जिस प्रकार कोमल जल अपने निरंतर प्रवाह से सख्त चट्टान को घिस डालता है ,उसी प्रकार धैर्यवान व्यक्ति समस्त विरोधियों के समक्ष विजयी होता है। धैर्य से लोगों के ह्रदय जीते जा सकते हैं। धैर्य ही वास्तविक विजेता और नियंता है। धैर्य का अर्थ है --विपत्ति के निवारण और शक्ति के सम्पादन के लिए घोर परिश्रम करना और प्रतीक्षा करते हुए सजग ,सचेत ,क्रियाशील और विवेकपूर्ण बने रहना। धैर्य मानव जीवन में कैसे हमें आगे बढ़ाता है ?इसे एक दृष्टांत के द्वारा जानना चाहेंगें।
एक था लड़का ,निहायत बुदू। अपनी अज्ञानता के कारण कदम -कदम पर अपमानित होता था। एक दिन वह अपने विद्यालय से भागकर कुँए पर पानी पीने गया। वहाँ गाँव की औरतें पानी भरने आती थी । उस बालक ने देखा कि कुँए की जगत पर ,रस्सी की रगड़ से निशान पड़ गये हैं। यही नहीं ,जहाँ पर घड़े रखे जाते हैं ,वहाँ भी गड्ढे पड़ गये हैं। बालक के मन में एक आशा की किरण जागी। उसने सोचा कि जब मुलायम रस्सी की बार -बार और मिटटी के घड़े से भी पत्थर जैसी कठोर वस्तु पर निशान और गड्ढे पड़ सकते हैं तो सच्ची लगन ,निरंतर परिश्रम से कोई भी व्यक्ति विद्वान् बन सकता है। यही बालक बड़ा होकर संस्कृत का विद्वान् बोपदेव के नाम से प्रसिद्ध हुआ और इसने मुग्धबोध नाम का संस्कृत का सरल व्याकरण तैयार किया। यदि यह निराश होकर घबरा जाता तो जीवन में कुछ न कर पाता। परन्तु, उसने धैर्य से ,सच्ची लगन से विश्व को एक अदभुत देन दी।
एक था लड़का ,निहायत बुदू। अपनी अज्ञानता के कारण कदम -कदम पर अपमानित होता था। एक दिन वह अपने विद्यालय से भागकर कुँए पर पानी पीने गया। वहाँ गाँव की औरतें पानी भरने आती थी । उस बालक ने देखा कि कुँए की जगत पर ,रस्सी की रगड़ से निशान पड़ गये हैं। यही नहीं ,जहाँ पर घड़े रखे जाते हैं ,वहाँ भी गड्ढे पड़ गये हैं। बालक के मन में एक आशा की किरण जागी। उसने सोचा कि जब मुलायम रस्सी की बार -बार और मिटटी के घड़े से भी पत्थर जैसी कठोर वस्तु पर निशान और गड्ढे पड़ सकते हैं तो सच्ची लगन ,निरंतर परिश्रम से कोई भी व्यक्ति विद्वान् बन सकता है। यही बालक बड़ा होकर संस्कृत का विद्वान् बोपदेव के नाम से प्रसिद्ध हुआ और इसने मुग्धबोध नाम का संस्कृत का सरल व्याकरण तैयार किया। यदि यह निराश होकर घबरा जाता तो जीवन में कुछ न कर पाता। परन्तु, उसने धैर्य से ,सच्ची लगन से विश्व को एक अदभुत देन दी।
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