डायबिटीज या जिसे हम हिंदी में मधुमेह कहते हैं ,तब होती है ,जब हमारे शरीर में इंसुलिन हारमोन कम बनता है या बिलकुल ही नहीं बनता। इंसुलिन हारमोन पेन्क्रियाज में बनता है और रक्त में ग्लूकोज की मात्रा को नियंत्रित करता है। ग्लूकोज से हमें दिन -प्रतिदिन के कामों के लिए ऊर्जा मिलती है।
अगर किसी कारणवश शरीर में इंसुलिन न रहे ,तो खून में ग्लूकोज की मात्रा बहुत अधिक बढ़ जाती है। एक आम व्यक्ति के 100 ग्राम खून में शूगर की मात्रा 70 से 100 मिलीग्राम होनी चाहिए ,लेकिन डायबिटीज होने पर यह मात्रा बढ़ जाती है।
डायबिटीज कई प्रकार की होती है। पहली वह जो पैतृक होती है। इसमें जन्म से ही किसी कारण से बच्चे में इंसुलिन नहीं बनता। इसका कोई इलाज नहीं है और इसके लिए अपने खान -पान में परहेज के साथ -साथ कृत्रिम इंसुलिन का सहारा लेना पड़ता है।दूसरे प्रकार के मधुमेह का संबंध एक हद तक हमारे रहन -सहन ,यानि हमारे खाने -पीने से है। यह आमतौर पर प्रौढ़ावस्था में होता है और इसका सीधा संबंध मोटापे से है।
लक्षण --मधुमेह के रोगी में विभिन्न लक्षण दिखाई देते हैं -जैसे बार -बार पेशाब आना ,आंखों की रोशनी कम हाना ,शरीर में चुस्ती कम होना और हर समय नींद आते रहना ,जख्मों का जल्दी न भरना ,भूख -प्यास का बढ़ना ,लेकिन वजन कम होना ,त्वचा रूखी -रूखी हो जाना और खुजली होना। इन लक्षणों के उभरने पर तुरंत खून की जांच करवानी चाहिए। पॉजिटिव रिपोर्ट आते ही डाक्टरी इलाज शुरू कर देना चाहिए।
इलाज --खाने -पीने में बदलाव लाने और नियमित रूप से व्यायाम करने से मधुमेह नियंत्रित किया जा सकता है। इसके लिए मधुमेह के रोगो को चावल ,चीनी ,मैदा ,आलू ,चीकू ,अंगूर ,आम आदि नहीं खाने चाहिए और सब्जियों का सेवन ज्यादा करना चाहिए ताकि विटामिन और खनिज का शरीर में अभाव न हो। भूसी वाले आटे का सेवन करना चाहिए ,आटे में सोयाबीन और चने का आटा भी मिला लेना चाहिए। इसमें भोजन संबंधी नियमितता के साथ -साथ नियमित रूप से ब्लड शूगर की जांच करवाते रहना भी जरूरी है। समय पर दवा लेते रहना चाहिए। यह सब करने पर निस्संदेह मधुमेह का रोगी एक सेहतमंद जिंदगी बसर कर सकता हैं।
अगर किसी कारणवश शरीर में इंसुलिन न रहे ,तो खून में ग्लूकोज की मात्रा बहुत अधिक बढ़ जाती है। एक आम व्यक्ति के 100 ग्राम खून में शूगर की मात्रा 70 से 100 मिलीग्राम होनी चाहिए ,लेकिन डायबिटीज होने पर यह मात्रा बढ़ जाती है।
डायबिटीज कई प्रकार की होती है। पहली वह जो पैतृक होती है। इसमें जन्म से ही किसी कारण से बच्चे में इंसुलिन नहीं बनता। इसका कोई इलाज नहीं है और इसके लिए अपने खान -पान में परहेज के साथ -साथ कृत्रिम इंसुलिन का सहारा लेना पड़ता है।दूसरे प्रकार के मधुमेह का संबंध एक हद तक हमारे रहन -सहन ,यानि हमारे खाने -पीने से है। यह आमतौर पर प्रौढ़ावस्था में होता है और इसका सीधा संबंध मोटापे से है।
लक्षण --मधुमेह के रोगी में विभिन्न लक्षण दिखाई देते हैं -जैसे बार -बार पेशाब आना ,आंखों की रोशनी कम हाना ,शरीर में चुस्ती कम होना और हर समय नींद आते रहना ,जख्मों का जल्दी न भरना ,भूख -प्यास का बढ़ना ,लेकिन वजन कम होना ,त्वचा रूखी -रूखी हो जाना और खुजली होना। इन लक्षणों के उभरने पर तुरंत खून की जांच करवानी चाहिए। पॉजिटिव रिपोर्ट आते ही डाक्टरी इलाज शुरू कर देना चाहिए।
इलाज --खाने -पीने में बदलाव लाने और नियमित रूप से व्यायाम करने से मधुमेह नियंत्रित किया जा सकता है। इसके लिए मधुमेह के रोगो को चावल ,चीनी ,मैदा ,आलू ,चीकू ,अंगूर ,आम आदि नहीं खाने चाहिए और सब्जियों का सेवन ज्यादा करना चाहिए ताकि विटामिन और खनिज का शरीर में अभाव न हो। भूसी वाले आटे का सेवन करना चाहिए ,आटे में सोयाबीन और चने का आटा भी मिला लेना चाहिए। इसमें भोजन संबंधी नियमितता के साथ -साथ नियमित रूप से ब्लड शूगर की जांच करवाते रहना भी जरूरी है। समय पर दवा लेते रहना चाहिए। यह सब करने पर निस्संदेह मधुमेह का रोगी एक सेहतमंद जिंदगी बसर कर सकता हैं।
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