हमारी अंतर्निहित और आनुवांशिक समस्या 'चिंतित 'बने रहने और 'कभी खुश न होने'की प्रवृति है। जरा सोचिए तो पिछली बार आपने कब निखालिस ख़ुशी महसूस की थी? फिर सोचें कि कितने वक्त वह ख़ुशी बनी रही थी ?हम ट्रेन की तरह हैं -ऐसी ट्रेन जो सिर्फ महत्वपूर्ण स्टेशनों से गुजरते रहना चाहती है। यह उन स्टेशनों (आपके जीवन के लक्ष्य )पर कुछ देर रूकती जरूर है ,लेकिन इस ट्रेन में वहा विश्राम करने की काबिलियत नहीं है ,क्योंकि यह अगले स्टॉप को लेकर चिंतित रहती है।
इसके लिए एक कारण तो यह है कि हम अपने आसपास इतनी ट्रेनें घूमते देखते हैं। हम उन्हें तेजी से पहुंचते देखते हैं ,इसलिए हम सर्र -से गुजर जाते हैं। फिर हमारे अहंकार को सहलाने के लिए हम हमसे धीमे चलने वाली ट्रेन को देखकर बड़ी राहत महसूस करते हैं। हम जताते तो यहीं हैं कि दोस्त की अधिक तेज ट्रेन पर हम खुश हैं लेकिन ,वास्तव में हम कभी खुश होते नहीं।
हम तो खुश होना ही नहीं चाहते। यदि हमे चिंता का कारण नहीं मिलता तो हम खोज निकलते हैं। हम चुपके से यह भरोसा करने लगे हैं कि चिंता ही तरक्की का ईंधन है। डिस्को व पार्टियां हमें शायद हमें शायद ही ख़ुशी देती हो। हमारी छुट्टियां हमें ऊर्जावान बनाने की जगह थकाने वाली ज्यादा होती हैं।
हमें दूसरों में खामियां निकालना बहुत पसंद है। जब हम किसी से श्रेष्ठ सिद्ध होते हैं तो बहुत अच्छा लगता है। जो हमारी प्रशंसा करते हैं ,सहमत होते हैं ,तोहफे देते हैं या हमारे काम करते हैं तो हम उन्हें अच्छा कहते हैं। जो ऐसा नहीं करते वे अच्छे नहीं होते।
हमारे भीतर क्या है उसकी बजाय हमारा बाहरी रूप -रंग हमारे लिए ज्यादा महत्वपूर्ण है। भीतर से हम थके हुए हैं और शाश्वत चिंता में बने रहते हैं। दुर्भाग्य से हम ऐसी दुनिया में रह रहे हैं ,जिनमें अनावश्यक चीजें हमारी सबसे बड़ी आवश्यकता हो गई हैं। तो इससे बाहर निकलने का रास्ता क्या है ?एक ही जिंदगी है और आपको ऐसा माहौल तैयार करना होगा कि आपके सबसे बड़े आइडिया आपके दिमाग में प्रवाहित होने लगे।
जिंदगी 20 चीजें सही करने का नाम नहीं है बल्कि 3 -4 चीजें एकदम सही करना जिंदगी है। शेष 16 -17 चीजें सिर्फ बेकार का आकर्षण है। जिंदगी को साल बनाकर धीरे -धीरे ऐसे बन जाये कि उन बेकार के आकर्षणों को छोड़ सकें। हमारी ऊर्जा को हम जितना बिखरा देते हैं ,'वास्तविक लक्ष्यों 'की ओर ऊर्जा लगाने में हम उतने ही असमर्थ होते जाते हैं ,इसीलिए अनुशासन और अत्यधिक इच्छा शक्ति जरूरी है। अपनी तूफानी भाग -दौड़ पर विचार कीजिए और सोचें कि आप सिर्फ खुश होने की बजाय दौड़ते क्यों रहना चाहते हैं।
इसके लिए एक कारण तो यह है कि हम अपने आसपास इतनी ट्रेनें घूमते देखते हैं। हम उन्हें तेजी से पहुंचते देखते हैं ,इसलिए हम सर्र -से गुजर जाते हैं। फिर हमारे अहंकार को सहलाने के लिए हम हमसे धीमे चलने वाली ट्रेन को देखकर बड़ी राहत महसूस करते हैं। हम जताते तो यहीं हैं कि दोस्त की अधिक तेज ट्रेन पर हम खुश हैं लेकिन ,वास्तव में हम कभी खुश होते नहीं।
हम तो खुश होना ही नहीं चाहते। यदि हमे चिंता का कारण नहीं मिलता तो हम खोज निकलते हैं। हम चुपके से यह भरोसा करने लगे हैं कि चिंता ही तरक्की का ईंधन है। डिस्को व पार्टियां हमें शायद हमें शायद ही ख़ुशी देती हो। हमारी छुट्टियां हमें ऊर्जावान बनाने की जगह थकाने वाली ज्यादा होती हैं।
हमें दूसरों में खामियां निकालना बहुत पसंद है। जब हम किसी से श्रेष्ठ सिद्ध होते हैं तो बहुत अच्छा लगता है। जो हमारी प्रशंसा करते हैं ,सहमत होते हैं ,तोहफे देते हैं या हमारे काम करते हैं तो हम उन्हें अच्छा कहते हैं। जो ऐसा नहीं करते वे अच्छे नहीं होते।
हमारे भीतर क्या है उसकी बजाय हमारा बाहरी रूप -रंग हमारे लिए ज्यादा महत्वपूर्ण है। भीतर से हम थके हुए हैं और शाश्वत चिंता में बने रहते हैं। दुर्भाग्य से हम ऐसी दुनिया में रह रहे हैं ,जिनमें अनावश्यक चीजें हमारी सबसे बड़ी आवश्यकता हो गई हैं। तो इससे बाहर निकलने का रास्ता क्या है ?एक ही जिंदगी है और आपको ऐसा माहौल तैयार करना होगा कि आपके सबसे बड़े आइडिया आपके दिमाग में प्रवाहित होने लगे।
जिंदगी 20 चीजें सही करने का नाम नहीं है बल्कि 3 -4 चीजें एकदम सही करना जिंदगी है। शेष 16 -17 चीजें सिर्फ बेकार का आकर्षण है। जिंदगी को साल बनाकर धीरे -धीरे ऐसे बन जाये कि उन बेकार के आकर्षणों को छोड़ सकें। हमारी ऊर्जा को हम जितना बिखरा देते हैं ,'वास्तविक लक्ष्यों 'की ओर ऊर्जा लगाने में हम उतने ही असमर्थ होते जाते हैं ,इसीलिए अनुशासन और अत्यधिक इच्छा शक्ति जरूरी है। अपनी तूफानी भाग -दौड़ पर विचार कीजिए और सोचें कि आप सिर्फ खुश होने की बजाय दौड़ते क्यों रहना चाहते हैं।
0 comments:
Post a Comment