जीवित रहने और शारीरिक ऊर्जा के लिए भोजन बहुत जरूरी है सभी व्यक्तियों की भोजन की आदतें अलग -अलग होती हैं। ऐसी स्थिति में खान -पान संबंधी गड़बड़ी से कुछ लोगों का पीड़ित हो जाना स्वभाविक है। खान -पान संबंधी गड़बड़ी मुख्यतः दो प्रकार की होती है। भूख न लगना और खूब भूख लगना। दोनों ही समस्याएं प्राणघातक और गंभीर हो सकती हैं। खान-पान संबंधी गड़बड़ी पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में ज्यादा देखने को मिलती है। दुनियाभर की पांच प्रतिशत से भी ज्यादा महिलाएं इन दोनों में से किसी न किसी समस्या से पीड़ित होती हैं। इनकी शुरुआत आमतौर पर किशोरावस्था से ही हो जाती है। हम तब इस ओर ध्यान नहीं देते और धीरे -धीरे यह हमारी आदत में शुमार हो जाता है।
लक्षण --भूख न लगने की बीमारी से पीड़ित व्यक्तियों का वजन शरीर के अपेक्षित वजन से काफी कम हो जाता है। इससे शरीर कुपोषण का शिकार होकर काफी कमजोर हो जाता है। इससे शरीर की बीमारियों से लड़ने की शक्ति कम हो जाती है ,जिससे बीमारियों के संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। ढेर सारा भोजन करने से व्यक्ति का वजन काफी बढ़ जाता है ,जिससे डायबिटीज और हार्ट सहित कई अन्य बीमारियों के पनपने के संभावना बढ़ जाती है।
भूख न लगने का कारण ---1 चिंता या तनाव ---कई लोगों की आदत होती है कि वे छोटी -छोटी बातों को लेकर टेंशन में आ जाते हैं। जब वे चिंतित ,घबराए हुए या तनावग्रस्त होते हैं तो पेट में कुछ ऐसे अम्लों का निर्माण होता है ,जिनसे भूख मर जाती है। इसलिए जहां तक हो सके चिंता से दूर रहें।
2 अरुचि --कई बार व्यक्ति स्वास्थ्य संबंधी किसी समस्या से पीड़ित होते हैं ,जिसके कारण भोजन के प्रति अरुचि पैदा हो जाती है।
3 डायटिंग --बढ़ते वजन को कम करने के चक्कर में कई लोग डायटिंग शुरू कर देते हैं. वे दुबला होने की गोलियां भी खाते हैं ,जिससे वे ऐनरेक्सिया नामक बीमारी के शिकार हो जाते हैं और उनकी भूख मर जाती है।
4 अत्यधिक सतर्क --कई लोग अपने आहार के मामले में भी नकारात्मक रूप से अत्यधिक सतर्क होते हैं। वजन बढ़ जाने के डर से वे हल्का भोजन करते हैं और अत्यधिक कसरत करते हैं। ऐसी स्थिति में कुपोषण या अत्यधिक मेहनत से उन्हें टीबी सहित कई अन्य बीमारियों से पीड़ित होने की संभावना बढ़ जाती है।
भूख न लगने की बीमारी से निजात पाने में मनोचिकित्सक काफी मददगार साबित हो सकते हैं ,क्योंकि अपनी समस्याओं के संबंध में अपने परिजनों के साथ चर्चा करना कई लोगों के लिए मुश्किल होता है। उपचार में मनोचिकित्सा के साथ ही मेडिकेशन भी जरूरी होता है। ये दोनों अलग -अलग या साथ -साथ भी हो सकती है। सामान्य परिस्थितियों में रोगी इससे ही ठीक हो जाता है। लेकिन किसी कारणवश यदि रोगी इससे ठीक नहीं हो पा रहा हो ,तो समस्या गंभीर हो सकती है। ऐसी स्थिति में रोगी को अस्पताल में भर्ती करा कर उसका विस्तृत स्वास्थ्य परीक्षण कराना चाहिए।
लक्षण --भूख न लगने की बीमारी से पीड़ित व्यक्तियों का वजन शरीर के अपेक्षित वजन से काफी कम हो जाता है। इससे शरीर कुपोषण का शिकार होकर काफी कमजोर हो जाता है। इससे शरीर की बीमारियों से लड़ने की शक्ति कम हो जाती है ,जिससे बीमारियों के संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। ढेर सारा भोजन करने से व्यक्ति का वजन काफी बढ़ जाता है ,जिससे डायबिटीज और हार्ट सहित कई अन्य बीमारियों के पनपने के संभावना बढ़ जाती है।
भूख न लगने का कारण ---1 चिंता या तनाव ---कई लोगों की आदत होती है कि वे छोटी -छोटी बातों को लेकर टेंशन में आ जाते हैं। जब वे चिंतित ,घबराए हुए या तनावग्रस्त होते हैं तो पेट में कुछ ऐसे अम्लों का निर्माण होता है ,जिनसे भूख मर जाती है। इसलिए जहां तक हो सके चिंता से दूर रहें।
2 अरुचि --कई बार व्यक्ति स्वास्थ्य संबंधी किसी समस्या से पीड़ित होते हैं ,जिसके कारण भोजन के प्रति अरुचि पैदा हो जाती है।
3 डायटिंग --बढ़ते वजन को कम करने के चक्कर में कई लोग डायटिंग शुरू कर देते हैं. वे दुबला होने की गोलियां भी खाते हैं ,जिससे वे ऐनरेक्सिया नामक बीमारी के शिकार हो जाते हैं और उनकी भूख मर जाती है।
4 अत्यधिक सतर्क --कई लोग अपने आहार के मामले में भी नकारात्मक रूप से अत्यधिक सतर्क होते हैं। वजन बढ़ जाने के डर से वे हल्का भोजन करते हैं और अत्यधिक कसरत करते हैं। ऐसी स्थिति में कुपोषण या अत्यधिक मेहनत से उन्हें टीबी सहित कई अन्य बीमारियों से पीड़ित होने की संभावना बढ़ जाती है।
भूख न लगने की बीमारी से निजात पाने में मनोचिकित्सक काफी मददगार साबित हो सकते हैं ,क्योंकि अपनी समस्याओं के संबंध में अपने परिजनों के साथ चर्चा करना कई लोगों के लिए मुश्किल होता है। उपचार में मनोचिकित्सा के साथ ही मेडिकेशन भी जरूरी होता है। ये दोनों अलग -अलग या साथ -साथ भी हो सकती है। सामान्य परिस्थितियों में रोगी इससे ही ठीक हो जाता है। लेकिन किसी कारणवश यदि रोगी इससे ठीक नहीं हो पा रहा हो ,तो समस्या गंभीर हो सकती है। ऐसी स्थिति में रोगी को अस्पताल में भर्ती करा कर उसका विस्तृत स्वास्थ्य परीक्षण कराना चाहिए।
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