छल -कपट ,विश्वासघात ,देशद्रोह ,हत्याएँ आदि का कारण लोभ और लालच ही है। यह सब भोगों के लिए हो रहा है। आश्चर्य यह है कि भोग ज्यों के त्यों हैं ,भोगने वाले नष्ट हो रहे हैं। इसके लिए एक दृष्टांत देखिए ---
एक विरक्त साधु सड़क पर जा रहे थे। मार्ग में उन्हें कुछ स्वर्ण मुद्राएँ पड़ी दिखाई दी। देखते ही वे चौंके और मार्ग से हटकर चलने लगे। थोड़ी दूरी पर उन्हें चार बंदूकधारी सिपाही मिले। साधु ने उनसे कहा बच्चा ,इस मार्ग से बचकर जाना ,रास्ते में एक डायन बैठी है।
सिपाही ने कहा -अरे बाबा !डायन से क्या डरना ,हरकत करेगी तो एक कारतूस उसपर दाग देंगे। थोड़ी दूर चलने पर उन्हें भी स्वर्ण मुद्राएँ पड़ी दिखाई दी। सबने मुद्राएँ बीनकर आपस में यह निश्चय किया कि पहले कुछ खा -पीकर आराम कर ले फिर गश्त पर चलेंगे। तय हुआ कि दो लोग मुद्राओं की रक्षा करें। दो सिपाही बाजार में गये और वहाँ से नमकीन व शराब में विष मिलाकर ले आए। उन्होंने सोचा -वहां जाकर कह देंगे कि हम दोनों तो वहीं खा -पीकर आए हैं ,यह तुम्हारा ही हिस्सा है ,इस पर वे लोग मर जाएंगे और मुद्राएँ हम आपस में बाँट लेंगे।
उधर जंगल में बैठे शेष दोनों सिपाहियों ने निश्चय किया कि जब बाजार वाले सिपाही लौटेंगे तो हम उन दोनों को गोली से मार देंगे और धन आपस में बाँट लेंगे।
बाजार वाले सिपाही जैसे ही लौटे ,इन्होंने एक -एक को अपनी बंदूकों से ठंडा कर दिया और लगे खाने -पीने ,परन्तु उसमें तो विष मिला था। जल्दी ही वे दोनों भी सदा -सदा के लिए वहीं लेट गए।
थोड़ी देर बाद साधु बाबा लौटे तो चारों लाशों को देखकर हंस पड़े और बोले वाह री डायन ! चारों को खा गई और तू ज्यों -की -त्यों यही बैठी है।
डायन रूपी माया के लिए पाप मत करो। जीवन को निर्मल बनाओ। माया के प्रलोभन से बचो। ईश्वर भक्तों पर माया वार नहीं करती। सच्चा आस्तिक भौतिक भोगों के लिए कभी भी दुष्कृत्य नहीं करेगा। कामी और लोभी ही माया के शिकार होते हैं ,विरक्त नहीं।
एक विरक्त साधु सड़क पर जा रहे थे। मार्ग में उन्हें कुछ स्वर्ण मुद्राएँ पड़ी दिखाई दी। देखते ही वे चौंके और मार्ग से हटकर चलने लगे। थोड़ी दूरी पर उन्हें चार बंदूकधारी सिपाही मिले। साधु ने उनसे कहा बच्चा ,इस मार्ग से बचकर जाना ,रास्ते में एक डायन बैठी है।
सिपाही ने कहा -अरे बाबा !डायन से क्या डरना ,हरकत करेगी तो एक कारतूस उसपर दाग देंगे। थोड़ी दूर चलने पर उन्हें भी स्वर्ण मुद्राएँ पड़ी दिखाई दी। सबने मुद्राएँ बीनकर आपस में यह निश्चय किया कि पहले कुछ खा -पीकर आराम कर ले फिर गश्त पर चलेंगे। तय हुआ कि दो लोग मुद्राओं की रक्षा करें। दो सिपाही बाजार में गये और वहाँ से नमकीन व शराब में विष मिलाकर ले आए। उन्होंने सोचा -वहां जाकर कह देंगे कि हम दोनों तो वहीं खा -पीकर आए हैं ,यह तुम्हारा ही हिस्सा है ,इस पर वे लोग मर जाएंगे और मुद्राएँ हम आपस में बाँट लेंगे।
उधर जंगल में बैठे शेष दोनों सिपाहियों ने निश्चय किया कि जब बाजार वाले सिपाही लौटेंगे तो हम उन दोनों को गोली से मार देंगे और धन आपस में बाँट लेंगे।
बाजार वाले सिपाही जैसे ही लौटे ,इन्होंने एक -एक को अपनी बंदूकों से ठंडा कर दिया और लगे खाने -पीने ,परन्तु उसमें तो विष मिला था। जल्दी ही वे दोनों भी सदा -सदा के लिए वहीं लेट गए।
थोड़ी देर बाद साधु बाबा लौटे तो चारों लाशों को देखकर हंस पड़े और बोले वाह री डायन ! चारों को खा गई और तू ज्यों -की -त्यों यही बैठी है।
डायन रूपी माया के लिए पाप मत करो। जीवन को निर्मल बनाओ। माया के प्रलोभन से बचो। ईश्वर भक्तों पर माया वार नहीं करती। सच्चा आस्तिक भौतिक भोगों के लिए कभी भी दुष्कृत्य नहीं करेगा। कामी और लोभी ही माया के शिकार होते हैं ,विरक्त नहीं।
0 comments:
Post a Comment