आस्तिक लोगों में ये बातें कहीं और सुनी जाती हैं कि प्रभु को प्रसन्न करने के लिए उसकी भक्ति की जाए। लेकिन याद रखो !परमात्मा को हमारी भक्ति ,भजन ,स्तुति व प्रार्थना की आवश्यकता नहीं है। वह प्रभु पूर्ण है। उसे कुछ भी नहीं चाहिए। जिसमे कमी होगी ,उसे ही किसी वस्तु की आवश्यकता होगी। भगवान तो सर्वव्यापक है उसके पास सब कुछ है। मनुष्य को अपनी आत्मशुद्धि व आत्मशांति के लिए परमात्मा की उपासना की आवश्यकता है। हम अल्पज्ञ व अपूर्ण हैं। हमारी शक्तियां सीमित हैं। वह प्रभु परमानंद है। जीव को आनंद चाहिए क्योंकि जीव दैविक ,दैहिक ,भौतिक -तीनों तापों से पीड़ित है।
प्रभु की शरण में जाने से व्यक्ति तीनों तापों से छूट सकते हैं। जो वस्तु जहां है ,वह वही से मिलेगी। आनंद प्रकृति में तो है नहीं। जीव भी सत है और चित है। आनंद उसमे भी नहीं है। परमात्मा सच्चिदानंद (सत +चित+आनंद )है। उसी आनंदधन की समीपता जीव को दुःख मुक्त कर सकती है। इसलिए कभी यह मत सोचें कि आप भक्ति करके परमात्मा पर कोई उपकार लाद रहे हैं।
प्रभु की शरण में जाने से व्यक्ति तीनों तापों से छूट सकते हैं। जो वस्तु जहां है ,वह वही से मिलेगी। आनंद प्रकृति में तो है नहीं। जीव भी सत है और चित है। आनंद उसमे भी नहीं है। परमात्मा सच्चिदानंद (सत +चित+आनंद )है। उसी आनंदधन की समीपता जीव को दुःख मुक्त कर सकती है। इसलिए कभी यह मत सोचें कि आप भक्ति करके परमात्मा पर कोई उपकार लाद रहे हैं।
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