facebook
  •  Twitter
  •  Google+
  •  Stumble
  •  Digg

तनाव भगाओ ,खुश हो जाओ

 Updesh Kumari     June 17, 2018     Gyaan Sangam     1 comment   

तनाव भगाओ ,खुश हो जाओ -इंसानी जीवन मिला है तो तनाव होना भी स्वाभाविक ही है और अगर चिलचिलाती गरमियां हो ,तो कभी -कभी बेवजह ही तनाव घेर लेता है। दुनिया भर की मुश्किलों के अलावा गरमी का मौसम कई तरह की दिक्क़तें पैदा कर देता है। इन दिक़्क़तों का ही मिला जुला परिणाम होता है रोजमर्रा का तनाव और इससे छुटकारा पाना हो तो उसके लिए चाहिए कुछ करने की इच्छा शक्ति क्योंकि अगर आप ही किसी चीज को पकड़े रहेंगे तो उससे निजात कैसे मिलेगी।
अगर तनाव को दूर रखना है तो सबसे जरूरी है अपनी दिनचर्या नियमित रखना। सुबह -सुबह उठ कर कम से कम आधा घंटे की सैर आपको तरोताजा रखने में मदद करेगी। हरी घास पर सुबह नंगे पैर टहलना और भी फायदेमंद होता है। इसके अलावा रात को भी खाना खाने के थोड़ी देर बाद टहलना चाहिए।
गर्मियों में बहुत -सी समस्याएं जैसे पसीने की दुर्गंध व् थकावट आदि आमतौर पर सभी को होने लगती है ,लेकिन एक कहावत -सौ सुनार की और एक लुहार की -यहां बिल्कुल उपयुक्त सिद्ध होती हैयह लुहार है पानी ,क्योंकि गरमी के मौसम में पानी ही है जो रोजमर्रा की आम समस्याओं से छुटकारा दिला सकता है। औसत रूप से एक सामान्य व्यक्ति को दिन में आठ गिलास पानी पीना चाहिए और गर्मियों में यही मात्रा दस से पन्द्रह गिलास तक या इससे भी ज्यादा की जा सकती है। जितना पानी आप पिएंगे ,स्वास्थ्य के लिए उतना ही अच्छा रहेगा जैसा कि कहा गया है -एक तंदरुस्ती हजार नियामत। इन्ही हजार नियामतों में से एक है -तनाव से मुक्त
तनाव दूर करने के लिए किसी तेल से सिर में मालिश की जा सकती है। पुराने समय से ही मालिश को तनाव दूर करने का कारगर तरीका माना जाता रहा है। तो बस ये तरीके अपनाइए और तनाव भगाइए। ````और हो जाइये एकदम ठंडा -ठंडा ,कूल -कूल। मस्त रहिये खुश रहिये।
Read More
  • Share This:  
  •  Facebook
  •  Twitter
  •  Google+
  •  Stumble
  •  Digg

मानव -शरीर एक घोडा गाड़ी

 Updesh Kumari     June 17, 2018     Gyaan Sangam     1 comment   


मनुष्य शरीर क्या है ?कठोपनिषद में मनुष्य शरीर की तुलना एक घोडा गाड़ी से की गई है मनुष्य के शरीर में दस इंद्रियां -पांच ज्ञानेन्द्रियां -आंख ,कान ,नाक ,जिह्वा ,त्वचा -पांच कर्मेन्द्रियां -हाथ ,पांव ,मुख ,मल और मूत्र त्याग इंद्रियां -रथ को खींचने वाले दस घोड़े है। मन लगाम ,बुद्धि सारथी [रथवान]तथा आत्मा रथ का सवार है। आत्मा रूपी सवार तभी अपने लक्ष्य तक पहुँचेगा जब बुद्धि रूपी सारथी मन रूपी लगाम को अपने वश में रख के इंद्रियां रूपी घोड़ों को सन्मार्ग पर चलाएगा।
घोड़े अगर सारथी के वश में नहीं है तो वे इधर उधर के आकर्षणों में उलझ कर मार्ग को छोड़ बैठेंगे यही अवस्था इन्द्रियों की है। विषयों में घूमने वाली इंद्रियों को विद्वान् उसी प्रकार वश में करे जैसे सारथी घोड़ों को वश में करता है। नहीं तो इस अवस्था का दुःख रूपी दुष्परिणाम आत्मा को भोगना पड़ता है। 

मानव शरीर की इस गाड़ी को किराये की गाड़ी बताया गया है जिसे वायु ,जल ,और भोजन के रूप में निरंतर किराया देना पड़ता है। मनुष्य शरीर का उद्देश्य है -सुख प्राप्ति और सुख मिलता है परोपकार आदि शुभ कर्म करने से। परोपकार करना ही सन्मार्ग पर चलना है। असत्य ,अन्याय आदि दुष्ट कर्मों में पड़ जाना ही संसार में उलझना है

गीता में भी कहा गया है -इंद्रियों की अपेक्षा मन श्रेष्ठ है ,मन की अपेक्षा बुद्धि अधिक श्रेष्ठ है ,बुद्धि की अपेक्षा आत्मा और अधिक श्रेष्ठ है। अगर आत्मा के अधीन बुद्धि ,बुद्धि के अधीन मन और मन के अधीन इंद्रियां हो तभी यह रथ अभ्युदय और श्रेष्ठ रूप धर्म मार्ग पर चल कर सवार को निर्दिष्ट स्थान पर पहुंचा देने का कारण बन सकता है। इस शरीर रूपी रथ के लिए आवश्यक है कि इस पर आरूढ़ आत्मा रूपी सवार सावधान हो यदि वह ज्ञानी है तो स्वयं न तो मन के पीछे चलेगा और न इंद्रियों को दुष्ट घोड़ों की तरह बेकाबू होने देगा।

Read More
  • Share This:  
  •  Facebook
  •  Twitter
  •  Google+
  •  Stumble
  •  Digg
Newer Posts Older Posts Home

About Me

My photo
Updesh Kumari
सुंदर विचारों को लिखकर प्रकट करना मेरी आदत में शुमार है। मैने सन 1995 में हिंदी साहित्य में (शिवप्रसाद का कथा साहित्य ) शोध प्रबंध लिखा था। मुझे अध्यापन कार्य करते हुए पच्चीस वर्ष से ज्यादा हो चुके हैं। विचारों को एकत्रित कर सहेजना मेरी खूबी रही है। मुझे अपने विचार व्यक्त करना भी बहुत अच्छा लगता है। मुझे ये बतलाते हुए गर्व है कि मेरे द्वारा पढ़ाये गये छात्र शत -प्रतिशत परिणाम लाये हैं और उच्च पदों पर कार्यरत हैं। ये कहने की कोई आवश्यकता नहीं है कि विभिन्न कार्यक्रमों को संचालित करने का सदैव अवसर मिलता रहा है। मैं अपने पारिवारिक व कार्यस्थल से पूर्ण संतुष्ट हूँ। लिखना मेरा शौक है मजबूरी नहीं। मै आशा करती हू कि आप मेरे द्वारा लिखे गये को पसंद करेंगें।
View my complete profile

Popular Posts

  • बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से होय।
    माता -पिता हमारे लिए पूजनीय होते हैं लेकिन उनकी वृद्धावस्था में जब हम उनका साथ नहीं दे पाते तो बाद में हमे बड़ा पछतावा होता है। सोहन को वृद्...
  • मानव -शरीर एक घोडा गाड़ी
    मनुष्य शरीर क्या है ?कठोपनिषद में मनुष्य शरीर की तुलना एक घोडा गाड़ी से की गई है मनुष्य के शरीर में दस इंद्रियां -पांच ज्ञानेन्द्रियां -...
  • निराशाजनक स्थिति में हालात नहीं अपना नजरिया बदलें।
    निराशा से बचने का एक तरीका यह है कि किसी से कोई उम्मीद मत रखिए। इसके लिए कुछ सुझाव है -  अच्छी बातों को याद रखिए और बुरी बातों को भूल जा...
  • संसार तो नाम ही खट -खट का है, इससे कहां तक बचोगे ?
    लोग सोचते हैं कि घर के धंधों में प्रभु -भक्ति का समय ही नहीं निकलता। सब कुछ छोड़कर कहीं एकांत में भजन करेंगे। यही सोच लोग घर बार छोड़कर चल दे...
  • अहंकार पर विजय कैसे हो
    ईश्वर में विश्वास बनाये रखना अति आवश्यक है तभी हमारे अहंकार पर नियंत्रण होगा और हम अच्छे कार्य करते हुए शांतचित्त बने रह सकते है। जब मनुष्य...

Blog Archive

  • ▼  2018 (171)
    • ►  September (32)
    • ►  August (36)
    • ►  July (58)
    • ▼  June (45)
      • सपने पूरे न होने पर कहीं कुंठा या आक्रोश तो नहीं प...
      • बात पते की 30/6/2018 - Hindi Quotes
      • बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से होय।
      • बात पते की 29/6/2018 - Hindi Quotes
      • जब अपराध बोध जीना मुश्किल करदे तो क्या करें ?
      • बात पते की 28/6/2018 - Hindi Quotes
      • इंट्यूशन जगाना है तो फूलों जैसा बनने का प्रयास करें।
      • बात पते की 27/6/2018 - Hindi Quotes
      • बात पते की 26/6/2018 - Hindi Quotes
      • अपनी खामियां स्वीकारें तब ही ईश्वर हमारी जिम्मेदार...
      • भला इंसान दूसरों में अच्छाई ढूंढ ही लेता है।
      • बात पते की 24/6/2018 - Hindi Quotes
      • बात पते की 25/6/2018 - Hindi Quotes
      • बात पते की 24/6/2018 - Hindi Quotes
      • हम किसी के शब्दों से आहत क्यों होते हैं ?
      • मृत्यु से डर क्यों लगता है ?
      • जब नकारात्मक व्यक्ति से प्रतिदिन सामना हो -
      • निद्रा और मृत्यु दोनों सगी बहनें - कैसे ?
      • मनुष्य -योनि सर्वश्रेष्ठ योनि कैसे ?
      • बात पते की 23/6/2018 - Hindi Quotes
      • बात पते की 22/6/2018 - Hindi Quotes
      • इंसान भी अजीब किस्म का व्यापारी है
      • निन्दा से जीवन शक्ति का ह्रास
      • असम्भव बातों पर विश्वास न करें -
      • ईश्वर प्राप्ति के लिए गुरु व आचार्य आवश्यक है या नहीं
      • मेरी मौत ने जाना सच
      • गुस्से को काबू करना --एक कौशल
      • जीवन ही नहीं मृत्यु भी पर्व की तरह लगे
      • बात पते की 21/6/2018 - Hindi Quotes
      • बात पते की 20/6/2018 - Hindi Quotes
      • बात पते की 19/6/2018 - Hindi Quotes
      • दान किसे दे ?दान के प्रकार
      • बात पते की 17/6/2018 - Hindi Quotes
      • ईश्वर की स्तुति व पूजा कब और कैसे ?
      • ईश्वर के गुण ,कर्म ,स्वभाव
      • ईश्वर भक्ति कैसे हो ?
      • शरीर को स्वस्थ कैसे रखा जाए ?
      • परमात्मा से संबंध कैसे बनाएं ?
      • तनाव भगाओ ,खुश हो जाओ
      • मानव -शरीर एक घोडा गाड़ी
      • मनुष्य जीवन में पवित्रता - धन कैसे कमाएं
      • मानव मन की स्थिति - जैसा खावे अन्न वैसा होवे मन
      • मनुष्य का पुनर्जन्म होता है या नहीं ?
      • अहंकार पर विजय कैसे हो
      • Baat Pate ki 16/6/2018 - Hindi Quotes

CATEGORIES

Gyaan Sangam (64) Hindi Quotes (102) हेल्थ (6)

Total Pageviews

Sample Text

Copyright © Gyaan Sangam | Powered by Blogger
Design by Sachin | Managed by Updesh Kumari